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हरियाणा: हक के लिए कोर्ट में लड़ी 25 साल लंबी कानूनी लड़ाई, अब मिलेंगे पेंशन; ग्रेच्युटी समेत बंपर लाभ

चंडीगढ़ | दिसंबर 1996 में बर्खास्त किए गए एक कर्मचारी को आखिरकार 25 साल की कानूनी लड़ाई के बाद हाई कोर्ट से न्याय मिल गया है. कोर्ट ने कर्मचारी की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करते हुए उसे सेवा में बहाल करने, नियत तारीख पर सेवानिवृत्त होने और पेंशन, ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण जैसे सभी सेवा लाभ जारी करने का आदेश दिया है.

याचिका दाखिल करते हुए यमुनानगर निवासी रमेश चंद्र शर्मा ने बताया कि उन्हें 23 फरवरी 1981 को इंडियन शुगर एंड जनरल इंजीनियरिंग कार्पोरेशन यमुनानगर में श्रम कल्याण अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया था. इसके बाद, 19 अक्टूबर 1995 को याचिकाकर्ता को उनकी स्वीकृति और श्रम आयुक्त की पूर्व अनुमति के बिना वरिष्ठ प्रशिक्षण एवं विकास अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया.

तीन माह का नोटिस देकर बर्खास्त कर दिया

अचानक 11 सितंबर 1996 को याचिकाकर्ता को 3 महीने का नोटिस देकर बर्खास्त कर दिया गया. ऐसा करते समय कोई कारण नहीं बताया गया. याचिकाकर्ता ने इसके खिलाफ अपील की जो मार्च 1998 में खारिज कर दी गई. इसके चलते याचिकाकर्ता ने 1998 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की.

हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता को श्रम कल्याण अधिकारी के तौर पर दिए गए नियुक्ति पत्र की शर्त का इस्तेमाल करते हुए बर्खास्त किया गया जबकि वह उस समय वरिष्ठ प्रशिक्षण एवं विकास अधिकारी थे.

न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना समाप्त कर दिया

यह पद याचिकाकर्ता ने स्वयं नहीं मांगा था बल्कि उसे प्रतिवादी द्वारा दिया गया था. याचिकाकर्ता पर आरोप है कि उसने श्रम कल्याण अधिकारी के पद पर रहते हुए अन्य दायित्व संभाले. कोर्ट ने कहा कि यह जिम्मेदारी उन्हें नियोक्ता ने दी है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बिना किसी शिकायत के 15 साल तक नियोक्ता की सेवा की और उसने न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना अपनी सेवा समाप्त कर दी, जो सही नहीं है.

कोर्ट ने बताया याची की नहीं कोई गलती

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता की गलती नहीं थी और बर्खास्तगी का आदेश दोषपूर्ण था. कोर्ट ने अब याचिकाकर्ता को बर्खास्तगी की तारीख से सेवा में लेने और सेवानिवृत्ति की तारीख से उसे सेवानिवृत्ति और अन्य लाभ जारी करने का आदेश दिया है.

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