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अब नहीं होगी देरी! भूमि बंटवारे के मामलों का होगा फास्ट ट्रैक निपटारा, हरियाणा सरकार का बड़ा फैसला

चंडीगढ़ 
हरियाणा सरकार ने लंबे समय से रुके हुए भूमि बंटवारे (पार्टिशन) के मामलों को जल्दी निपटाने के लिए नए नियम लागू किए हैं। एफसीआर तथा राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा ने राज्यभर में स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि राजस्व अधिकारी अब जल्दी और समयबद्ध तरीके से जमीन के विवाद निपटाएं। अब आम लोगों को सालों तक जमीन के मामले का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

अब प्रत्येक सहायक कलेक्टर को महीने में कम से कम 12 जमीन के बंटवारे के मामले निपटाने होंगे। यह लक्ष्य तीन स्तर पर निगरानी के तहत पूरा होगा। उपायुक्त, मंडलायुक्त और वित्त आयुक्त (राजस्व)। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि जो तहसीलदार कम काम वाले क्षेत्रों में हैं, उनके पास ज्यादा मामले भेजे जाएंगे ताकि सभी अधिकारी बराबर जिम्मेदारी निभाएं और लोगों को जल्दी न्याय मिल सके। जमीन के मामलों में अक्सर विवाद लंबित रहते हैं। इसे कम करने के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) तंत्र लागू किया गया है।

सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी गांव स्तर पर एडीआर शिविर लगाएंगे। विवादित पक्षकार आपसी सहमति से समाधान करने के लिए प्रेरित होंगे। सफल समाधान पर 10,000 रुपये का इनाम मिलेगा, जिसे विवादित पक्ष साझा करेगा। सरकार की कोशिश है कि लोग लंबे कोर्ट के झंझट से बचकर सीधे समझौते के जरिए अपनी जमीन का निपटारा कर सकें। अब राजस्व न्यायालयों में लगातार सुनवाई होगी। तहसीलदार और नायब तहसीलदार सप्ताह में कम से कम तीन दिन न्यायालय चलाएंगे। अन्य अधिकारी सप्ताह में पांच दिन जमीन के मामलों की सुनवाई करेंगे। इससे लंबित मामलों का निपटारा तेजी से होगा और लोगों को समय पर न्याय मिलेगा।
 
 राजस्व अधिकारियों का प्रदर्शन त्रैमासिक रूप से देखा जाएगा। डॉ़ सुमिता मिश्रा ने कहा कि जो अधिकारी सबसे अच्छे काम करेंगे, उन्हें अपनी पसंद की तहसील में तैनाती दी जा सकती है। जो लगातार काम पूरा नहीं करेंगे, उन्हें अन्य गैर-राजस्व जिम्मेदारियों में भेजा जाएगा। इससे अधिकारी अपने काम में और जिम्मेदार बनेंगे, और आम लोगों के मामलों में देरी नहीं होगी।

नई नियमावली के तहत संयुक्त खातेदारी की जमीनों का बंटवारा अब तेजी से होगा। मंडल आयुक्त तीन दिनों में अधिसूचना जारी करेंगे और मामले जल्द लागू होंगे। इससे लंबित जमीन के मामले जल्दी निपटेंगे। मुकदमेबाजी कम होगी, आपसी समझ से समाधान मिलेगा। अधिकारी जवाबदेह होंगे, इसलिए लोगों को न्याय समय पर मिलेगा। पारदर्शिता बढ़ेगी, कोई भी मामले में अन्याय नहीं कर पाएगा।

 

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