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मुख्तार की मौत पर बोलीं दिवंगत कृष्णानंद राय की पत्नी अलका, ‘बाबा की कृपा है’

मुहम्मदाबाद
उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन रहे मुख्तार अंसारी की गुरुवार रात कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई थी. जेल में अचानक तबियत बिगड़ने के बाद उसे बांदा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया था, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. मुख्तार की मौत के बाद बीजेपी के दिवंगत विधायक कृष्णानंद राय की पत्नी और बेटे ने काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन किए.

कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय और बेटे पीयूष राय ने शुक्रवार को काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन किए हैं. इस दौरान अलका राय ने कहा कि हम बहुत खुश हैं. बाबा की कृपा है. महाराजा योगी जी का आशीर्वाद मिला है. ये भगवान का न्याय है. विपक्ष कुछ भी कह सकती है, कोई फर्क नहीं पड़ता. पंजाब की जेल में रहकर वह अपराध करता था. लेकिन यूपी आकर न्याय मिला है. वह अत्याचारी था, अंत हो गया.

वहीं, पीयूष ने कहा कि आज का दिन उनके लिए खुशी का है और दिवाली से कम नहीं है. पीयूष राय ने आजतक से बात करते हुए कहा कि मुझे पता चला है कि बांदा जेल में उनकी मृत्यु हो चुकी है. बस इस समय मैं गोरखनाथ भगवान का बहुत शुक्रिया कहूंगा, उनका बहुत आशीर्वाद है हम लोगों पर. मैं बस इतनी सी बात कहूंगा, 'कर्म के दायरे से उतरोगे, तो उसकी सजा तुम्हें तड़पने तक नहीं छोड़ेगी.' हमें ये आज देखने को मिला है. इसका फैसला भगवान ने किया है. जो जैसा करता है, उसका फल उसे मिलता है.'  दरअसल मुख्तार पर कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप लगा था.

2005 में की गई थी कृष्णानंद राय की हत्या

2002 के विधानसभा चुनाव में कृष्णानंद राय ने मुहम्मदाबाद से लगातार चुने जाते रहे मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल को हरा दिया था और बीजेपी विधायक चुने गए थे. इसके बाद से कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी के बीच अदावत चलनी शुरू हो गई थी. 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय को करीमुद्दीनपुर इलाके के सेनाड़ी गांव में एक क्रिकेट मैच का उद्घाटन करने जाना था. हल्की बारिश के बीच वह बुलेटप्रूफ गाड़ी छोड़कर सामान्य गाड़ी से चले गए थे. लेकिन जब वह शाम को गांव से लौट रहे थे तो घेरकर उन पर एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग की गई, उन पर तकरीबन 400 गोलियां चलाई गईं. कृष्णानंद समेत 7 लोग मारे गए. कृष्णानंद राय के शरीर से 67 गोलियां निकाली गईं.

मुख्तार अंसारी के सबसे कुख्यात कांड कृष्णानंद राय हत्याकांड का पूरा सच जानिए

गैंगस्टर मुख्तार अंसारी के खिलाफ 65 केस दर्ज हैं. इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, धोखाधड़ी, गुंडा एक्ट, आर्म्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट, सीएलए एक्ट से लेकर एनएसए तक शामिल है. इनमें से उसे 8 मामलों में सजा हो चुकी थी. 21 केस विचाराधीन हैं. इसी के चलते वो सालों से जेल में बंद था. 

मुख्तार साल 2005 में पहली बार तब जेल गया, जब उस पर मऊ दंगे भड़काने का आरोप लगा. ठीक एक महीने बाद 29 नवंबर 2005 को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय समेत लोगों को गोलियों से भून दिया गया था. आरोप मुख्तार और उसके भाई अफजाल अंसारी पर लगे. इन दोनों घटनाओं के बाद से मुख्तार कभी जेल से बाहर नहीं आ सका. यहां तक कि वो पांच बार विधायक भी रहा. लेकिन, जेल में ही जनता दरबार लगाकर अपनी 'सरकार' चलाता रहा. जानिए कृष्णानंद राय की हत्या, ब्रजेश सिंह कनेक्शन और बदला लेने के लिए मुख्तार अंसारी का फुल प्रूफ प्लान…

