राजनीतिक

मायावती की एक प्रभावशाली दलित नेता वाली छवि धीरे धीरे धूमिल होती जा रही, जाटव भी छोड़ रहे मायावती का साथ

नई दिल्ली
कल लोकसभा चुनावों के परिणाम घोषित हुए। कुछ पार्टियों ने आश्चर्यजनक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया तो कुछ को मन मुताबिक नतीजे नहीं मिले। इन्हीं में से एक मायावती की बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन तो इतना निराशाजनक रहा कि वह अपना खाता तक खोलने में विफल रही। बसपा ना केवल शून्य पर सिमट कर रह गई बल्कि उसका वोट शेयर भी धड़ाम से नीचे गिर गया।

इन सब बातों से इतना तो तय है कि बसपा अपना कोर वोटर यानी जाटव समुदाय का समर्थन धीरे धीरे खो रही है। मायावती खुद इसी जाटव समुदाय से आती हैं। दलितों की आबादी में 55 फीसदी और देश की आबादी में कुल 11 फीसदी योगदान देने वाले जाटव समुदाय के लोग अभी तक मायावती को अपना पूरा समर्थन देते थे। लेकिन इस बार जितनी तेजी से बसपा का वोट प्रतिशत गिरा है उससे साफ है कि जाटव समुदाय का वोट अब कहीं और खिसकता जा रहा है। इसके पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण है और सब कारण कहीं न कहीं पार्टी और पार्टी सुप्रीमो मायावती के ही बनाए हुए हैं।

प्रभावशाली दलित नेता वाली छवि बरकरार रखने में नाकाम
मायावती की एक प्रभावशाली दलित नेता वाली छवि धीरे धीरे धूमिल होती जा रही है। यूपी में लंबे समय तक सत्ता में बाहर रहना और साथ ही चुनावों के दौरान कोई ठोस प्रभावी रणनीति का न होना इसका एक बड़ा कारण है। अब भाजपा भी अपनी लोक कल्याणकारी योजनाओं के चलते धीरे धीरे दलितों के बीच अपनी पैठ बनाती जा रही है। इस बार के आम चुनावों की ही बात करें तो आजाद समाज पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ रहे चंद्रशेखर आजाद दलितों के सामने एक प्रभावशाली विकल्प के तौर पर उभरे। कुल मिलाकर दलितों के बीच मायावती की अब वो छवि नहीं रहीं जिसका एक समय कोई विकल्प नहीं मिला करता था।

अकेले चुनाव लड़ने का फैसला पड़ा भारी
इस बार मायावती का अकेले चुनावी मैदान में उतरने का फैसला पार्टी के लिए 'आत्मघाती' सिद्ध हुआ। पिछली बार जहां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़कर बसपा को 10 सीटों का फायदा हुआ था, वहीं इस बार तो उसका खाता तक नहीं खुला। अकेले चुनाव लड़ने की बात को लेकर पार्टी के अंदर भी खूब तनाव देखने को मिला। जाने माने नेता इमरान मसूद और दानिश अली को केवल इसलिए पार्टी से बाहर कर दिया गया क्यूंकि वे राहुल गांधी के साथ संपर्क में थे। इसके बाद पार्टी के कई अनुभवी नेताओं जैसे मलूक नागर, संगीता आजाद और रितेश देशपांडे ने भी पार्टी को छोड़ दिया।

बार बार उम्मीदवार बदलना पड़ा महंगा
मायावती ने "जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी" वाले अपने फॉर्मूले पर सीटों का बंटवारा किया। इसमें 20 मुस्लिम, 18 दलित, 16 ओबीसी और 15 ब्राह्मणों को टिकट दिया गया। इनमें कई ऐसे उम्मीदवार शामिल थे जो भाजपा के खेमे से बसपा के खेमे में शामिल हुए थे। इनमें से कई ने उन उम्मीदवारों की जगह ले ली जो पार्टी की पहली पसंद थे। कुल मिलाकर 14 सीटों पर बसपा ने अपने उम्मीदवार फिर से उतारे। इससे लोगों के बीच कहीं न कहीं यह संदेश गया कि मायावती दवाब में काम कर रही हैं।

आकाश आनंद ने पूरी की रही सही कसर
बसपा का बुरा दौर शुरू होने ही वाला था कि आकाश आनंद का बीच में आना हो गया। आकाश ने मायावती का उत्तराधिकारी और बसपा का राष्ट्रीय समन्वयक बनने के बाद जोर शोर से राजनीतिक बयान देने शुरू कर दिए। विवाद इतना बढ़ गया कि बीच में ही मायावती को उन्हें अपने पद से हटाना पड़ा। इससे लोगों ने पहले ही यह अटकलें लगाना शुरू कर दिया कि मायावती ने आकाश को बचाने के लिए यह कदम उठाया है, क्योंकि उन्हें एहसास हो गया है कि वे एक भी सीट नहीं जीत रहे।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
slot gacor toto 4d slot toto slot gacor thailand slot777 slot tergacor https://mataerdigital.com/ istanapetir slot gacor cupangjp situs maxwin ayamjp gampang menang slot online slot gacor 777 tikusjp situs terbaru slot istanapetir situs terbaru slot istanapetir situs terbaru slot
lemonadestand.online monitordepok.com portal.pramukamaros.or.id elibrary.poltektranssdp-palembang.ac.id cutihos.wikaikon.co.id pmb.umpar.ac.id industri.cvbagus.co.id ppdb.smpn1mantup.sch.id taqwastory.sma1bukitkemuning.sch.id media.iainmadura.ac.id omedia.universitasbumigora.ac.id pik.omedia.universitasbumigora.ac.id https://threadsofhopetextiles.org/bekleng/indexing/ metro.jrs.or.id sim.kotaprabumulih.go.id web.sip.pn-kotaagung.go.id web.unras.ac.id