शीना बोरा मामला : सीबीआई ने ‘अविश्वसनीय’ गवाहों की सूची सौंपी
शीना बोरा मामला : सीबीआई ने 'अविश्वसनीय' गवाहों की सूची सौंपी
मुंबई
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने बहुचर्चित शीना बोरा हत्या मामले में 23 गवाहों की सूची सौंपी है जिनसे वह पूर्व मीडिया कार्यकारी इंद्राणी मुखर्जी और अन्य आरोपियों के खिलाफ जिरह नहीं करेगा।
सीबीआई की सूची में मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश मारिया और अन्य पुलिस अधिकारी शामिल हैं। सीबीआई ने कहा कि मुकदमे के दौरान इनके बयान दर्ज नहीं किए जाएंगे क्योंकि वे ''अविश्वसनीय गवाह'' हैं।
इंद्राणी और उनके दो पूर्व पति पीटर मुखर्जी और संजीव खन्ना इस हत्या मामले में आरोपी हैं। शीना बोरा, इंद्राणी की पहली शादी से हुई बेटी थी।
शीना (24) की कथित तौर पर उसकी मां इंद्राणी, खन्ना और चालक श्यामवर राय ने 24 अप्रैल 2012 को हत्या कर दी थी। ऐसा आरोप है कि हत्या की साजिश में पीटर मुखर्जी भी शामिल था।
मुंबई पुलिस द्वारा एक अन्य मामले में राय की गिरफ्तारी के बाद 2015 में इस हत्याकांड का खुलासा हुआ था। उस समय मारिया शहर के पुलिस आयुक्त थे और उनकी निगरानी में इस मामले की जांच हुई थी। बाद में यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था।
इंद्राणी ने इस साल की शुरुआत में अदालत से सीबीआई को उन गवाहों की सूची सौंपने का निर्देश देने का अनुरोध किया था जिनसे वह जिरह करने वाली है। जांच एजेंसी ने अप्रैल में 92 गवाहों की सूची सौंपी थी जिनसे वह जिरह करेगी। इस सूची में इंद्राणी और पीटर की बेटी विधि मुखर्जी का नाम शामिल नहीं था।
सीबीआई द्वारा बृहस्पतिवार को सौंपी गयी सूची में भी विधि का नाम शामिल नहीं है। अभी इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है कि विधि से सीबीआई उनकी मां के खिलाफ पूछताछ करेगी या नहीं लेकिन उसका बयान मामले में एजेंसी के आरोपपत्र में शामिल है।
मारिया के अलावा सूची में ''अविश्वसनीय गवाहों'' में शामिल अन्य लोगों में मुंबई पुलिस के जांच अधिकारी रहे दिनेश कदम, संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून एवं व्यवस्था) सत्यनारायण चौधरी और तत्कालीन जोन 9 के पुलिस उपायुक्त और जेलर एस एस वाग और सुप्रिया चाने शामिल हैं।
उच्चतम न्यायालय ने मई 2022 में इंद्राणी को जमानत देते हुए कहा था कि जेल में साढ़े छह साल का वक्त लंबा होता है और मुकदमे के जल्द समाप्त होने की संभावना नहीं है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा की बढ़ाई जाएगी सुरक्षा: विधानसभा अध्यक्ष
कोलकाता
पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने कहा कि सदन की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाएगी।बनर्जी ने यह निर्णय लोकसभा की कार्यवाही के दौरान दो लोगों के दर्शक दीर्घा से कूद कर सदन में आने और केन के जरिए धुआं फैलाने की घटना के मद्देनजर लिया है।
बनर्जी ने कहा, ''किसी भी विधानसभा सदस्य, कर्मचारी और पत्रकार को पहचान पत्र के बिना परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी। पश्चिमी गेट से केवल आगंतुक आ सकेंगे। उन्हें केवल दो घंटे के लिए विधानसभा परिसर के अंदर रहने की अनुमति होगी।''
इससे पहले आगंतुकों को पूरे दिन रुकने की अनुमति थी।
उन्होंने कहा, ''अगर कोई विधानसभा परिसर में निर्धारित अवधि से ज्यादा रुका पाया गया तो पुलिस उससे पूछताछ करेगी।''
उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभा में एक आपात बैठक हुई जिसमें परिसर में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की तस्वीरें लेने के लिए सभी द्वारों पर कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है।
एक सूत्र ने बताया कि राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य सचिवालय 'नबन्ना' में पुलिस व्यवस्था की समीक्षा की। इस दौरान उन्हें कुछ अधिकारी अनुपस्थित मिले। उन्होंने बताया कि ''मुख्यमंत्री ने सुरक्षा निदेशक को मामले की पड़ताल करने के निर्देश दिए हैं।''
कर्नाटक सरकार एससी-एसटी छात्रावासों में कर्मचारियों की नियुक्ति पर अदालत को स्थिति रिपोर्ट सौपेंगी
बेंगलुरु
राज्य सरकार ने कर्नाटक उच्च न्यायालय को आश्वासन दिया है कि आवश्यक कदम उठाने के बाद कुछ जिलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) छात्रावासों में कर्मचारियों की नियुक्ति पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।
दरअसल एक मराठी अखबार में सात दिसंबर को एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें कहा गया था कि विशेष दिशानिर्देशों के बावजूद इन छात्रावासों में कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई है। खबर में कहा गया था कि कुछ स्थानों पर एक ही वार्डन तीन या चार सरकारी छात्रावासों के प्रभारी की भूमिका निभा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी वराले और न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने मीडिया में आई खबरों का स्वत: संज्ञान लेते हुए बृहस्पतिवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।
इसके अलावा, अदालत ने मामले में वकील नितिन रमेश को न्याय मित्र नियुक्त करने का निर्देश दिया तथा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को मामले से संबंधित सभी प्रासंगिक दस्तावेजों को जांच के लिए स्थानांतरित करने का आदेश दिया।
अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि कर्मचारियों की कमी से छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप परीक्षा में उनका प्रदर्शन खराब हुआ है।