श्रीराम वनगमन पथ में शामिल ग्राम रामपाल का अष्टकोणीय शिवलिंग

जगदलपुर । Action India News
बस्तर में मिले पौराणिक प्रमाणों के आधार पर श्रीराम वनगमन शोध संस्थान ने यह तय किया है कि त्रेतायुग में बस्तर दंडकारण्य के नाम से विख्यात था। कलचा क्षेत्र अंर्तगत ग्राम रामपाल में प्रभु श्रीराम, माता सीता व अनुज लक्ष्मण कुछ समय गुजाराथा, यहां उन्होंने भगवान शिव की उपासना भी की थी। उसी कालखंड में शिवलिंग की स्थापना की गई थी, श्रीराम के वनगमन के कारण ही इस गांव का नाम रामपाल पड़ा।
जगदलपुर के आमागुड़ा चौके से हाटगुड़ा, हाटगुड़ा से कलचा होते हुए तुरेनार, झरनीगुड़ा के बाद रामपाल पहुंचा जा सकता है। यहां तक पक्की सडक़ उपलब्ध है, बस्तर जिला मुख्यालय से इसकी दूरी महज 10 किमी है। आधे घंटे के सफर में यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। जगदलपुर से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रामपाल में स्थित छोटे से शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग की बनावट आम शिवलिंग से पूरी तरह अलग है। साढ़े तीन फीट ऊंचे इस शिवलिंग कानिचला आधार अष्टकोणीय है।
उल्लेखनीय है कि यहां पहुंचे एक विदेशी पर्यटक ने श्रद्धा जताते हुए वर्ष 1860 में लंदन निर्मितघंटी मंदिर को भेंट की थी। हालांकि मंदिर की हालत जीर्ण होने की स्थितिमें है मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए समिति बनी है। श्री लिंगेश्वर मंदिर निर्माण समिति ने आपसी चंदा कर मंदिर के आसपास चबूतरे व पिलर खड़े कर दिए हैं। अब राज्य सरकार ने इसे रामगमन पथ सर्किट से जोड़ दिया है। इससे रामभक्त व यहां के निवासी उत्साहितहैं उनका कहना है कि इससे बस्तर के साथ ही गांव में भी पर्यटन का विकास होगा।
मंदिर के पुजारी अर्जुन ने बताया कि इससे भी नीचे यह शिवलिंग चार कोण वाला है, जैसे ही यह आकृति कुछ ऊपर हुई इसमें आठ कोण आसानी से नजर आ रहे हैं। मंदिर परिसर में एक घंटी लगी हुई है। इस घंटी पर मेड इन लंदन उल्लेखित होने के साथ हीरोमन लिपि में घंटी के निर्माण का वर्ष 1860 अंकित है। यह घंटी सामान्यत:मंदिरो में लगे घंटी के आकार-प्रकार से पूरी तरह अलग है।