नई भर्ती नहीं होने से युवा हो रहे हैं ओवरऐज
भोपाल
प्रदेश में 500 ऐसे महाविद्यालय हैं जहां प्राचार्य के पद खाली है। मात्र 24 शासकीय महाविद्यालय हैं जहां प्राचार्य कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2018 से प्राचार्यों की कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है। प्राचार्य विहिन महाविद्यालय इन दिनों प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे चल रहे हैं। नई भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं होने से उच्च शिक्षा विभाग ने अनुभवी प्रोफेसरों को छोड़कर महाविद्यालय में पढ़ाने वाले नए-नए सहायक प्राध्यापकों को प्रभारी प्राचार्य की जिम्मेदारी दे रखी है।
पूर्णकालिक प्राचार्य नहीं होने से महाविद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था प्रभावित होने के साथ- साथ अनुभवी अध्यापकों को पदोन्नति का कोई मौका भी नहीं मिला और बिना प्राचार्य बने ही रिटायरमेंट के कगार पर आ गए। वहीं प्राध्यापक के 704 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 247 प्राध्यापक मात्र सेवा दे रहे हैं। महाविद्यालयों में 457 प्राध्यापक के पद खाली हैं। वर्ष 2018 में शासन ने एक नियम बनाया था कि शासकीय महाविद्यालयों में 75 फीसदी प्राचार्यों की नियुक्ति लोकसेवा आयोग के जरिए और 25 फीसदी नियुक्ति पदोन्नति के माध्यम से होगी।
लोकसेवा आयोग ने पिछले 6 साल से प्राचार्यों की भर्ती प्रक्रिया को लेकर कोई विज्ञापन जारी नहीं किया। प्राचार्य बनने की राह देख रहे हजारों युवा ओवरऐज हो गए। लोकसेवा आयोग ने प्राचार्य बनने के लिए उम्र सीमा 45 वर्ष निर्धारित की थी। लेकिन नई भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं होने से सैकड़ों युवाओं का प्राचार्य बनने का सपना अधूरा ही रह गया। गौरतलब है कि अंतिम बार प्रोफेसर्स की भर्ती प्रक्रिया वर्ष 2009 में हुई थी। एक चरण की भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद दूसरे चरण की भर्ती प्रक्रि या की कोई आज तक सुगबुगहाट नजर नहीं आ रही है।
शिक्षा व्यवस्था पर असर-
महाविद्यालयों में पूर्णकालिक प्राचार्य नहीं होने से इसका सबसे ज्यादा प्रशासकीय प्रबंधन के अलावा पठन-पाठन पर सीधे तौर पर हो रहा है। प्रदेश में नई शिक्षा नीति लागू होने के बावजूद भी इस दिशा में उच्च शिक्षा विभाग अभी कोई खास निर्णय नहीं ले पा रहा है। अधिकांश कॉलजों में संबंधित विषय के प्रभारी प्राचार्य बनने से पूरी कक्षाएं खाली रहती है। कॉलजों की प्रशासनिक व्यवस्था दिन पे दिन लचर होती जा रही है। छात्रों ने इस मामले को लेकर कई बार आवाज उठाई लेकिन कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। कॉलेजों में पर्याप्त प्रोफेसर्स नहीं होने से शिक्षा व्यवस्था की स्थिति दिन पे दिन लचर होती जा रही है।