राष्ट्रीय

कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसा: हादसे के बाद रेल यात्रा के दौरान यात्रियों के सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं

नई दिल्ली
सोमवार को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में भीषण रेल हादसा हुआ। यहां खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस को पीछे से आ रही मालगाड़ी ने टक्कर मार दिया। इस हादसे में 6 साल के बच्चे समेत कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई। कई अन्य गंभीर रूप से घायल हैं। हादसे के बाद रेल यात्रा के दौरान यात्रियों के सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच भारत में स्वदेशी रूप से तैयार की गई  स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली ‘कवच’ चर्चा में है। इसे आरडीएसओ ने तीन भारतीय फर्मों के साथ मिलकर स्वदेशी रूप से विकसित किया है। कवच एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनों के चलने पर दुर्घटनाओं को रोकने में मदद करने के लिए भारत में निर्मित एक प्रणाली है। दार्जिलिंग में यह पटरियों पर नहीं लगी हुई थी, जहां दो ट्रेनें टकरा गई।

वर्तमान में कवच सिर्फ 1,500 किलोमीटर के ट्रेन ट्रैक (दक्षिण मध्य रेलवे क्षेत्र में) में ही काम कर रही है। भारतीय रेलवे लगभग 69,000 किलोमीटर की कुल लंबाई के मार्ग का प्रबंधन करता है। विकास के दौरान कवच को दक्षिण मध्य रेलवे क्षेत्र में वाडी-विकाराबाद-सनतनगर और विकाराबाद-बीदर में 25 स्टेशनों को कवर करते हुए 264 किलोमीटर की लंबाई के लिए लगाया गया था। 2020-21 के दौरान, सिस्टम को 32 स्टेशनों को कवर करते हुए अतिरिक्त 322 किलोमीटर के लिए इंस्टॉल किया गया था। वहीं 2021-22 में, सिस्टम को 77 स्टेशनों को कवर करते हुए और 859 किलोमीटर में लगाया गया था। इसके साथ ही कवच अब 1,445 किलोमीटर में लगाया जा चुका है। इसमें 133 स्टेशन, 29 एलसी गेट और 74 इंजनों को कवर करने वाले 68 किलोमीटर रूट में स्वचालित सिग्नलिंग शामिल हैं। मनमाड – मुदखेड़ – निजामाबाद – सीताफलमंडी – कुरनूल – गुंतकल (सिकंदराबाद और गुंतकल स्टेशनों को छोड़कर); परभणी – बीदर – विकाराबाद – वादी और वादी – सनतनगर जैसे जगहों पर कवच लगाया जा चुका है। ट्रिब्यून ने एक रेलवे अधिकारी के हवाले से बताया कि मुंबई-हावड़ा और दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर अन्य 3,000 किलोमीटर मार्ग पर प्रगति हो रही है।

कैसे काम करता है कवच?
यदि ड्राइवर समय पर ब्रेक लगाने में सफल नहीं हो पाता है तो कवच स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर ट्रेन की गति को नियंत्रित करता है। आरएफआईडी (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन) टैग पटरियों और स्टेशन यार्ड और सिग्नल पर पटरियों की पहचान करने और ट्रेन और उसकी दिशा का पता लगाने के लिए लगाए जाते हैं। जैसे ही सिस्टम सक्रिय होता है, ट्रेन को सुरक्षित रूप से गुजरने देने के लिए 5 किमी के दायरे की सभी ट्रेनें बगल के ट्रैक पर रुक जाती हैं। ऑन बोर्ड डिस्प्ले ऑफ सिग्नल एस्पेक्ट (OBDSA) लोको पायलटों को खराब मौसम में भी सिग्नल देखने में मदद करता है। आमतौर पर, लोको पायलटों को सिग्नल देखने के लिए खिड़की से बाहर देखना पड़ता है। सुरक्षा प्रणाली रेड सिग्नल के पास पहुंचने पर लोको पायलट को सिग्नल भेजती है और सिग्नल को ओवरशूट करने से रोकने के लिए खुद ही ब्रेक लगाती है।

 

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