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छत्तीसगढ़ का ‘समाधान’… क्या CM के साथ दो डिप्टी सीएम चलाएंगे बीजेपी सरकार?

रायपुर

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों हुई हार को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव ने कहा है कि नतीजे अकल्पनीय हैं एवं पार्टी को इस पर चिंतन करना होगा. छत्तीसगढ़ चुनाव में भाजपा ने 90 सदस्यीय विधानसभा में 54 सीट जीतकर बड़ी जीत दर्ज की है. इस चुनाव में कांग्रेस ने 35 सीट पर तथा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने एक सीट पर जीत हासिल की है. तीन बार के विधायक सिंहदेव अंबिकापुर सीट पर भाजपा के राजेश अग्रवाल से 94 वोट के मामूली अंतर से हार गए.

छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी से मुख्यमंत्री पद के दावेदार तो बहुत हैं, लेकिन न तो मध्य प्रदेश जैसा सब कुछ साफ साफ है, न राजस्थान की तरह बुरी तरह उलझा हुआ है. छत्तीसगढ़ में न तो कोई शिवराज सिंह चौहान है, जिसे बीजेपी की जीत का पूरा क्रेडिट मिल रहा हो, और न राजस्थान की तरह कोई वसुंधरा राजे हैं, जो कुछ विधायकों के साथ बैठक बुला कर बीजेपी आलाकमान पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा हो. 

कहने को पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह भी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में जीत का श्रेय तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मिल रहा है. ऐसे में रमन सिंह की हैसियत एक सीनयर और सम्मानित नेता से ज्यादा नहीं रह गयी है, लेकिन ऐसा भी नहीं कि उनको कहीं पूछा ही न जाये. 

ये भी है कि मुख्यमंत्री नहीं बन पा रहे बीजेपी नेताओं को ज्यादा निराश होने जरूरत नहीं है, जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी चुनाव कैंपेन के दौरान 'मोदी की गारंटी' का जोर देकर जिक्र कर रहे थे, छत्तीसगढ़ बीजेपी के बड़े नेताओं को फिलहाल तो ये मान कर ही चलना चाहिये कि मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर होने के बाद डिप्टी सीएम बनाये जाने की गारंटी जैसी ही संभावना बची रहेगी.

तीन राज्यों में चुनावी जीत को जोड़ कर देखें तो पूरे देश में बीजेपी का 12 राज्यों में शासन हो रहा है, और चार राज्य ऐसे भी हैं जहां बीजेपी महज गठबंधन सहयोगी की भूमिका में है – और इनमें से पांच राज्य ऐसे हैं जहां डिप्टी सीएम भी बनाये गये हैं. अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, नगालैंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने नेताओं को डिप्टी सीएम बना रखा है.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को लेकर भी ऐसी ही संभावना देखी जानी चाहिये. मध्य प्रदेश को छोड़ दें तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में एक से ज्यादा डिप्टी सीएम बनाये जाने की बड़ी संभावना लगती है.

मुख्यमंत्रियों की बात करें तो रमन सिंह से आगे रेस में अरुण साव, विष्णुदेव साय, और रेणुका सिंह का नाम लिया जा रहा है – इनके बाद जिन नेताओं को मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल माना जा रहा है, उनमें अरुण साव और ओपी चौधरी का नाम है. अगर ये सीएम नहीं बन पाये तो डिप्टी सीएम की कुर्सी पर दावेदारी तो रहेगी ही.

बीजेपी ने चुनावों से पहले से ही ओबीसी कार्ड खेल दिया था, जिसका मकसद कांग्रेस की ओबीसी पॉलिटिक्स को न्यूट्रलाइज करना था. छत्तीसगढ़ में बीजेपी की जीत इस बात का सबूत भी है. और वैसे ही ही बीजेपी ने आदिवासी वोटों को साधने की भी कोशिश की थी – और केंद्रीय मंत्री अमित शाह का एक बड़े आदिवासी नेता के लिए कुछ बड़ा सोचे होने की बात करना भी इसी रणनीति का हिस्सा रहा. 

