भाजपा ने खेला नया दांव, क्या बेगूसराय में अखंड हो सकेगी पार्टी

बेगूसराय । एएनएन (Action News Network)
भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष पद पर काबिज होने के लिए पटना-दिल्ली तक सेटिंग करने वाले लोगों को भारी निराशा हाथ लगी है। लंबे समय से जारी कवायद के बावजूद प्रदेश नेतृत्व ने भाजपा जिलाध्यक्ष द्वारा मनोनीत राममूर्ति चौधरी के नाम की घोषणा भाजयुमो जिलाध्यक्ष के रूप में कर दिया है। पुराने नेताओं को दरकिनार करते नए चेहरे को विभिन्न मंच-मोर्चा का अध्यक्ष बनाकर भारतीय जनता पार्टी ने बेगूसराय जिला में नया दांव खेला है। भाजयुमो अध्यक्ष पद पर आरएसएस पृष्ठभूमि के राममूर्ति चौधरी के मनोनयन ने जिले में नया गुल खिलाया है। इससे पहले आरएसएस पृष्ठभूमि से आनेवाले राजकिशोर सिंह को भाजपा जिलाध्यक्ष बनाकर गुटों और खेमों में बंटे नेताओं को शांत रहने का संकेत दे दिया गया था।
आरएसएस की पृष्ठभूमि से आनेवाले भाजयुमो अध्यक्ष पद के लिए आधे दर्जन से अधिक दावेदार थे। जिले के कई नेताओं द्वारा अपने गुट के युवा को इस गद्दी पर बैठाने के लिए महीनों से लाबिंग की जा रही थी। कई युवा अपनी जुगत केन्द्र और राज्य तक भिड़ाए थे लेकिन सफलता राममूर्ति को मिली। यह उनकेे आरएसएस में रहने का प्रसाद भी समझा जा सकता है। सुदूर मंसूरचक प्रखंड के अहियापुर निवासी राममूर्ति बचपन से ही आरएसएस से जुड़े बताए जा रहे हैं।
उनके मनोनयन के साथ ही सोशल मीडिया पर एक गुट ने उनका विरोध भी शुरू कर दिया था। लेकिन यह विरोध कमजोर हो गया। इधर आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पिछड़ी जातियों से आनेवाले रामकुमार वर्मा और देवानंद कुशवाहा को क्रमशः किसान मोर्चा और पिछड़ा मंच का अध्यक्ष बनाकर पार्टी के नीति निर्धारकों ने नया दांव खेला है।
कुशवाहा जाति से आनेवाले दो कद्दावर नेताओं को अध्यक्ष बनाकर पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव की बिसात में राजद और जदयू जैसी पार्टियों को नया चुनौती भी दे चुकी है। पिछले लोकसभा चुनाव में जिले के पिछड़े और दलित वोटरों के बड़ी संख्या में भाजपा के तरफ झुकाव होने और मत हासिल होने से उत्साहित आरएसएस और भाजपा नेताओं को ऐसे वोटरों को जोड़े रखने की चुनौती बनी है। दिग्गज ऊंची जाति के नेताओं को दरकिनार कर ऐसे लोगों को आगे लाना आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।
अल्पसंख्यक और अनुसूचित मोर्चा पर परवेज आलम और रामशंकर पासवान के मनोनयन पुराने कार्यकर्ता को तरजीह देने का भी हिस्सा हो सकता है। इससे पार्टी को आमलोगों तक जोड़े रखने की रणनीति काम आ सकती है। महिला मोर्चा में भी नया चेहरा सुनैना देवी का मनोनयन भी गुटबंदी पर लगाम कहना माना जा सकता है। विभिन्न चयनित अध्यक्ष की अपनी पृष्ठभूमि से जिले के पार्टी नेताओं के बीच व्याप्त गुटबंदी को कम करने की रणनीति भी इस मनोनयन का हिस्सा माना जा सकता है।
लेकिन बेगूसराय भाजपा में गुटबाजी खत्म होगा यह असंभव है। यहां भाजपा अखंड नहींं रहकर कई खंडोंं मे बंटी हुई है, चार-पांच गुट बने हुए हैं। हालत यह है कि राष्ट्रवादी विचारधारा से ओतप्रोत रहने वाले सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंंह तथा राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा को भी स्थानीय स्तर पर इन्हें भी अलग-अलग गुटों में बांट दिया गया है। फिलहाल देखना यह है कि आगामी चुनाव के मद्देनजर संगठन को मजबूत करने में जुटी भाजपा विधानसभा चुनाव से पहले अखंड हो पाती है या नहीं।
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