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झारखंड सरकार का चुनाव आयोग को पत्र, हिमंत और शिवराज को न भड़काने दें सांप्रदायिक तनाव

रांची.

विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड सरकार ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है। पत्र में सरकार ने चुनाव आयोग से अपील की है कि वह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भाजपा नेता हिमंत बिस्व सरमा और शिवराज सिंह चौहान को सांप्रदायिक तनाव भड़काने रोकने के लिए कहे। दोनों नेता आधिकारिक तंत्र का दुरुपयोग कर रहे हैं। इसके जवाब में भाजपा ने दावा किया कि झामुमो गठबंधन की सरकार विधानसभा चुनाव को हार को लेकर डर गई है। अगर भाजपा नेता ऐसा कर रहे हैं तो राज्य सरकार ने सरमा और चौहान के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?

झारखंड के कैबिनेट सचिवालय और सतर्कता विभाग की प्रधान सचिव वंदना डाडेल ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में भाजपा पर प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को डराने का प्रयास करने का आरोप लगाया है। कहा गया है कि भाजपा धार्मिक भावनाओं को प्रभावित करके और सांप्रदायिक अशांति पैदा करके क्षेत्र में तनाव पैदा करने की कोशिश कर रही है। पत्र में चुनाव आयोग से निष्पक्षता सुनिश्चित करने और आगामी विधानसभा चुनावों के संबंध में झारखंड में तैनात सरकारी अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से पहले विस्तृत जांच करने का भी आग्रह किया गया है। लोकसभा चुनाव के दौरान अधिकारियों को चुनाव ड्यूटी से हटाने का उदाहरण देते हुए पत्र में उल्लेख किया गया है कि झारखंड राज्य की नौकरशाही और पुलिस पर हमले से अफसरों में भय और निराशा की भावना पैदा हुई है। पत्र में आरोप लगाया गया कि न केवल राज्य के शीर्ष नौकरशाहों को धमकाने का प्रयास किया जा रहा है, बल्कि प्रशासन को पंगु बनाने की कोशिश की जा रही है। राज्य सरकार ने कीचड़ उछालने, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले नेताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के झामुमो नेतृत्व के बांग्लादेशी घुसपैठ को संरक्षण देने वाले बयान पर राज्य सरकार ने कहा कि यह गंभीर आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर असर डालने वाला संवेदनशील मुद्दा है। सभी को जानकारी है कि भारत में आप्रवासियों की आमद बड़े पैमाने पर असम में बांग्लादेश के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा के कारण होती है। असम के मुख्यमंत्री को भड़काने से बचना चाहिए। वह झारखंड राज्य में समुदायों के बीच अशांति और वैमनस्य को बढ़ावा दे रहा है। पत्र में राज्य सरकार ने सवाल किया कि क्या किसी राज्य का मुख्यमंत्री किसी अन्य राज्य की यात्रा के दौरान प्रशासन के कामकाज और मेजबान के आंतरिक मामलों के खिलाफ झूठे आरोप और बयान दे सकता है। ये गतिविधियां राजनीतिक लाभ के लिए राज्य की आधिकारिक मशीनरी का स्पष्ट दुरुपयोग हैं। जब झारखंड राज्य विधानसभा के चुनावों की घोषणा अभी तक नहीं हुई है, तो क्या किसी राजनीतिक दल के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करना कानूनी रूप से उचित है? पत्र में कहा गया है कि चौहान और सरमा को 17 जून को भाजपा का राज्य चुनाव प्रभारी बनाया गया था और राज्य में उनके लगातार दौरे के दौरान जेड-प्लस सुरक्षा बढ़ाने के लिए पूरी मशीनरी अलर्ट पर है। अपनी यात्राओं के दौरान दोनों नेताओं ने झारखंड प्रशासन के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी की। मामले में सरमा ने कहा कि अगर ऐसा कोई पत्र लिखा गया है, तो चुनाव आयोग उस पर संज्ञान लेगा। उन्होंने कहा कि मैं कोई राजनीति नहीं कर रहा हूं। मैं हेमंत सोरेन से राज्य में सुधार करने के लिए कहता हूं। वह आबकारी कांस्टेबल भर्ती अभियान के दौरान मारे गए युवाओं के परिवार के सदस्यों को नौकरी दें। भाजपा ने कहा कि अगर सरमा और चौहान के काम कानून के खिलाफ थे तो राज्य सरकार को उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से किसने रोका? विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी ने कहा कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, राजशाही नहीं। एक राजनीतिक नेता देश के किसी भी हिस्से में जा सकता है और अपनी पार्टी के विचार रख सकता है।

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