एक कहावत बड़ी पुरानी है सर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाली. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ताजा बयान पर ये कहावत फिट बैठती है. 23 जून को पटना में विपक्षी नेताओं की बैठक है. ममता के सुझाव पर ही ये मीटिंग की जगह पटना तय की गई है. अब सवाल ये है कि क्या इस बैठक में ममता बनर्जी और राहुल गांधी साथ साथ बैठेंगे या फिर आमने सामने. दोनों नेताओं ने पटना आने की सहमति तो दे दी है, लेकिन ममता बनर्जी ने जिस तरह से कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए हैं, संकेत अच्छे नहीं लग रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों बीजेपी के खिलाफ विपक्षों एकजुट करने में जुटे हैं. ये भी सच है कि कांग्रेस को लेकर टीएससी और समाजवादी पार्टी कैंप में कोई खास उत्साह नहीं है.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तीन महीने पहले कहा था कि उनके लिए तो कांग्रेस और बीजेपी पार्टी एक जैसी है. आज वही बात ममता बनर्जी ने भी दोहराई है. टीएमसी चीफ ने कहा कि कांग्रेस बीजेपी की गोद में बैठी है और बीजेपी कांग्रेस की गोद में… दक्षिण 24 परगना जिले में एक कार्यक्रम में ममता ने कहा कि कांग्रेस हमसे सहयोग चाहती है और हम पर हमले भी करती है. हम बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस को समर्थन देने को तैयार हैं लेकिन CPI(M) से हाथ मिलाने के बाद आप बंगाल में हमसे सहयोग मांगने न आए.
आपको बता दें कि पंचायत चुनाव के लिए कांग्रेस ने बंगाल में लेफ़्ट के साथ गठबंधन किया है. ममता और कांग्रेस के छत्तीस वाले रिश्ते जगजाहिर हैं. यूपी और महाराष्ट्र के बाद बंगाल में लोकसभा की सबसे अधिक मतलब 42 सीटें हैं. महाराष्ट्र में तो पहले से महाविकास अघाड़ी है. इस गठबंधन में कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट शामिल है.
कांग्रेस कभी भी बड़ा दिल नहीं दिखाती- अखिलेश यादव
नीतीश कुमार इस प्रयास में हैं कि बीजेपी के खिलाफ हर सीट पर विपक्षी एक ही उम्मीदवार हो, पर आज के राजनीतिक हालात में ये तो दूर की कौड़ी लगती है. सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में भी विपक्षी एकता किसी सपने से कम नहीं है. जिस गठबंधन में मायावती रहेंगी, उसमें अखिलेश यादव नहीं हो सकते हैं. अब ऐसे में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का साझा उम्मीदवार वाला फार्मूला यहां तो खपा लागू नहीं हो सकता है. अब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में चुनावी गठबंधन हो जाए ये भी बड़ा मुश्किल काम है.
अपने करीबी नेताओं की मीटिंग में अखिलेश यादव कहते रहते हैं कि कांग्रेस कभी भी बड़ा दिल नहीं दिखाती है. उसका रवैया क्षेत्रीय पार्टियों को दबाने का रहा है. समाजवादी पार्टी के एक सीनियर लीडर ने कहा यूपी में कांग्रेस कहीं भी ज़मीन पर नहीं है और वे चाहते हैं कि उन्हें अधिक सीटें गठबंधन में मिले. नाम न जाहिर करने की शर्त पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस को तो छह सीटें भी नहीं मिलनी चाहिए. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 105 सीटें देने के फैसले पर समाजवादी पार्टी के नेता अब भी पछताते रहते हैं.
कांग्रेस ने केजरीवाल से न मिलने का किया फैसला
विपक्षी एकता में तीसरा सबसे बड़ा पेंच आम आदमी पार्टी का है. पंजाब और दिल्ली के कांग्रेस पार्टी के नेता किसी भी सूरत में अरविंद केजरीवाल से किसी भी तरह का रिश्ता रखने को तैयार नहीं हैं. दिल्ली सरकार में मंत्री और पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि कि अगर कांग्रेस पंजाब और दिल्ली में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ती है तो फिर हम भी राजस्थान और एमपी में नहीं लड़ेंगे. कांग्रेस का जवाब आया कि कर्नाटक में आप चुनाव लड़ी तो नोटा से भी कम वोट मिले. केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए राहुल गांधी से केजरीवाल मिलना चाहते थे पर अब तक समय नहीं मिला. सूत्रों से जानकारी मिली है कि पंजाब और दिल्ली यूनिट के दवाब में कांग्रेस ने केजरीवाल से न मिलने का फैसला किया है.
बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की 17 पार्टियों के नेता एक साथ मिल रहे हैं. ये बड़ी बात है. मोदी सरकार को बचाने के लिए सबको एकजुट होना है, इस बात को सब जानते हैं और मानते भी हैं. विपक्षी एकता के लिये ये शुभ संकेत है. लेकिन इसके आगे क्या ! कांग्रेस के खिलाफ कुछ नेताओं के मन में इतनी गांठें हैं कि गठबंधन की राह में अभी तो बस रोड़े दुख रहे हैं.