अब छत्तीसगढ़ के नये मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम के नाम जो भी सामने आयें, एक बात तो पक्की है – दोनों में से एक ओबीसी और दूसरा आदिवासी नेता ही होगा. अगर ओबीसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो आदिवासी नेता अपने लिए डिप्टी सीएम की कुर्सी पक्की समझें. इसके उलट अगर कुछ होता है तो भी फॉर्मूला यही होगा. 

अमित शाह ने किसके बारे में बड़ा सोचा है?

छत्तीसगढ़ को आदिवासी राज्य के रूप में ही देखा जाता है, क्योंकि यहां की 32 फीसदी आबादी ST कैटेगरी में आती है. आदिवासी समुदाय से आने वाले बीजेपी नेता विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे माना जा रहा है – और उसकी एक बड़ी वजह बीजेपी नेता अमित शाह का ही एक बयान भी है. 

विधानसभा चुनाव के दौरान अमित शाह ने साफ साफ तो बस इतना ही कहा था, 'इनके बारे में मैंने कुछ बड़ा सोचा है.' अब विधानसभा चुनाव के दौरान किसी नेता के लिए कोई बड़ा नेता ऐसी बात कहे तो भला क्या समझा जाना चाहिये. 

विधानसभा चुनाव में तो कुछ बड़ा सोचे जाने का मतलब मुख्यमंत्री बनाना ही होता है. राजनीतिक बयान तो ऐसे ही होते हैं. चुनाव नतीजे आने के बाद मालूम हुआ कि विष्णुदेव साय ने अपने इलाके में जो किया है, वो कमाल ही कहा जाएगा – अपने इलाके की सभी सीटें कांग्रेस से छीन कर बीजेपी को सौंप दी है. 

विष्णुदेव साय कुनकुरी विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में थे, जहां वो कांग्रेस प्रत्याशी को 25 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दे चुके हैं – और अपने साथ साथ सरगुजा संभाग की सभी सीटें भी बीजेपी के खाते में ट्रांसफर करा दी है. 

2018 में सरगुजा के लोगों ने ये मानकर कि सरकार बनने पर टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री बनेंगे कांग्रेस को दिल खोल कर वोट दिया था – और सभी 14 सीटें कांग्रेस की झोली में डाल दी थीं. लेकिन ढाई साल के लिए, राहुल गांधी के वादे के मुताबिक,  मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल ने सरगुजा के लोगों की इच्छा पूरी नहीं होने दी, तो उन लोगों ने कांग्रेस से ब्रेकअप कर लिया – और सभी 14 सीटें इस बार बीजेपी को दे डाली. 

अब तो बीजेपी से वहां के लोगों को ऐसी उम्मीद नहीं होनी चाहिये कि वो भी विष्णुदेव साय के साथ भी टीएस सिंहदेव जैसा ही सलूक करेगी  – और यही बात विष्णुदेव साय की मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को मजबूती देती है.

गौर करने वाली बात ये है कि विष्णुदेव साय को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ साथ पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का भी करीबी माना जाता है. पहले वो छत्तीसगढ़ बीजेपी के अध्यक्ष और मोदी सरकार की पहली पारी में राज्य मंत्री भी रह चुके हैं. 

छत्तीसगढ़ में डॉक्टर रेणुका सिंह का नाम भी भावी मुख्यमंत्री के रूप में लिया जा रहा है. खास बात ये है कि वो भी आदिवासी समाज से ही आती हैं. रेणुका सिंह फिलहाल मोदी सरकार में राज्य मंत्री हैं, और पहले छत्तीसगढ़ में महिला मोर्चा की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. 

ये ठीक है कि वो विष्णुदेव साय की तरह बीजेपी को बंपर सीटें तो नहीं जिताई है, फिर भी दावेदारी तो बनती है. वैसे भी जो भी मुख्यमंत्री बने, पहला टास्क तो अगले चुनाव में लोक सभा की सभी सीटों पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करनी ही है – और मौका मिलने में ये काम रेणुका सिंह भी कर सकती है. 