साल 2005 में यूपी में दो बड़ी वारदात हुई थीं, जिनमें मुख्तार अंसारी का नाम सामने आया और इन घटनाओं ने हर किसी को हिलाकर रख दिया. पहला मामला मऊ दंगों से जुड़ा है. वहां भरत मिलाप के दौरान दंगे भड़क गए थे. दरअसल, मुख्तार का एक कथित वीडियो सामने आया था, जिसमें वो जिप्सी में अपने हथियारबंद गुर्गों के साथ दंगा प्रभावित इलाके में घूमते दिखाई दिया था. मऊ दंगे के वक्त ही मुख्तार की एके-47 के साथ खुली जीप में तस्वीर वायरल हुई थी. हालांकि उसका कहना था कि वो लोगों को समझा रहे थे. मुख्तार निर्दलीय विधायक चुने गए थे, पर सपा सरकार का बरदहस्त हासिल था. इस मामले में मुख्तार ने 25 अक्टूबर 2005 को गाजीपुर में सरेंडर कर दिया था, जिसके बाद से वो जेल में बंद है. ठीक एक महीने बाद 29 नवंबर को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई. उनके साथ 6 लोग और मारे गए. हमलावरों ने 400 राउंड फायरिंग की. इस हत्याकांड में भी मुख्तार को मुख्य आरोपी बनाया गया और कहा गया कि मुख्तार ने जेल में बैठे-बैठे कृष्णानंद की हत्या कर पुरानी दुश्मनी का बदला लिया है. हालांकि, सीबीआई ने मामले की जांच की और स्पेशल कोर्ट से मुख्तार बरी हो गया. कोर्ट ने गैंगस्टर मामले में दोषी पाया और 10 साल की सजा और जुर्माना सुनाया.

मुख्तार पर हमले से अदावत की शुरुआत और कृष्णानंद की हत्या से कसा शिकंजा, जान लीजिए ये पूरा केस…

मुख्तार अंसारी पहली बार 1996 में मऊ सीट से बसपा विधायक चुने गए. बात 15 जुलाई 2001 की है. मुख्तार का काफिला मऊ से गाजीपुर स्थित अपने पैतृक घर मुहम्मदाबाद के लिए निकला. रास्ते में उसरी चट्टी के पास ट्रक में सवार हमलावरों ने मुख्तार को टारगेट बनाया और गोलियों की बरसात कर दी. घटना में मुख्तार के सरकारी गनर और प्राइवेट गनर समेत 3 लोग मारे गए. कहा जाता है कि मुख्तार के वाहन से भी गोली चलाई गई और हमलावरों में से एक मनोज राय मौके पर ढेर हो गया. इस मामले में मुख्तार के जानी दुश्मन ब्रजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई गई. ब्रजेश की मुख्तार से दुश्मनी इसलिए थी, क्योंकि मुख्तार उसके दुश्मन साधू सिंह का करीबी थी. साधू सिंह के परिवार की दुश्मनी एक जमीन के टुकड़े को लेकर ब्रजेश सिंह के परिवार से हो गई थी. यह अदावत समय के साथ हत्याएं होने से बढ़ती गई. दूसरी वजह यह थी कि 1990 में गाजीपुर के सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह गैंग ने कब्जा करना शुरू कर दिया था, लेकिन मुख्तार अंसारी के गिरोह ये ठेके छीनने शुरू कर दिए थे. कहा जाता है कि मुख्तार पर अटैक के बाद ही ब्रजेश सिंह ने इलाका छोड़ दिया और फिर मुंबई पहुंचा. वहां सुभाष ठाकुर और इसके बाद दाऊद से मिला. दाऊद के जीजा की हत्या का बदला लेने के लिए जेजे हत्याकांड हुआ, जिसमें ब्रजेश का नाम आया. ब्रजेश सिंह को 2008 में ओडिशा से गिरफ्तार किया गया.

