अन्य राज्यदिल्ली

दिल्ली में आने वाली बाढ़ मानव निर्मित है- हाईकोर्ट

नई दिल्ली
 दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध निर्माण करने वालों को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने शुक्रवार को कहा कि दिल्ली अपनी जड़ों को खो रही। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में आने वाली बाढ़ मानव निर्मित है, क्योंकि यमुना के मैदानी इलाकों पर बड़ी संख्या में लोग अवैध निर्माण कर रहे हैं। इस वजह से पानी के निकलने का रास्ता बंद हो गया है और शहर में बाढ़ आ रही है। हाईकोर्ट मयूर विहार में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की ओर से अतिक्रमण हटाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि कृपया मगरमच्छ के आंसू न बहाएं।

दिल्ली में बाढ़ को लेकर हाईकोर्ट सख्त

अदालत ने कहा कि DDA ने दशकों पहले यमुना नदी के रास्ते को साफ करने और अतिक्रमण करने वालों को हटाने की मुहिम तेज की थी। हालांकि, अतिक्रमणकारी वहां से हटने को तैयार नहीं हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेड़ेला की पीठ ने कहा कि यह शहर अपनी जड़ों को ही खो रहा है। यह कैसे हो सकता है कि कोई विवेकशील व्यक्ति यमुना के मैदानों पर भी कब्जा कर ले। आखिर पानी कहां जाएगा? उसे तो जगह चाहिए। आज इस शहर के सभी नाले, जिनसे होकर पानी बहता है, अवैध निर्माण के कारण बंद हैं। इससे कानून का पालन करने वाला एक आम नागरिक ही परेशान हो रहा है।

अतिक्रमण की वजह से डूब रहे घर- कोर्ट

अदालत ने यमुना खादर स्लम यूनियन के वकील से कहा, 'अतिक्रमण की वजह से उन लोगों के घर डूब रहे, जिन्होंने अधिकृत क्षेत्रों में निर्माण किया है। जिन्हें घर बनाने को लेकर सभी तरह की अनुमति मिली हैं। उनके घर डूब रहे हैं। ऐसा उन लोगों की वजह से हो रहा जिन्होंने कानून को अपने हाथ में ले लिया है और यमुना के पानी बहाव वाले एरिया पर कब्जा कर अवैध निर्माण किया है।

मगरमच्छ के आंसू न बहाएं, कोर्ट की दो टूक

यमुना खादर स्लम यूनियन के वकील ने दावा किया कि वे वैकल्पिक आवास की मांग कर रहे हैं। वो यमुना खादर पर रहने की अनुमति नहीं मांग रहे। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि उन्होंने पहले ही बेदखली के खिलाफ अंतरिम रोक हासिल कर ली है। पीठ ने कहा, 'कृपया मगरमच्छ के आंसू न बहाएं। यह भूमि अधिग्रहण यमुना नदी के चैनलाइजेशन के लिए था। अब कानून का पालन करने वाले नागरिक पीड़ित हैं क्योंकि उनके घरों में बाढ़ आ गई है। आप एक कब्जाधारक हैं। अदालत पहले ही एक फैसला सुना चुकी है। कब्जाधारक अदालत में आ रहे हैं और छह साल के लिए रोक आदेश प्राप्त कर रहे हैं।' अदालत ने इस दौरान एकल पीठ के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया जिसने DDA अभियान के लिए रास्ता साफ कर दिया था।

पीठ ने DDA की ओर से किए गए उस सैटेलाइट इमेजरी का जिक्र किया जिसमें अतिक्रमण दिखाया गया था। अदालत ने याचिकाकर्ताओं के वैकल्पिक भूमि पर पुनर्वास के तर्कों का जवाब देते हुए कहा कि यह दावा कि आपके मुवक्किल 1970 के दशक से वहां रह रहे हैं, बकवास है। यह सब कल्पना की उपज है, सब झूठ का पुलिंदा है। जब DUSIB पुनर्वास के लिए कॉलोनियों को मान्यता दे रहा है, तो वह आपकी कॉलोनी को क्यों छोड़ेगा?

कोर्ट ने आदेश में क्या कहा

याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और कहा था कि वे बेघर हैं और खादर क्षेत्र में रैन बसेरों और झुग्गियों में रह रहे। DDA ने कहा कि वे यमुना में बाढ़ के मैदान पर अवैध रूप से रह रहे हैं। सिंगल जज ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर किए गए दस्तावेजों में 2006 की कटऑफ डेट्स से पहले स्लम और जेजे क्लस्टर्स के निरंतर अस्तित्व का पता नहीं चलता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर किए गए कुछ दस्तावेजों में स्लम और जेजे क्लस्टर्स का अस्तित्व नहीं दिखाया गया है जो उन्हें पुनर्वास के हकदार बनाते हैं। इसमें कहा गया है कि केवल वे ग्रुप जिन्हें दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड की ओर से पहचाना गया है, वे ही पुनर्वास के हकदार हैं।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button