कृष्ण जन्माष्टमी 2024: घर में पूजा विधि और कृष्ण जन्माष्टमी पूजा कैसे करें
नंद के आनंद भयो जय प्यारे लाल की' आज कृष्ण जन्माष्टमी के मौक़े पर हर तरह के कृष्ण भक्तिमय से राम हुए हैं। जब-जब असुरों के आक्रमण हुए, तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की। भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, मध्यरात्रि को कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण का अवतार लिया गया था। इसलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी या जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार श्रीकृष्ण के जन्म पर वैसा ही संयोग बना जैसा उनके जन्म के दौरान द्वापर युग में हुआ था। इस बार ग्रह, नक्षत्र और अष्टमी तिथि एक साथ 26 अगस्त की रात में मिल रहे हैं, जो बहुत शुभ संयोग बन रहा है। 16 कलाओं के स्वामी आपके घर जन्म लेने वाले हैं, इसलिए जन्माष्टमी की पूजा में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए और सबसे पहले उनके चरणों में समर्पण कर देना चाहिए। आइए जानते हैं घर पर कैसे करें जन्माष्टमी का पूजन… जैसा योग द्वापर युग में कृष्ण जन्म पर था विचार आज भी इस साल जन्मोत्सव, नक्षत्र और योग का ऐसा संयोग बन रहा है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय बना था. भगवान का जन्म भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, वृषभ लग्न, रोहिणी नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, हर्षण योग और जयंती योग में हुआ था। उप्र संस्कृत संस्थान के पूर्व कर्मकांडी शिक्षक रहे पं. अनिल कुमार पांडे ने बताया कि इस बार भगवान के जन्म पर ही जन्माष्टमी का संयोग बनता है। उन्होंने बताया कि ऐसा तीन से चार साल में एक बार बनता है। 26 को भगवान के जन्म की तिथि अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र रात्रि 12 बजे मिल रही है, जो शुभ है। हालाँकि भगवान के जन्म के समय चिन्ह की स्थिति समान नहीं होती और दिन भी नहीं होता। अधिकांश ज्वालामुखी पर जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। कहीं-कहीं 27 को भी व्रत रखा गया।
रात 12: 01 मिनट से 12: 45 मिनट तक का समय अति शुभ है। इसके अलावा इस तिथि पर योगमाया का जन्म भी हुआ था, इस कारण यह दिन साधना के लिए भी बहुत अच्छा दिन है। इस बार काफी साल बाद अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और वृष राशि के चंद्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ। भगवान शिव के दिन सोमवार को उनका जन्म होगा।
ज्योतिषाचार्यों ने घर पर पूजा और कृष्ण जन्म की पूरी विधि बताई है। उन्होंने बताया कि सबसे पहले ब्रह्मा देवता में ग़रीब स्नानादि कर साफ़ वस्त्र धारण करें। भगवान को नमस्कार कर व्रत का संकल्प लें। संकल्प के लिए हाथों में जल, फल, कुश और गंध लें और फिर ममखिलपापप्रशमन दें सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥ मंत्र का जाप करें।
इसके बाद बाल रूप भगवान कृष्ण की पूजा करें।
स्नान कर पूर्व या उत्तर की ओर या मंदिर की दिशा में मुख करके सलाह लेनी चाहिए।
बाल गोपाल का श्रंगार कर उन्हें एक स्टॉफ़ पर लाल रंग के आसन पर विराजित करें। भगवान को पिताम्बर वस्त्र पहनाना सबसे अच्छा रहता है।
दोपहर के समय काले तिल के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए सूतिकागृह में प्रवेश लें। फिर नारियल के टुकड़ों को बीच से चीरकर जिसमें लड्डू गोपाल को शामिल किया गया।
रात 12 बजे शुभ उत्सव में उन्हें सूखे दूध, दही, शहद, घी, गंगा जल और शकर से बनाए गए पंचामृत से स्नान कराया गया।
पूजन में देवकी, वासुदेव, नंद, यशोदा, बलदेव और माता लक्ष्मी का भी नाम लें।
भगवान कृष्ण को यज्ञोपवीत वस्त्र पहनाकर, चंदन, अक्षत, धूप, पुष्प और दीप से पूजन करें और झूला में झूला झूलाएं।
'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः, वासुदेवात् तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः, सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं गृहाणेमं नमोऽस्तुते' अवतरित होने के बाद इस मंत्र का जाप करते रहें।
मक्खन, मिश्री, पंजीरी, फलों के अलावा मेवे से बने भगवान को भी बनाएं आस्था।
भगवान के नैवेद्य में तुलसी दल का होना आवश्यक माना गया है। लौंग, इलायची, पान भी सुरक्षित करें।
पूजा के साथ ही कृष्ण मंत्र का जप या स्त्रोत का पाठ भी करें।
अंत में क्षमा-प्रार्थना करें और प्रसाद वितरण कर भजन कीर्तन करते हुए रतजगा करें क्योंकि स्वयं सृष्टि के पालन ने आपके यहां जन्म लिया है।