डिप्टी सीएम की कुर्सी भी तो है ही

वैसे तो छत्तीसगढ़ बीजेपी अध्यक्ष अरुण साव भी अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखे जा रहे हैं, लेकिन अगर विष्णुदेव साव से रेस में पिछड़े तो डिप्टी सीएम की कुर्सी के हकदार तो हैं ही. ये भी बता दें कि 2022 में विष्णुदेव साय को हटाकर ही अरुण साव को सूबे में बीजेपी की कमान सौंपी गयी थी. 

बिलासपुर की लोरमी सीट से विधानसभा चुनाव जीतने वाले अरुण साव फिलहाल सांसद हैं. अगस्त, 2022 में अरुण साव को छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी दिया जाना बीजेपी की खास रणनीति का हिस्सा था. 

बीजेपी ने अरुण साव के जरिये ही कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जनाधार पर पहली चोट की थी, नतीजे बता रहे हैं कि वो रणनीति कितनी कारगर रही. असल में कुर्मी बिरादरी से आने वाले भूपेश बघेल कांग्रेस के ओबीसी चेहरा हैं, जिसे काउंटर करने के लिए बीजेपी को भी ऐसे ही एक नेता की जरूरत थी. 

अरुण साव छत्तीसगढ़ में बीजेपी का ओबीसी चेहरा हैं और वो साहू यानी तेली समुदाय से आते हैं. छत्तीसगढ़ में ओबीसी आबादी 50 फीसदी है, लेकिन साहू उसमें 15 फीसदी है – जबकि भूपेश बघेल वाली कुर्मी आबादी महज 7-8 फीसदी है. एक बात और, साहू समुदाय पूरे छत्तीसगढ़ में जगह जगह फैला हुआ है, जबकि कुर्मी आबादी छत्तीसगढ़ के मध्य क्षेत्र और रायपुर के आस पास खेती बारी से जुड़े किसान हैं. कांग्रेस को घेरने की बीजेपी की ये बड़ी चाल चुनावों में काम कर गयी और कांग्रेस की छुट्टी हो गयी.  

छत्तीसगढ़ में सत्ता का नेतृत्व करने वाले संभावित नेताओं में आईएएस अधिकारी रहे ओपी चौधरी का नाम भी लिया जा रहा है. तेज तर्रार अफसर रहे ओपी चौधरी को राजनीति में बीजेपी ने जिस मकसद से लाया था, उनके तेवर भी वैसे ही देखे जाते हैं. हालांकि, हाल फिलहाल वो सोशल मीडिया पर सफाई भी देते देखे गये कि उनके खिलाफ अफवाहें फैलाने की कोशिश की जा रही है – मुख्यमंत्री न सही, लेकिन डिप्टी सीएम की रेस में तो वो बने ही हुए हैं.

रमन सिंह का क्या होगा? 

डॉक्टर रमन सिंह की एक खासियत ही उनको शिवराज सिंह और वसुंधरा राजे से अलग करती है, वो है उनका सभ्य  और बीजेपी का अनुशासित कार्यकर्ता बने रहना. रमन सिंह की तरफ से न तो कभी कोई शिकायत सुनने को मिली, न किसी तरह की गुटबाजी में शामिल होने का ही आरोप लगा है. 

निश्चित तौर पर वो इतने प्रयास तो कर ही रहे होंगे कि एक और मौका दिया जाये तो वो अधूरे सपनों को खुद पूरा करना चाहेंगे. लगातार तीन बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके रमन सिंह चावल वाले बाबा के नाम से लोकप्रिय रहे हैं, लेकिन अपनी पारी वो करीब करीब खेल चुके हैं – अब अगर कोई संभावना बनती है, और बीजेपी नेतृत्व को कहीं कोई वोट बैंक जैसी मजबूरी समझ में आती है तो उनको किसी राजभवन भेजा जा सकता है. 

लेकिन अगर बीजेपी आलाकमान को छत्तीसगढ़ में कोई ऐसा नहीं मिला जो 2024 के चुनाव में लोक सभा की सभी नहीं तो ज्यादातर सीटें बीजेपी को दिला सके, तो एक बार रमन सिंह का ख्याल तो मन में आएगा ही – और अब तो रमन सिंह के लिए बस इतना ही काफी है, जैसे कोई तिनके का सहारा हो.

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