राजनीतिक

63 सीटें गंवाई, ऐसे में बीजेपी अपने गवाएं हुए सीटों पर हार के कारणों की समीक्षा जरूर करेगी

नई दिल्ली
मंगलवार को मतगणना के बाद लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। एनडीए एक बार फिर सरकार तो बनाने जा रही है,  हालांकि 400 पार का नारा देने वाली बीजेपी ने 63 सीटें गंवा देने की अपेक्षा नहीं की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीतकर अकेले दम पर सरकार बनाने में सक्षम बीजेपी को इस बार 240 सीटों पर संतोष करना पड़ रहा है। ऐसे में बीजेपी अपने गवाएं हुए सीटों पर हार के कारणों की समीक्षा जरूर करेगी।

चुनावी विशेषज्ञों की माने तो पिछले दस सालों में अपने चुनावी वादों की सफल डिलीवरी से उत्साहित होकर, बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनावों को हल्के में लेने की कोशिश की। पार्टी ने इसे बिना किसी प्रतियोगिता के जीत समझने की गलती की। ग्राउंड पर अपने अनुकूल प्रतिक्रिया ना होने के बावजूद बीजेपी ने इसे अनदेखा किया और मौजूदा सांसदों को दोहराने की गलतियां की। बीजेपी ने कार्यकर्ताओं की भावनाओं की अनदेखी करते हुए ना सिर्फ विभिन्न दलों के साथ हाथ मिलाया, बल्कि उन्हें टिकट भी दिया। इससे कार्यकर्ताओं के मन में भी उदासीनता आई।

सत्ता-विरोधी लहर को रोकने के लिए मौजूदा सांसदों को बदलने की सफल प्रथा के उलट, पार्टी नेतृत्व ने अधिकांश उम्मीदवारों को दोबारा मैदान में उतारा। यह बीजेपी के हार की बड़ी वजह रही। मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में पार्टी को फायदा होने की उम्मीद भी थी क्योंकि एसपी और बीएसपी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे। साथ ही अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और योगी आदित्यनाथ सरकार के 'कानून और व्यवस्था' का मुद्दा भी बीजेपी के पक्ष में था। बाहरी नेताओं, जिन में से अधिकतर दागी थे, को टिकट देकर बीजेपी ने अपने साफ और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के नारे की विश्वसनीयता खो दी। वहीं जहां विरोधी खेमा जाति आधारित राजनीति को अच्छे से भुनाकर सीटें जीतने में कामयाब हुआ, बीजेपी ने जाट, मीणा और राजपूतों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश में बहुत देरी कर दी।

आरएसएस की नाराजगी पड़ी भारी
भाजपा की हार में एक और विलेन रहा- आरएसएस में एक समूह की नाराजगी। आरएसएस का एक बड़ा खेमा इस बात से खफा दिखा कि टिकट देने के मामले में जमीन पर सालों से काम करने वाले कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए बीजेपी ने बाहरियों को प्राथमिकता दी। इस नाराजगी ने संघ कार्यकर्ताओं के डोर टू डोर अभियान को भी प्रभावित किया, जिससे बीजेपी को सालों से फायदा मिल रहा था। इन सब के बीच पांचवें चरण से पहले पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा के बयान ने आग में घी डालने का काम किया। नड्डा ने आरएसएस के सहयोग के बारे में एक बयान में कहा था कि बीजेपी अब खुद में ही सक्षम है। इन सब ने अलावा योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाने की बात को लेकर भी काफी गहमा-गहमी रही। पार्टी के अंदर से ही टिकट के बंटवारे को लेकर मनमुटाव की खबरें भी आई थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसी पार्टियों से गठबंधन को लेकर भी पार्टी में अंदरूनी टकराव हुए थे।

 

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