एमपी और छत्तीसगढ़ की 28 सीटों ने लोकसभा चुनाव से पहले नोटा ने बजाई ‘खतरे की घंटी’
भोपाल
हाल ही में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चुनावों में नोटा के विकल्प को खत्म करने की बात कही थी। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि नोटा को जीत के अंतर यानी कि मार्जिन से ज्यादा वोट मिल जाते हैं। उन्होंने कहा कि मतदाता अनजाने में नोटा चुन लेते हैं। ईवीएम में यह विकल्प सभी उम्मीदवारों के नाम के बाद सबसे आखिरी में आता है। इसका अपना प्रतीक मतपत्र होता है, जिस पर काला क्रॉस लगा होता है।भूपेश बघेल का ये अनुमान ठीक निकला। हाल ही में खत्म हुए विधानसभा चुनावों में इस बार छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में नोटा वोट जीत के अंतर से अधिक हो गए। इसमें मध्य प्रदेश में 20 और छत्तीसगढ़ में 8 सीटों पर नोटा वोट की संख्या जीत के मार्जिन से ज्यादा रही। अधिकतर सीटें बहुत कम अंतर से जीती गईं, जिनमें सबसे कम 16 वोटों से मिली जीत भी शामिल है।
हालांकि कुल मिलाकर नोटा वोटों की हिस्सेदारी 2018 के चुनावों में 1.41% से घटकर इस बार 0.97% हो गई। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में केवल 1 सीट पर उसका वोट शेयर 5% से अधिक रहा। 2018 में नोटा वोटों का सबसे बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ में था, जब 4 सीटों पर नोटा को 5% से अधिक वोट मिले थे।
छत्तीसगढ
सीट | विजेता | उप विजेता | जीत का मार्जिन | नोटा के वोट |
कांकेर | बीजेपी | कांग्रेस | 16 | 2729 |
अंबिकापुर | बीजेपी | कांग्रेस | 94 | 2168 |
पत्थलगांव | बीजेपी | कांग्रेस | 255 | 3131 |
बिन्द्रनवागढ़ | कांग्रेस | बीजेपी | 816 | 3710 |
कोंटा | कांग्रेस | बीजेपी | 1981 | 3691 |
धमतरी | कांग्रेस | बीजेपी | 2606 | 2695 |
बीजापुर | कांग्रेस | बीजेपी | 2706 | 3628 |
पाली तानाखार | जीजीपी | कांग्रेस | 714 | 3557 |
छत्तीसगढ़ में, भाजपा ने उन 8 सीटों में से 3 पर जीत हासिल की जहां नोटा जीत के अंतर से अधिक था। संयोग से ये सीटें, कांकेर और अंबिकापुर, क्रमशः केवल 16 और 94 वोटों के बेहद कम अंतर से जीती गईं। अंबिकापुर में पूर्व डिप्टी सीएम टी एस सिंह देव को करारी हार का सामना करना पड़ा। अंबिकापुर में नोटा को 2,168 वोट मिले। कांग्रेस ने 8 में से 4 सीटें जीतीं और अन्य 4 पर उपविजेता रही, जबकि आदिवासी आधारित गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) ने 1 सीट जीती।
मध्य प्रदेश
सीट | विजेता | उपविजेता | जीत का अंतर | नोटा के वोट |
शाजापुर | बीजेपी | कांग्रेस | 28 | 1534 |
धरमपुरी | बीजेपी | कांग्रेस | 356 | 2455 |
मांधाता | बीजेपी | कांग्रेस | 589 | 1554 |
गुन्नौर | बीजेपी | कांग्रेस | 1160 | 2012 |
सोहागपुर | बीजेपी | कांग्रेस | 1762 | 2362 |
धौहानी | बीजेपी | कांग्रेस | 3321 | 3459 |
अलीराजपुर | बीजेपी | कांग्रेस | 3723 | 3814 |
महीदपुर | कांग्रेस | बीजेपी | 290 | 1417 |
बैहर | कांग्रेस | बीजेपी | 551 | 3484 |
भीकनगांव | कांग्रेस | बीजेपी | 603 | 1799 |
गोहद | कांग्रेस | बीजेपी | 607 | 790 |
सेमरिया | कांग्रेस | बीजेपी | 637 | 1069 |
मानावर | कांग्रेस | बीजेपी | 708 | 1814 |
हरदा | कांग्रेस | बीजेपी | 870 | 2357 |
राजपुर | कांग्रेस | बीजेपी | 890 | 1683 |
टिमरनी | कांग्रेस | बीजेपी | 950 | 2561 |
मंडला | कांग्रेस | बीजेपी | 1340 | 3108 |
सेंधावा | कांग्रेस | बीजेपी | 1677 | 5098 |
परसिया | कांग्रेस | बीजेपी | 2168 | 3049 |
जुन्नारदेव | कांग्रेस | बीजेपी | 3210 | 5086 |
नोटा वोटों से मध्य प्रदेश की 20 सीटों पर फर्क पड़ सकता था। इसमें से भाजपा ने 7 और कांग्रेस ने 13 सीटें जीतीं। उदाहरण के लिए, शाजापुर में बीजेपी 28 वोटों के अंतर से जीती और यहां नोटा को 1,534 वोट मिला। इन 20 सीटों में से 12 सीटों पर जीत का अंतर 1,000 वोटों से कम था। जबकि नोटा को इन सीटों पर औसतन 2,525 वोट मिले। यहां औसत जीत का अंतर 1,272 वोट था। मध्य प्रदेश के जोबट में नोटा वोट शेयर सबसे अधिक 2.8% था।