
युवती में पाया गया आँस्टियो सरकोमा नामक हड्डी का कैंसर
टीम एक्शन इंडिया
सोनीपत: फिम्स के प्रबंध निदेशक रजत जैन ने बताया कि मरीज हमारे अस्पताल मे घुटने के असहनीय दर्द व सूजन की शिकायत लेकर आई थी। जो पहले भी कई जगह ईलाज करवा चुकी थी। अपनी परेशानी से निजात न मिल पाने के फलस्वरूप रोगी अपनी आखरी आस लेकर फिम्स अस्पताल मे आई। इतने लम्बे समय तक घुटने के दर्द व सूजन का होना विचित्र व असामान्य था। मरीज की जांच करने के उपरांत प्रभावित हिस्से की बायोप्सी की गई। जिससे पता चला कि मरीज को आँस्टियो सरकोमा नामक हडड्ी का कैन्सर है।
युवती के रोग की गम्भीरता को देखते हुए, अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप एक टयूमर बोर्ड गठित किया गया। जिसमे फिम्स अस्पताल के चार अलग-अलग विभागों के वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम बनाई गई। केस को बारीकी से पढ. व समझकर ईलाज की रूपरेखा तैयार की गई। कैन्सर विशेषज्ञ डा0 सन्नी जैन की देखरेख मे कीमो थैरेपी व टारगेटिड थैरेपी की गई। चार चक्र की कीमो थैरेपी के बाद रोगी के कैन्सर का आकार छोटा हुआ।
उसके बाद कैन्सर के उस भाग को निकालने का फैसला किया गया। प्रबंध निदेशक रजत जैन ने कहा कि रोगी का पारम्परिक विधि से ईलाज करने का मतलब था कि एक 22 वर्षीय युवती का अपना पैर खो देना तथा जीवनभर अपंग व लाचार होकर दूसरों पर निर्भर हो जाना……।
वह बच्ची भरपूर जिंदगी जी सके, इसके लिए अमेरिका के विशेषज्ञों से सघन विचार-विमर्श करके एक अद्भुत व विश्वसनीय प्रकार की सर्जरी अमल मे लाने का निर्णय लिया गया। अन्तत:, हडड्ी व जोड. रोग विशेषज्ञ डा0 पवन कुमार गाबा द्वारा मरीज की, लिम्ब प्रोसथेसिस व सेलवेशन सर्जरी करने की योजना बनाई गई। ऐसे में मरीज की जांघ की हडड््ी, कूल्हे की हडड्ी व पूरा घुटना निकाला गया।
फिम्स की टीम द्वारा लगातार कई घन्टे की नाजुक सर्जरी करके, उसकी जगह टाईटेनियम व कोबाल्ट क्रोमियम का नया घुटना, जांघ व कूल्हे की हडड्ी लगाई गई। सोनीपत में इस प्रकार की सर्जरी पहली बार फिम्स में हुई है। रोगी को आईसोलेंशन कक्ष में रखा गया है ताकि इस नाजुक व मेजर सर्जरी के उपरांत उसे किसी प्रकार के वायरस व धूल, मिटटी के प्रभाव से पूर्णत: मुक्त रखा जा सके। साथ ही उसे स्वस्थ वातावरण मिलने से, रिकवरी शीघ्र होने मे मदद मिल सके। सोनीपत में विदेशी विधि से पहली बार हुए इस सफल उपचार की खूबी यह है कि ये न्यूनतम दर्द देने वाली सर्जरी है, जिसमें रोगी का ज्यादा खून भी नही बहता।