कृष्णानंद ने ढहा दिया था अंसारी का किला

मुख्तार का राजनीतिक प्रभाव बढ़ता जा रहा था और ब्रजेश सिंह उसे कमजोर करने के प्लान पर काम कर रहा था. इस बीच, गाजीपुर में एक नया लड़का अपनी जगह बना रहा था. नाम था- कृष्णानंद राय. ब्रजेश अमूमन भूमिगत रहकर काम करता था. ब्रजेश को जिस एक चेहरे की जरूरत थी, वो कमी कृष्णानंद राय ने पूरी कर दी. चूंकि मुख्तार के भाई अफजाल गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट से चुनाव जीत रहे थे और मुख्तार का मुस्लिम बहुल मऊ सीट पर प्रभाव था. ऐसे में कृष्णानंद के लिए मऊ सीट सेफ नहीं थी. लेकिन मुहम्मदाबाद से लगातार चुने जाते रहे उनके भाई अफजाल को घेरना आसान था. क्योंकि वहां मुस्लिम आबादी 10 फीसदी ही थी. कृष्णानंद राय ने यहीं से मुख्तार के परिवार को चुनौती दे दी. 2002 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अफजाल अंसारी को हरा दिया और बीजेपी विधायक चुने गए.

 

मऊ हिंसा के बाद मुख्तार ने किया था सरेंडर

इधर, उसी साल यानी 2002 में ही मुख्तार मऊ से विधायक चुने गए. उसने ब्रजेश सिंह और कृष्णानंद को बर्बाद करने की तमाम कोशिशें शुरू कर दीं. मुख्तार ने सबसे पहले उस शख्स की पहचान की, जिसने उस पर गोली चलाई थी. मुख्तार गैंग ने गाजीपुर के सैदपुर में सरेबाजार अनिल समेत तीन लोगों की हत्या कर दी. इस बीच, मऊ दंगों में मुख्तार पर शिकंजा कसा गया और उसने 25 अक्टूबर 2005 को सरेंडर कर दिया. उस पर हिंसा भड़काने का आरोप था. उसे गाजीपुर जेल भेजा गया. वहां जेल में बैठे-बैठे उसने कृष्णानंद राय की हत्या की प्लानिंग बनाना शुरू किया. इसमें उसका साथ मुन्ना बजरंगी और उसके साथियों ने दिया.  

जिस अफसर ने कसा शिकंजा, उसे देना पड़ा इस्तीफा?

उधर, कृष्णानंद राय बुलेट प्रूफ गाड़ी से चला करते थे. उन्हें ब्रजेश का बैकअप था. इस बीच, आरोप लगा कि मुख्तार आर्मी के एक भगोड़े से एलएमजी खरीदने की कोशिश में लगे हैं. उन पर पोटा के तहत केस दर्ज करने वाले एसटीएफ में डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह ने दावा किया कि उन्होंने मुख्तार को यह कहते हुए सुना था कि कृष्णानंद राय की बुलेट प्रूफ गाड़ी सामान्य राइफल से नहीं भेदी जा सकती, इसलिए एलएमजी का इंतजाम करना है. इसके लिए 1 करोड़ में सौदा तय हो रहा था. शैलेंद्र सिंह ने केस तो दर्ज कर एलएमजी भी बरामद कर ली लेकिन मुख्तार को गिरफ्तार करने की हसरत अधूरी रह गई. उन पर इतने दबाव पड़े कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. उन पर मुकदमे भी लाद दिए गए. 

29 नवंबर 2005… कृष्णानंद राय की हत्या

मुख्तार के जेल जाने के बाद कृष्णानंद और लापरवाह हो गए. गाहे बगाहे वे बिना बुलेटप्रूफ गाड़ी के भी निकल जाते. 29 नवंबर 2005 को उन्हें करीमुद्दीनपुर इलाके के सेनाड़ी गांव में एक क्रिकेट मैच का उद्घाटन करने जाना था. हल्की हल्की बारिश हो रही थी. वे बुलेटप्रूफ गाड़ी छोड़कर सामान्य गाड़ी में चले गए. इसकी मुखबिरी हो गई. शाम 4 बजे के आसपास जब वे अपने गांव गोडउर लौट रहे थे तो बसनियां चट्टी पर उन्हें घेर लिया गया और एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग की गई, करीब 400 गोलियां चलाई गईं. कृष्णानंद समेत 7 लोग मारे गए. कृष्णानंद राय के शरीर से 67 गोलियां निकाली गईं. यह सामान्य हत्या नहीं थी. यह बताने के लिए था कि आपके इलाके में आपके लोगों के बीच घुसकर मारा है. कृष्णानंद राय की चुटिया उस समय फेमस हो चुकी थी. कहा जाता है कि हमलावरों में से एक हनुमान पांडेय ने उनकी चुटिया काट ली थी. बाद में उसी दौरान का एक ऑडियो सामने आया, जिसमें मुख्तार जेल से ही एक माफिया से बात कर रहे हैं और बता रहे हैं चुटिया काट लिहिन.

