स्वेज नहर में फंसा कार्गो शिप निकलने के बाद बनने लगा क्रूड में नरमी का माहौल

नई दिल्ली। एक्शन इंडिया न्यूज़
स्वेज नहर के जरिए कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की सप्लाई का रास्ता खुल जाने के कारण एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड में नरमी का माहौल बनने लगा है।
तेल निर्यातक देशों की चली तो कच्चे तेल की ये नरमी जल्दी ही खत्म भी सकती है।
स्वेज नहर में एक 400 मीटर के कार्गो शिप के फंस जाने की वजह से पिछले एक सप्ताह से क्रूड की सप्लाई पर लगभग ठप हो गई थी, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में नरमी के बावजूद कच्चे तेल की कीमत चढ़ने लगी थी।
सोमवार को स्वेज नहर में फंसे कार्गो शिप को कई दिन की कोशिश के बाद निकाल लिया गया।
इसके बाद स्वेज नहर के दोनों छोर पर लगा सी-ट्रैफिक जाम खत्म हो गया।
इसके साथ ही जहाजों का आवागमन भी शुरू हो गया था।
स्वेज नहर से होकर सी-ट्रैफिक के शुरू होने का सीधा असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पर पड़ा। आज ब्रेंट क्रूड 15 सेंट टूट कर 64.83 डॉलर प्रति बैरल की कीमत पर कारोबार करने लगा।
वहीं अमेरिकी कच्चा तेल डब्ल्यूटीआई क्रूड 0.1 फीसदी गिर कर 61.55 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था। सोमवार को जब तक कार्गो शिप को नहीं निकाला गया तब तक ब्रेंट क्रूड का दाम 0.6 फीसदी चढ़ा हुआ था।
स्वेज नहर में फंसे हुए कार्गो शिप के निकल जाने के बाद स्थिति बदल गई और कच्चा तेल बाजार नरमी की ओर बढ़ने लगा।
हालांकि तेल बाजार की ये नरमी फिलहाल अस्थाई मानी जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार की नजरें फिलहाल तेल निर्यातक देश (ओपेक कंट्रीज) और उनके सहयोगी देशों (ओपेक प्लस) की अगली बैठक पर टिकी हुई हैं।
इस बैठक में दुनिया भर में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए एक बार फिर कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती को जारी रखने का फैसला किया जा सकता है।
इन देशों की बैठक 1 अप्रैल को होने वाली है।
माना जा रहा है कि ये देश कच्चे तेल की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए उत्पादन में कमी करने और कम उत्पादन को आगे भी जारी रखने की बात को लेकर एक मत हो सकते हैं।
जानकारों का कहना है कि सऊदी अरब जून तक कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती को जारी रखने के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार होने की बात पहले ही कह चुका है।
तेल का उत्पादन और उसका निर्यात करने वाले दूसरे देश भी कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने के ओपेक कंट्रीज के पुराने फैसले को आगे भी जारी रखने का फैसला सकते हैं।
अगर ऐसा हुआ तो अर्थव्यवस्था की मंदी के इस दौर में पूरी दुनिया को महंगे कच्चे से ही काम चलाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।