कोरोना ! तुम कब जाओगे ? - नवीन गौतम

नई दिल्ली । Action India News
अरे भई कोरोना ! तुमने तो हद ही कर दी यार , ऐसे भी कोई आता है क्या ? अगर कोई मेहमान बनकर घर भी आता है तो मुश्किल से 2-4 दिन ही टिकता है और चला जाता है । पर तुम हो कि अभी तक गले पड़े हुए हो , आख़िर कब जाओगे ? जाओ भाई , अब तो अपने बोरिया-बिस्तर बाँधो और निकल लो पतली गली से । संपतलाल की बातों को सुनकर कोरोना अभी भी पलंग पर पड़ा पड़ा मुस्कुरा रहा था ।
अजी , मुस्कुरा क्या रहा था वो तो सीधे सीधे उस पर हँस रहा था । वो तपाक से बोला , भई मैं तो कुछ दिन के लिए ही आया था पर तुम लोगों ने इतनी असावधानियाँ बरती कि मैं तो यहीं का होकर रह गया , अब जाने की इच्छा ही नहीं होती । सम्पत बिफरते हुए बोला , गज़ब करते हो यार , तुम तो नकटे ही हो गए ।
तुम्हें पता है तुम्हारी वजह से पूरी दुनिया में डेढ़ करोड़ लोगों की वाट लगी पड़ी है और इधर हमारे देश में 14 लाख लोगों का बेड़ा गर्क कर रखा है संक्रमण से । तुम वापस अपने पिताजी के पास क्यों नहीं चले जाते ? जाओगे कैसे ? तुम्हारे पिताजी भी बड़े होशियार निकले भई , तुम्हें अपने यहाँ पाल पोसकर बड़ा किया और बाद में धक्के मारकर पूरी दुनिया में घूमने के लिए छोड़ दिया । तुम घर से क्या निकले , उन्होंने तो हमारी सीमाओं में घुसपैठ करना शुरू कर दिया ।
ऐसे भी कोई करता है क्या ? वो तो हमने ही हिम्मत दिखाई और तुम्हारे पिताजी को खूब आड़े हाथों लिया तब जाकर चुप बैठे वो । साथ ही 59 एप को ताला लगाना पड़ा और तुम्हारे चाइनीज माल पर रोक लगानी पड़ी । वरना पता नहीं तुम तो क्या क्या सोचकर आये थे । और तो और तुम्हारे चक्कर में 3 महीने तक लॉकडाउन रखना पड़ा ।
आज भी तुम जिस गली , मुहल्ले से निकल जाते हो वो सील कर दिए जाते हैं । लोगों के सारे काम धंधे चौपट हो गए , मजदूर बेघर हो गए , आये दिन मियाँ-बीवी के झगड़े कोर्ट में पहुँच रहे हैं , अर्थव्यवस्था उधार के तक़ाज़ों की तरह ज़िरह कर रही है , फिल्मी कलाकर सिनेमाघर के पर्दे पर आने के लिए तरस रहे हैं और बच्चे , वो तो ऑनलाइन क्लासों से इतने उकता गए हैं कि इंतजार कर रहे हैं कि कब स्कूल , कॉलेज खुले और ऑफलाइन हों ।
शादियों का सीजन भी बंद करवा दिया जिसके चलते कई तो कुँवारे बनकर इधर उधर डोल रहे हैं बेचारे । तुम्हारे अंदर थोड़ी बहुत शर्म बची हो तो कहीं जाकर डूब मरो चुल्लू भर पानी में । लोगों पर कुछ तो रहम करो । इतना सुनने के बाद भी कोरोना मुस्कुराए जा रहा था , उस पर सम्पत की बातों का कोई असर नहीं हो रहा था ।
तभी हँसते हुए बोला , मैं तो कबका चला जाता पर जितना डर और सावधानियाँ तुम लोगों ने लॉकडाउन में बनाये रखी थी वही अब भी बनाये रखते तो मैं इतने दिन नहीं टिकता । जब मैं पहली बार आया था तो तुम लोग घर के खिड़की दरवाजे तक छूने से भी डरते थे , साबुन से बार बार अपने हाथ धोते थे , हाथों को सेनेटाइज किया करते थे और दिनभर मास्क पहने रहते थे ।
और अब , जबसे लॉकडाउन खुला है तबसे तुम्हें मेरा कोई डर ही नहीं रहा । सड़कों पर , बाजारों में , दुकानों पर खुलेआम ऐसे घूम रहे हो जैसे कुछ हुआ ही नहीं है । अब तो कई लोगों ने हाथों को साबुन से धोना और सेनेटाइज करना भी बंद कर दिया । पास पास बैठकर ऐसे बतियाते हैं जैसे दुबारा मिलना ही नहीं होगा ।
गाड़ी चलाते समय मास्क भी केवल इसलिए पहनते हो कि कहीं ट्रैफिक वाले चालान न काट दे और पहनने का तरीका भी देखो , नाक तो बाहर ही रखते हो । लापरवाही तुम करो और बदनाम मैं हुए जा रहा हूँ । उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे । ऐसे ही रहोगे तो मैं तो नहीं जाने वाला यहाँ से ।