लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा को बड़ा झटका, सांसद रितेश पांडेय हुए भाजपा में शामिल
नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा को बड़ा झटका लगा है। अंबेडकरनगर से सांसद रितेश पांडेय मायावती का साथ छोड़ भाजपा में शामिल हो गए हैं। रविवार सुबह उन्होंने पार्टी में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था लेकिन इसके कुछ घंटे बाद ही उन्होंने उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक समेत अन्य नेताओं की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो गए।
आगामी आम चुनाव से ठीक पहले सांसद रितेश पांडेय ने बसपा का साथ छोड़ मायवाती को बड़ा झटका दिया है। भाजपा ज्वाइन करने से पहले उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा कि लंबे समय से उन्हे न तो पार्टी की बैठकों में बुलाया जा रहा था और न ही नेतृत्व स्तर पर संवाद किया जा रहा था। अंबेडकर नगर से सांसद रितेश पांडेय का दावा है कि उन्होंने मायावती और शीर्ष पदाधिकारियों से संपर्क करने के लिए कई प्रयास किये लेकिन उनका परिणाम नहीं निकला। इस दौरान अपने क्षेत्र और अन्य पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिलता-जुलता रहा साथ ही क्षेत्र में काम किए। सासंद ने आगे अपने इस्तीफे में लिखा, मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि पार्टी को मेरी सेवा और उपस्थिति की अब आवश्यकता नहीं है। इसलिए त्यागपत्र देने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है।
पीएम मोदी के काम से प्रभावित
भाजपा में शामिल होने के बाद रितेश पांडेय ने कहा, "मैं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को देखते हुए विकसित भारत की कल्पना में अपना सहयोग देने के लिए इस बड़े मिशन के लिए भाजपा के साथ जुड़ कर काम करने के लिए आगे आया हूं। मेरे क्षेत्र में ही हम देखते हैं कि पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे, 2-2 औद्योगिक कॉरिडोर और 40 हजार से ज्यादा आवास की उपलब्ध कराना दिखाता है कि ये हमारे क्षेत्र को विकसित भारत की ओर बढ़ाने के लिए हो रहा है।"
पिता सपा से हैं विधायक
सांसद रितेश पांडेय उन 9 सांसदों में से हैं जिन्होंने बजट सत्र के दौरान पीएम मोदी के साथ लंच किया था। उनके पिता राकेश पांडेय समाजवादी पार्टी से जलालाबाद सीट से विधायक हैं।
मायावती ने दिया रिएक्शन
रितेश पांडेय के बसपा से इस्तीफा देने और भाजपा ज्वाइन करने पर मायावती ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, 'बसपा राजनीतिक दल के साथ-साथ परमपूज्य बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के स्वाभिमान और स्वाभिमान के मिशन को समर्पित एक आंदोलन भी है, जिसके कारण इस पार्टी की नीति और कार्यशैली पूंजावादी पार्टियों से अलग है जिसे ध्यान में रखकर उम्मीदवार भी उतारते हैं। अब बसपा सांसदों को इस कसौटी पर खरा उतरना होगा और खुद को भी परखना होगा कि क्या उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता का ठीक से ख्याल रखा? क्या आपने अपना पूरा समय अपने क्षेत्र को दिया? साथ ही क्या उन्होंने पार्टी और आंदोलन के हित में समय-समय पर दिए गए दिशा-निर्देशों का ठीक से पालन किया है? ऐसे में क्या ज्यादातर लोकसभा सांसदों को टिकट देना संभव है, खासकर तब जब वे अपने हित में इधर-उधर घूमते नजर आ रहे हों और नकारात्मक खबरों में हों। यह सब जानते हुए भी मीडिया द्वारा इसे पार्टी की कमजोरी के रूप में प्रचारित करना अनुचित है।'