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राजस्थान में 5 सीटों पर केंद्रीय मंत्री-स्पीकर समेत बडे़ नेता मैदान में, कल ईवीएम बंद होगा भाग्य का फैसला

जोधपुर.

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान में शुक्रवार को राजस्थान की 13 सीटों पर भी वोट डाले जाएंगे। 2019 के चुनाव में ये सभी सीटें भाजपा के खाते में आई थीं। इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैलियों में कांग्रेस और पूर्व की गहलोत सरकार पर चुन-चुन कर निशाना साधकर पार्टी का प्रभुत्व बनाए रखने का प्रयास किया है। वहीं, कांग्रेस की तरफ से भी केंद्र सरकार के साथ ही प्रदेश सरकार पर निशाना साधा गया और विधानसभा की हार को लोकसभा चुनाव में जीत में बदलने का प्रयास किया गया है।

इन सबके बीच 13 में से पांच सीटें बाड़मेर-जैसलमेर, जोधपुर, कोटा, जालोर और बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट ऐसी हैं जिन पर सबकी निगाहें हैं, जहां से दो केंद्रीय मंत्री, लोकसभा के स्पीकर और पूर्व कांग्रेसी सीएम के बेटे की किस्मत दांव पर लगी है।

जोधपुर : उलझे स्थानीय समीकरण, गजेंद्र को मोदी का दम
केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के पास प्रधानमंत्री मोदी के नाम की सबसे बड़ी ताकत है। राम मंदिर जैसे मुद्दों और प्रदेश में पानी की परियोजनाओं पर कराए काम के दम पर वह जीत को लेकर आश्वस्त हैं। उनके सामने कांग्रेस के करणसिंह उचियारड़ा नया चेहरा हैं, लेकिन अपने प्रचार में वह चुनाव को जोधपुर के स्थानीय समीकरणों तक लाने में सफल दिखे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृहनगर होने के कारण वह संजीवनी को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी प्रकरण में शेखावत की परेशानी बनते रहे हैं। चुनाव से पहले भाजपा के ही विधायक बाबूसिंह से शेखावत की तनातनी भी क्षेत्र में चर्चा का विषय है। राजपूत, अल्पसंख्यक वोटों के अलावा विश्नोई, जाट, ब्राह्मण और माली मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।

कोटा-बूंदी: अपनों से ही बिड़ला की टक्कर
कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र में चुनाव इस मायने में बहुत रोचक हो गया है, क्योंकि यहां वास्तविकता में टक्कर भाजपा के ही पूर्व और मौजूदा दिग्गजों में हैं। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के सामने भाजपा से ही कांग्रेस में गए पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल हैं। गुंजल चार महीने पहले विधानसभा का चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़े थे। बिड़ला को भाजपा के वोट कटने का खतरा है, तो कांग्रेस में भितरघात की आशंका। शहरी वोटों को लेकर भाजपा तो अल्पसंख्यकों पर कांग्रेस आश्वस्त हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में मीणा-गुर्जर वोटों का बंटवारा बहुत हद तक परिणाम प्रभावित करेगा। एक-एक वोट को बटोरने के लिए भाजपा की ओर से मंत्री किरोड़ी लाल मीणा, कांग्रेस से पूर्व मंत्री अशोक चांदना और क्षेत्र के युवा नेता नरेश मीणा दिन रात मशक्कत में जुटें हैं।

बाड़मेर-जैसलमेर: त्रिकोणीय संघर्ष में फंसे मंत्री चौधरी
यहां से केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी भाजपा की तरफ से मैदान में हैं। निर्दलीय विधायक रवींद्र सिंह भाटी के मैदान में आने से चौधरी त्रिकोणीय संघर्ष में फंस गए हैं। कांग्रेस से उम्मीदवार राम बेनीवाल हैं। सीट पर जीत का गणित जाट, राजपूत और अल्पसंख्यक वोटों के बंटवारे से निकलेगा। भाटी गुजरात जाकर रुपाला प्रकरण को हवा दे आए हैं। इसके अलावा अल्पसंख्यक वोट में भी सेंधमारी कर सकते हैं। इधर, कांग्रेस जाट और अल्पसंख्यक वोटों की लामबंदी से मैदान मारने की तैयारी में जुटी है। चौधरी को प्रधानमंत्री मोदी के नाम का सहारा तो है, लेकिन जातिगत और पार्टी के कोर वोटों में सेंधमारी रोकना उनकी चुनौती बना हुआ है।

बांसवाड़ा-डूंगरपुर: आदिवासी नेताओं में साख की जंग
यहां प्रत्याशी भी आदिवासी समुदाय के हैं और निर्णायक भी आदिवासी मतदाता हैं। पूरा चुनाव जनजातीय मुद्दों पर टिका है। दशकों से क्षेत्र में कांग्रेस के बड़े आदिवासी चेहरे और कई बार के विधायक और मंत्री रहे महेंद्रजीत सिंह मालवीय को इस बार भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। सामने भारतीय आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार विधायक राजकुमार रोत हैं। कांग्रेस ने भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन किया, लेकिन कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार ने अंतिम समय में नामांकन वापस ही नहीं लिया। ऐसे में मुकाबला कहने को त्रिकोणीय है, लेकिन कांग्रेस को समर्थन रोत का करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में इसी सीट पर सभा के दौरान मंगलसूत्र वाला बयान देकर क्षेत्र को पूरे देश में चर्चित कर दिया था।

जालोर: मैदान में वैभव चुनाव गहलोत का
इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार भले ही वैभव गहलोत हों, लेकिन चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बन गया है। पुत्र को संसद पहुंचाने के लिए अशोक गहलोत ने प्रचार का अधिकांश समय इसी सीट पर बिताया है। पिछला चुनाव वैभव जोधपुर से हार गए थे। पटेल समुदाय के वोट बहुतायत में होने के कारण सीट पर गुजराती संस्कृति का असर भी है। ऐसे में अशोक गहलोत गुजरात तक का दौरा कर आए हैं। भाजपा के पूर्व सांसद देवजी पटेल विधानसभा चुनाव हार गए थे। इसलिए भाजपा की ओर से उनके स्थान पर लुंबाराम को नए चेहरे के तौर पर उतारा गया है।

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