5 साल पूर्व भांग की खेती को कानूनी मान्यता देने पर लगाई थी गुहार, केंद्र व राज्य सरकार की उदासीनता के बाद अब हाई कोर्ट ने दिए ये आदेश
शिमला: हिमाचल प्रदेश में मौजूदा सरकार बेशक भांग की खेती को कानूनी मान्यता देने पर गंभीरता से काम कर रही है, लेकिन इस संदर्भ में हाई कोर्ट में भी पांच साल पहले याचिका दाखिल की गई थी. उस समय केंद्र व राज्य सरकार ने इस दिशा में कोई सकारात्मक सोच नहीं दिखाई. लिहाजा मामला टल गया था, परंतु अब हाई कोर्ट नए सिरे सुनवाई करेगा. अदालत इस मामले में 2 नवंबर को सुनवाई करेगी. भांग की खेती को कानूनी मान्यता देने से पहले हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र की अगुवाई वाली खंडपीठ ने राज्य सरकार को कई निर्देश भी दिए हैं. अगली सुनवाई पर राज्य सरकार को हाईकोर्ट में विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी होगी.
दरअसल, वर्ष 2018 में एडवोकेट देशिंदर खन्ना ने हाई कोर्ट से गुहार लगाई थी कि भांग की खेती को लीगल करने के लिए राज्य सरकार को उचित निर्देश दिए जाएं. इस संदर्भ में एडवोकेट खन्ना ने अपनी याचिका में कहा था कि भांग के कई औषधीय प्रयोग हैं और ये जानलेवा कैंसर जैसी बीमारी में लाभप्रद है. उन्होंने अदालत से गुहार लगाई थी कि राज्य सरकार को निर्देश दिए जाएं कि वो उद्योग जगत व वैज्ञानिक क्षेत्र में अनुसंधान में प्रयोग करने की दिशा में कदम उठाए. इस पर हाई कोर्ट ने 24 जुलाई 2019 को पारित आदेश में केंद्र व राज्य सरकार को 8 हफ्ते में इस मामले में फैसला लेने को कहा था. उस समय हाई कोर्ट ने आशा भी जताई थी कि यदि आठ सप्ताह के भीतर कोई फैसला ले लिया जाएगा तो ये सराहनीय होगा.
हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद चार साल का अरसा हो गया, लेकिन दोनों ही सरकारों की तरफ से कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया. जब केंद्र व राज्य सरकार ने कोई सार्थक प्रयास नहीं किया तो हाई कोर्ट में इस मामले में सुनवाई टल गई. अब हाई कोर्ट 2 नवंबर को फिर से मामले की सुनवाई करेगा, लेकिन उससे पहले मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने सरकार को आदेश दिए हैं कि वो राज्य में मादक पदार्थों से जुड़े अपराधों की रोकथाम के उपायों की जानकारी पेश करे. अदालत ने कहा कि यदि सरकार ने मादक पदार्थों के उत्पादन और व्यापार में वृद्धि का अध्ययन कर कोई रिपोर्ट तैयार की हो तो उसे भी स्टेट्स रिपोर्ट के माध्यम से पेश किया जाए. इसके अलावा खंडपीठ ने सरकार से मादक पदार्थों के अवैध उत्पादन और कारोबार पर नकेल कस उसे बेहद सीमित करने के तरीकों पर भी सुझाव के रूप में जानकारी मांगी है.
वर्ष 2018 में एडवोकेट देशिंदर खन्ना की तरफ से दाखिल की गई याचिका में हाई कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश वन विभाग व राज्य स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव, जैव विविधता विभाग के निदेशक सहित केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया हुआ है. याचिकाकर्ता एडवोकेट का कहना है कि दवा में उपयोग की दृष्टि से ग्रामीण क्षेत्रों में भांग की खेती को कानूनी मान्यता देकर किसानों की आर्थिक हालत सुधारी जा सकती है. साथ ही युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से भी काफी हद तक निजात पाई जा सकती है. इसके अलावा भांग के पौधों को जलाकर नष्ट करने से पैदा होने वाले प्रदूषण को भी रोका जा सकता है. जनहित के लिए भांग का उपयोग जीवन रक्षक दवाइयों के निर्माण में किया जा सकता है. कैंसर व न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिए भांग से निर्मित दवाइयों को उपयोग में लाया जा सकता है. इसे नेशनल फाइबर पॉलिसी-2010 के तहत लाया जा सकता है.
अदालत को ये भी बताया गया था कि भांग पर किए गए अनुसंधान के बाद इस को दवा के तौर पर उपयोग में लाया जाने लगा है. याचिका में कहा गया था कि ड्रग माफिया किसानों से मुफ्त में भांग सरीखे उत्पादों को इकट्ठा कर तस्करी करते हैं, जबकि इन पदार्थों को किसानों से कच्चे माल के तौर पर उद्योगों व जीवनरक्षक दवा के रूप में एकत्रित किया जा सकता है. इससे किसानों की आय होगी और भांग के अवैध कारोबार पर भी रोक लगेगी. फिलहाल, अब हाई कोर्ट 2 नवंबर को इस मामले में सुनवाई करेगा.