राजनीतिक

जीजा-साली, पति-पत्नी से लेकर चाचा-भतीजी तक, राजस्थान चुनाव में कैसे हो रहे इतने दिलचस्प मुकाबले

राजस्थान
राजस्थान विधानसभा चुनाव में हर 5 साल बाद सत्ता परिवर्तन का रिवाज नजर आता है। ऐसा कह सकते हैं कि राज्य में ज्यादातर विधानसभा क्षेत्र स्विंग सीटों वाले हैं, जो भाजपा और कांग्रेस के बीच बदलती रहती हैं। इन सबके बीच राजस्थान में इस बार कुछ बड़े ही दिलचस्प मुकाबले देखने को मिल रहे हैं। ऐसी कई सारी सीटें हैं जहां एक ही परिवार के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। इसके लिए मतदाताओं के बीच पार्टी के प्रति वफादारी की कमी को जिम्मेदार माना जा रहा है। कुछ नेताओं ने राजनीतिक दल बदले और उनकी जगह उन्हीं के परिवार के किसी सदस्य ने ले ली। इस तरह दोनों चुनावी मैदान में आमने-सामने आ खड़े हुए। जीजा-साली, पति-पत्नी, चाचा-भतीजी से लेकर सहकर्मी तक राजस्थान चुनाव में एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं।

धौलपुर में जीजा-साली का चुनावी मुकाबला
धौलपुर विधानसभा क्षेत्र में एक ही परिवार के 2 सदस्य आमने-सामने हैं। दिलचस्प बात है कि दोनों नेताओं ने पार्टियां बदली हैं। शोभारानी कुशवाहा ने 2018 में भाजपा के टिकट पर इलेक्शन लड़ा। उन्होंने कांग्रेस के डॉ. शिवचरण कुशवाह को हराया था। शोभारानी, ​​​​शिवचरण की साली (शोभारानी की बड़ी बहन की शादी शिवचरण से हुई है) हैं। उन्हें पिछले साल जून में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के कारण बीजेपी ने निष्कासित कर दिया। इस बार शोभारानी को कांग्रेस से टिकट मिला है। वहीं, बीजेपी ने शिवचरण को मैदान में उतारा है। अगर शोभारानी की बात करें तो 2017 में वह भाजपा के टिकट पर विधानसभा उपचुनाव जीत चुकी हैं। धौलपुर में इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होने की उम्मीद है, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने रितेश शर्मा को मैदान में उतारा है, जो धौलपुर नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष हैं। वह पहले कांग्रेस में थे।

दांतारामगढ़ में पति-पत्नी दे रहे टक्कर
सीकर के दांतारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में पति-पत्नी के बीच मुकाबला है। रीता चौधरी फिहलाह अपने पति व कांग्रेस विधायक वीरेंद्र चौधरी से अलग रह रही हैं। रीता को हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (JJP) ने चुनावी मैदान में उतारा है, जबकि उनके MLA पति को कांग्रेस ने फिर से उम्मीदवार बनाया है। मालूम हो कि वीरेंद्र चौधरी कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और 7 बार के विधायक नारायण सिंह के बेटे हैं। अब यह स्थिति मतदाताओं को असमंजस में डाल रही है कि बेटा को चुनें या फिर बहू को? चौधरी परिवार परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहा है। हालांकि, इसमें राजनीतिक विभाजन उस वक्त हुआ जब रीता ने इसी साल अगस्त में जेजेपी का दामन थाम लिया। वह जेजेपी की महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से रीता को टिकट नहीं मिला और पार्टी ने उनके पति पर भरोसा जताया। अब देखना है कि रीता और वीरेंद्र में इस बार कौन बाजी मारता है।

चाचा और भतीजी के बीच है चुनावी रण
नागौर में मिर्धा परिवार के दो नेता एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में मुकाबला मिर्धा परिवार से ताल्लुक रखने वाले चाचा और भतीजी के बीच है। रामनिवास मिर्धा के पुत्र हरेंद्र मिर्धा नागौर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं तो भाजपा ने नाथूराम मिर्धा की पौत्री ज्योति मिर्धा को टिकट दिया है। हरेंद्र मिर्धा और ज्योति मिर्धा रिश्ते में चाचा और भतीजी लगते हैं। पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा इस साल सितंबर में ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई हैं। वैसे नागौर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर मिर्धा घराने से ताल्लुक रखने वाले चार लोग चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने नागौर विधानसभा से हरेंद्र मिर्धा, डेगाना विधानसभा से विजयपाल मिर्धा और खींवसर से तेजपाल मिर्धा को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, भाजपा ने नागौर विधानसभा सीट से ज्योति मिर्धा को चुनाव मैदान में उतारा है। नागौर में मिर्धा बनाम मिर्धा के कारण मुकाबला दिलचस्प हो गया है। हालांकि निर्दलीय उम्मीदवार और पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में हैं।

 

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