सेहत और स्वास्थ्य

नोरोवायरस के वैक्सीन का क्लिनिकल टेस्ट आरंभ: इसका महत्व और प्रभाव

नोरोवायरस एक बेहद संक्रामक वायरस है जो हर साल दुनिया भर में करोड़ों लोगों को संक्रमित करता है. यह वायरस दस्त और उल्टी का कारण बनता है और अस्पतालों, नर्सिंग होम, जेलों, स्कूलों और क्रूज जहाजों में तेजी से फैल सकता है. अमेरिका में भी हाल ही में इस वायरस के मामले तेजी से बढ़े हैं, खासकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में. बीबीसी के अनुसार, विशेषज्ञों का कहना है कि नोरोवायरस इतना कठोर होता है कि यह गर्मी, ठंड और खुश्की को सहन कर सकता है और सतहों पर कई दिनों तक जिंदा रह सकता है. यही कारण है कि इसे खत्म करना मुश्किल होता है.

हालांकि, शोधकर्ताओं ने पाया है कि कुछ लोगों में जेनेटिक फैक्टर होते हैं जो उन्हें इस बीमारी से बचाते हैं. उदाहरण के लिए, यूरोपीय मूल के लगभग 20% लोगों में FUT2 नामक जीन में एक उत्परिवर्तन होता है. यह उत्परिवर्तन उन्हें नोरोवायरस के सबसे आम प्रकारों में से एक, GII-4 से बचाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह जानकारी भविष्य में बेहतर नोरोवायरस रोधी दवाओं को विकसित करने में मदद कर सकती है. साथ ही ब्लड ग्रुप भी इस वायरस के रेजिस्टेंस और सेंसिटिविटी में भूमिका निभाता है.

नोरोवायरस की वैक्सीन

नोरोवायरस तेजी से बदलता रहता है, जिससे वैक्सीन बनाना मुश्किल हो जाता है. फिर भी, हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मानव आंत की सेल्स के भीतर वायरस को उगाने के तरीके खोजे हैं. इससे यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि इम्यून सिस्टम से सबसे मजबूत एंटीबॉडी प्रतिक्रिया को कैसे प्रेरित किया जाए.

नोरोवायरस वैक्सीन का क्लिनिकल टेस्ट शुरू

वैज्ञानिकों का मानना है कि एक सफल टीके को कई नोरोवायरस उपभेदों से बचाना चाहिए. कई कंपनियां और शोध ग्रुप विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके नोरोवायरस वैक्सीन विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं. Moderna ने mRNA (messenger RNA) नोरोवायरस वैक्सीन का क्लिनिकल टेस्ट शुरू किया है. वहीं बोस्टन स्थित हिलीवैक्स नामक कंपनी शिशुओं, बच्चों और वयस्कों में अपने वैक्सीन उम्मीदवार का टेस्ट कर रही है.

हालांकि, अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि इस टीके को कितनी बार बूस्टर खुराक के रूप में दोबारा लेना होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े टेस्ट के नतीजों के बाद ही टीके की प्रभावशीलता के बारे में ठोस निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं. फिर भी, वैज्ञानिक आस लगा कर बैठे हैं कि आने वाले कुछ सालों में कम से कम एक नोरोवायरस वैक्सीन विकसित हो सकती है. यह इस वायरस के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.

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