
सत्ता की राजनीति या तुष्टीकरण? ममता बनर्जी पर सरमा का तीखा वार
नई दिल्ली
'बांग्ला' भाषा विवाद पर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को करारा जवाब दिया है। ममता बनर्जी ने शनिवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए असम की भाजपा सरकार पर सवाल उठाए थे। इस पर हिमंता बिस्वा सरमा ने पलटवार करते हुए कहा है कि ममता बनर्जी ने सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए बंगाल के भविष्य के साथ समझौता किया है। असम सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट में लिखा, "दीदी मैं आपको याद दिला दूं, असम में हम अपने लोगों से नहीं लड़ रहे हैं। हम निर्भीक होकर उस निरंतर और बेलगाम मुस्लिम घुसपैठ का विरोध कर रहे हैं, जो सीमा पार से हो रही है और जिसकी वजह से राज्य की डेमोग्राफी में भयावह बदलाव आया है।"
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि असम के कई जिलों में अब हिंदू अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक बनने की कगार पर हैं। यह कोई राजनीतिक नैरेटिव नहीं है, यह एक सच्चाई है। यहां तक कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसी घुसपैठ को बाहरी आक्रमण कहा है। हिमंता ने आरोप लगाते हुए कहा कि जब हम अपनी जमीन, संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए खड़े होते हैं, तो आप इसे राजनीति का रंग देने लगती हैं।
उन्होंने कहा, "हम लोगों को भाषा या धर्म के आधार पर नहीं बांटते। असमिया, बांग्ला, बोडो और हिंदी सभी भाषाएं और समुदाय यहां सदियों से साथ रहते आए हैं। लेकिन कोई भी सभ्यता तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह अपनी सीमाओं और सांस्कृतिक नींव की रक्षा नहीं करती।"
असम के मुख्यमंत्री हिमंता ने कहा, "जहां हम असम की पहचान को बचाए रखने के लिए निर्णायक कदम उठा रहे हैं, वहीं दीदी आपने बंगाल के भविष्य के साथ समझौता कर लिया है।"
हिमंता बिस्वा सरमा ने ममता बनर्जी पर एक खास समुदाय की ओर से अवैध अतिक्रमण को बढ़ावा देने और वोट बैंक के लिए एक धार्मिक समुदाय का तुष्टिकरण करने का आरोप लगाया। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर घुसपैठ के बावजूद राष्ट्रीय अखंडता को नुकसान पहुंचाने पर चुप्पी साधने के भी आरोप लगाए।
इससे पहले, ममता बनर्जी ने आरोप लगाए कि असम में 'बांग्ला' बोलने वालों को उत्पीड़न की धमकी दी जा रही है। उन्होंने एक पोस्ट में कहा, "सभी भाषाओं और धर्मों का सम्मान करते हुए शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहने वाले नागरिकों को उनकी अपनी मातृभाषा को बनाए रखने के लिए उत्पीड़न की धमकी देना भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है। असम में भाजपा का यह विभाजनकारी एजेंडा सारी हदें पार कर चुका है और असम के लोग इसका डटकर मुकाबला करेंगे।"