अन्तर्राष्ट्रीय

भारत की सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं सुधरने से मातृ मृत्यु दर घटी, 144 करोड़ की आबादी में 67% लोग 24 से कम उम्र के

न्यूयार्क/नई दिल्ली।

भारत की आबादी 144 करोड़ पार होने का अनुमान है। इस आबादी में 67 फीसदी लोग 0 से 24 वर्ष के हैं। देश में महज 7 फीसदी आबादी 65 वर्ष या इससे अधिक उम्र की है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि (यूएनपीएफ) की तरफ से वार्षिक विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हुई हैं, जिससे मातृ मृत्यु दर में कमी आई है और जीवन प्रत्याशा बढ़ी है।

पीएलओएस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर यूएनपीएफ ने बताया कि भारत की जनसंख्या 144.17 करोड़ हो चुकी है। भारत की आबादी में 24 फीसदी 0-14 वर्ष के लोग हैं। 17 फीसदी आबादी 10-19 वर्ष के अंदर है। 26 फीसदी 10-24 साल की उम्र के लोग हैं। 15-64 आयु वर्ग के 68 फीसदी लोग शामिल हैं।

65 साल के ऊपर सिर्फ 7% लोग
देश की आबादी में महज 7 फीसदी 65 साल या इससे अधिक उम्र के लोग हैं। देश में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेंटेसी) बढ़कर 71 वर्ष और महिलाओं की 74 वर्ष हो गई है। 77 वर्ष बाद 2101 तक भारत की आबादी बढ़कर दोगुनी हो जाएगी। रिपोर्ट में भारत में जनसंख्या बढ़ने के पीछे सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार व जीवन प्रत्याशा में वृद्धि है। रिपोर्ट में गर्भवती व प्रसूताओं को पौष्टिक आहार मुहैया कराने को लेकर चलाई जा रहीं योजनाओं की भी प्रशंसा की गई है। यह भी बताया गया है कि 2006-2023 तक भारत में बाल विवाह की दर 23 फीसदी रही, जो चिंताजनक है। 

मातृ मुत्यु दर में असमानता
रिपोर्ट के मुताबिक देश के 640 जिलों में सतत विकास लक्ष्यों के मुताबिक मातृ मृत्यु दर का अनुपात 1,00,000 पर 70 या इससे कम है लेकिन 114 जिले ऐसे हैं, जहां यह अनुपात 1 लाख पर 210 या इससे ज्यादा है। अरुणाचल प्रदेश के तिराप जिले में यह सबसे ज्यादा एक लाख पर 1,671 है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लैंगिक भेदभाव कम हुआ है। हालांकि, दिव्यांग महिलाओं को सामान्य महिलाओं की तुलना में 10 गुना ज्यादा लैंगिक भेदभाव और हिंसा का शिकार होना पड़ता है।

धनी महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाओं का ज्यादा लाभ मिला  
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के धनी परिवारों की महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार का ज्यादा लाभ मिला। इसके अलावा विकलांग महिलाएं, लड़कियां, प्रवासी, शरणार्थी, जातीय अल्पसंख्यकों, एलजीबीटीक्यू प्लस, एचआईवी पीड़ित व वंचित जातियों को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य जोखिमों का अधिक सामना करना पड़ता है। कमजोर तबकों की स्थिति को जलवायु परिवर्तन, बड़े पैमाने पर प्रवासन जैसी परिस्थितियों ने और खराब किया है।

प्रसव के दौरान रोज 800 महिलाओं की मौत
रिपोर्ट में कहा गया है कि लाखों महिलाएं और लड़कियों को अब भी कई मायनों में आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है। मसलन, 2016 के बाद से हर दिन देश में 800 महिलाएं बच्चे को जन्म देते समय मर जाती हैं। एक चौथाई महिलाएं अपने साथी के साथ यौन संबंध बनाने से इन्कार नहीं कर सकती हैं। 10 में से एक महिला गर्भनिरोधक के बारे में कोई फैसला लेने की स्थिति में नहीं है।

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