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मैनेजमेंट भरोसे भाजपा, कहां चूक रहा विपक्ष, पश्चिम UP का चुनावी माहौल

लखनऊ

अयोध्या में 22 जनवरी को जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी तो उसके कुछ अरसे बाद तक लग रहा था कि तीसरी बार भी भाजपा सरकार के लिए चुनावी समर में लहर बन गई है। अब रामलला को विराजमान हुए करीब तीन महीने बीत चुके हैं और लोकसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण का मतदान होने वाला है। इन दोनों राउंड में पश्चिम यूपी में सहारनपुर से पीलीभीत तक की सीटों पर मतदान होना है। लेकिन अब जब जमीनी हकीकत को भांपते हैं तो हालात कुछ और नजर आते हैं। तीन महीने पहले नजर आ रही लहर अब नहीं दिखती और उसके मुकाबले भाजपा मैनेजमेंट के भरोसे है।  

सहारनपुर से नोएडा और गाजियाबाद से लेकर पीलीभीत तक वह माहौल नहीं दिखता, जिसकी उम्मीद भाजपा कर रही थी। हालांकि सवाल यह है कि इसका फायदा विपक्ष कितना उठा पाएगा। हालांकि यह चुनाव भाजपा के खिलाफ भी नहीं है, बस पहले जैसी लहर का अभाव दिखता है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि लगातार दो बार सत्ता में रहने के चलते पार्टी के कार्यकर्ता थोड़े भरोसे में नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि पिछले दो चुनावों जैसी मेहनत और उत्साह जमीन पर नहीं दिखता। वहीं पार्टी के तमाम नेताओं को लगता है कि जनता भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी को जिताने का फिर मन बना चुकी है। वहीं विपक्ष की भी कहीं लहर नहीं दिखती, यही वजह है कि भाजपा के लोग भी बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं दिखते।

हालांकि कुछ सीटों पर भाजपा की आंतरिक लड़ाई और जातीय समीकरणों के चलते स्थिति चिंताजनक लग रही है। इन सीटों में मुजफ्फरनगर शामिल है। यहां से महज 6 हजार वोटों के अंतर से 2019 में संजीव बालियान जीते थे। इस बार सपा और कांग्रेस गठबंधन ने हरेंद्र मलिक को उतारा है तो वहीं बसपा कैंडिडेट दारा सिंह प्रजापति भी कमजोर नहीं है। दलितों और पिछड़ों का एक वर्ग उनके साथ है, जो अब तक भाजपा को मजबूती के साथ वोट दे रहा था। वहीं जाटों का एक खेमा, मुस्लिम एवं कई अन्य बिरादरियां सपा-कांग्रेस उम्मीदवार के साथ जाने की बात कर रहे हैं। ऐसे में संजीव बालियान टाइट फाइट में फंसते दिख रहे हैं।

मेरठ, मुजफ्फरनगर जैसी सीटों पर क्या हाल, बालियान कैसे फंसे

ऐसी ही स्थिति मेरठ, सहारनपुर समेत कई सीटों पर है। उम्मीदवारों को लेकर आंतरिक नाराजगी भाजपा में नोएडा और गाजियाबाद जैसी सीटों पर भी है, लेकिन इन गढ़ों में विपक्ष इतना कमजोर है कि टक्कर दिखती नहीं। इन सबके बीच ठाकुर बिरादरी की ओर से भाजपा के खिलाफ पंचायतें होना माहौल को गर्म कर रहा है। मुजफ्फरगर सीट में आने वाले सरधना में ठाकुर नाराज हैं। इसके अलावा बालियान से संगीत सोम की भी नहीं बनती, जो ठाकुर नेता हैं। इसलिए चर्चा है कि सरधना से संगीत सोम को झटका लग सकता है।

ठाकुरों की पंचायत भी माहौल बिगाड़ रही, कैसे हो सकता है असर

गाजियाबाद से वीके सिंह को टिकट न मिलने से भी ठाकुरों का एक वर्ग खफा है। ऐसे में भाजपा के लिए वफादार वोटर कहे जाने वाले ठाकुरों का गुस्सा पार्टी की टेंशन बढ़ा रहा है। यही वजह है कि लहर तो दिख नहीं रही, उलटे भाजपा के लिए मैनेजमेंट की परीक्षा वाला यह चुनाव बन गया है। उत्तर प्रदेश में चुनाव का माहौल पश्चिम से ही बनता रहा है, लेकिन यहां की ठंडक पूर्वी यूपी, अवध, बुंदेलखंड में क्या असर डालेगी। यह देखना होगा। दरअसल राजनीति में असर 1+1 मिलकर 11 होने जैसा होता है। कई समुदायों का ध्रुवीकरण भाजपा के खिलाफ मजबूत कैंडिडेट के पक्ष में दिखता है। ऐसे में ठाकुर भी साथ गए तो कई सीटों पर नतीजा चौंका भी सकता है।

 

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