'दहल उठा था पूर्वांचल'

कृष्णानंद राय की हत्या के बाद पूर्वांचल जल उठा. बसें फूंकी गईं, सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया. बीजेपी के कद्दावर नेता राजनाथ सिंह ने मुलायम सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. हाई कोर्ट के आदेश पर जांच सीबीआई को सौंपी गई. राय की पत्नी अलका राय की याचिका पर केस दिल्ली ट्रांसफर किया गया लेकिन सबूतों के अभाव में 3 जुलाई 2019 को दिल्ली की सीबीआई कोर्ट ने मुख्तार, अफजाल समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

मुख्तार अंसारी ने 1995 में पहली बार गाजीपुर सदर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था. यह चुनाव उसने जेल में रहते हुए कम्युनिस्ट पार्टी के चुनाव चिह्न पर लड़ा था. हालांकि वो यह चुनाव हार गया था. उसके बाद मुख्तार 1996 में बीएसपी में शामिल हो गया. वो गाजीपुर का बीएसपी का जिला अध्यक्ष बनाया गया फिर उसी साल मऊ सदर सीट से उसे चुनाव टिकट दे दिया गया. वो पहली बार चुनाव जीता. फिर 2002 और 2007 में उसने निर्दलीय चुनाव जीता था. वो 2017 तक लगातार चुनाव जीता. मुख्तार ने अपने आखिरी तीन चुनाव जेल में रहते हुए जीते थे. 2022 में मुख्तार ने अपनी राजनीतिक विरासत बड़े बेटे अब्बास अंसारी को सौंप दी थी.

परिवार पर दर्ज हैं 101 केस

मुख्तार अंसारी समेत उसके परिवार पर 101 केस दर्ज हैं. अकेले मुख्तार अंसारी पर कई जिलों में हत्या के 8 मुकदमे समेत 65 मामले दर्ज हैं और वो बांदा जेल में बंद था. भाई अफजाल अंसारी पर 7 मामले, भाई सिगबतुल्लाह अंसारी पर 3 केस, मुख्तार अंसारी की पत्नी अफसा अंसारी पर 11 मुकदमे, बेटे अब्बास अंसारी पर 8 तो छोटे बेटे उमर अंसारी पर 6 केस दर्ज हैं. मुख्तार अंसारी की बहू निखत पर 1 मुकदमा दर्ज है.

मुकदमा अपराध संख्या- 1051/2007

यह मामला मुख्तार अंसारी के खिलाफ दर्ज हुआ था. जिसमें बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड और कोयला व्यापारी नंदकिशोर रूंगटा अपहरण हत्याकांड को दिखाया गया था. गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को इसी मामले में 10 साल की सजा सुनाई और साथ ही 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. हालांकि दोनों ही मूल केस में मुख्तार अंसारी बरी हो गया लेकिन कोर्ट ने उन दोनों ही केस में गवाहों के मुकरने के बावजूद पुलिस के द्वारा पेश किए गए तथ्यों के आधार पर उसे 10 साल की सजा सुनाई. इसमें चाहे एलएमजी खरीदने का मामला हो या फिर शूटरों से संपर्क करने का.

मुकदमा अपराध संख्या- 1052/2007

यह मामला अफजाल अंसारी के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट का था. जिसमें अफजाल अंसारी को सिर्फ कृष्णानंद राय हत्याकांड में साजिश रचने का आरोपी बनाया गया था. इस केस में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अफजाल अंसारी को 4 साल की जेल की सजा सुनाई और एक लाख रुपये का जुर्माना किया. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान माना कि अफजाल अंसारी बड़े भाई होने के नाते मुख्तार अंसारी को शरण देते रहे और शह देते रहे. यही दो मामले हैं, जो मुख्तार अंसारी और उनके सांसद भाई अफजाल अंसारी के लिए परेशानी का सबब बने और एमपी-एमएलए कोर्ट ने इन्हीं मामलों को आधार बनाकर उन्हें सजा सुनाई.

 

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