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मध्य प्रदेश में 25 अक्टूबर से सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपार्जन होगा, MSP 4 हजार 892 रुपये/क्विंटल

भोपाल
मध्य प्रदेश में 25 अक्टूबर से सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपार्जन होगा। इसके लिए किसानों का पंजीयन प्रारंभ हो गया है। सर्वाधिक उपार्जन उज्जैन-इंदौर संभाग में होने की संभावना है। इन दोनों संभागों में 30 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बोवनी हुई है।

54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती
प्रदेश में कुल 54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती की गई है और 60 से 70 लाख मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान है। केंद्र सरकार ने 13.68 लाख मीट्रिक टन उपार्जन की अनुमति प्राइस सपोर्ट स्कीम में दी है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद उपार्जन की तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। पंजीकृत किसानों से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,892 रुपये प्रति क्विंटल की दर से सोयाबीन खरीदा जाएगा। पंजीयन 20 अक्टूबर 2024 तक होगा। भोपाल, जबलपुर, उज्जैन, ग्वालियर और चंबल संभाग में भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड और इंदौर, नर्मदापुरम, रीवा, शहडोल व सागर संभाग में भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ के लिए राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) खरीदी करेगा। इसके लिए सरकार ने मार्कफेड को अपनी गारंटी पर 1,100 करोड़ रुपये का ऋण लेने की अनुमति दी है।

किसान के पंजीयन की जांच
उधर, यह भी तय किया गया है कि ऐसी सहकारी समितियां जो गेहूं, धान या अन्य उपज के उपार्जन के लिए अपात्र घोषित की गई हैं, उन्हें सोयाबीन खरीदी के काम में नहीं लगाया जाएगा। अन्य राज्यों से सोयाबीन प्रदेश के उपार्जन केंद्रों पर न आए, इसके लिए किसान के पंजीयन की जांच होगी।

उज्जैन संभाग में सोयाबीन
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि सोयाबीन की सर्वाधिक 20 लाख हेक्टेयर में बोवनी उज्जैन संभाग में हुई है, इसलिए समर्थन मूल्य पर उपार्जन भी यहीं अधिक होगा। इसके बाद भोपाल में 11 और इंदौर संभाग में 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोवनी हुई है। इसे देखते हुए इन संभागों में उपार्जन की तैयारियां की जा रही हैं। उपज खरीदने के बाद सीधे गोदाम में रखी जाएगी।

केंद्रीय एजेंसियों की मांग पर उन्हें इसका परिदान होगा। जब तक ये उपज गोदाम में रखी जाएगी, तब तक के भंडारण का किराया भी भारत सरकार ही देगी। 13.68 लाख मीट्रिक टन की निर्धारित सीमा से अधिक सोयाबीन का उपार्जन होता है तो उसमें आने वाले व्यय का भार राज्य सरकार द्वारा उठाया जाएगा। उपज को नीलाम करके इस राशि की पूर्ति की जाएगी और जो अंतर की राशि होगा, उसकी प्रतिपूर्ति मार्कफेड को सरकार अनुदान के रूप में करेगी।

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