राष्ट्रीय

दान लेने वाले और दान देने वाले कॉरपोरेट घरानों के बीच सांठगांठ के कथित आरोपों की SIT जांच से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दान लेने वाले राजनीतिक दलों और दान देने वाले कॉरपोरेट घरानों के बीच सांठगांठ के कथित आरोपों की विशेष जांच दल (SIT) से जांच कराने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने आज इस मामले की सुनवाई की। दो गैर सरकारी संगठनों, कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की याचिका में चुनावी बॉन्ड योजना के तहत कथित चंदा लो और धंधा दो की व्यवस्था की न्यायिक निगरानी में जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित करने की मांग की गई थी।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने गैर सरकारी संगठन की तरफ से मामले में पैरवी की। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि अधिकांश इलेक्टोरल बॉन्ड के बदले दानदाताओं को कुछ न कुछ बदले में दिए गए हैं। कुछ लोगों को तो कॉन्ट्रैक्ट दिए गए और उनके द्वारा दान की गई रकम कुल कॉन्ट्रैक्ट रकम का एक फीसदी है। प्रशांत भूषण ने कहा, इन मामलों में न केवल राजनीतिक दल बल्कि प्रमुख केंद्रीय जांच एजेंसियां ​​भी शामिल हैं। बकौल भूषण यह देश के इतिहास में सबसे खराब वित्तीय घोटालों में से एक है। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने भी फैसले में बिल्कुल यही आशंका जताई थी, और अब जो कुछ सामने आया है, वह बिल्कुल चौंकाने वाला है।

इस पर CJI ने कहा, "हमने पहले ही खुलासा करने का आदेश दे दिया है, अब सामान्य प्रक्रिया का पालन होने दीजिए। हम एक निश्चित बिंदु तक पहुंच गए हैं।" CJI ने पूछा कि एसआईटी इसमें अब क्या जांच कर सकती है? इस पर भूषण ने कहा कि SIT यह जांच कर सकती है कि क्या दोनों पक्षों के बीच चंदा लो और धंधा दो जैसी अदला-बदली या एक हाथ से ले और दूसरे हाथ से दे जैसी भावना और व्यवस्था थी और अगर थी तो इसमें  कौन-कौन लोग शामिल थे?

सीजेआई ने ये भी कहा कि यह वस्तुतः एक खुली जांच होगी लेकिन हमारा मानना ​​है कि आपराधिक प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले कानून के मामले में इस अदालत के किसी भी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एसआईटी के गठन का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए। बता दें कि इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग की अनुमति देने वाली चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था और भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड जारी करना तुरंत बंद करने का आदेश दिया था। इसके साथ ही अदालत ने SBI को सभी दानदाताओं के विवरण सार्वजनिक करने का भी आदेश दिया था।

याचिकाओं में दावा किया गया था कि SBI द्वारा जारी किए गए चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों से पता चला है कि इनमें से अधिकांश को कॉरपोरेट घरानों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा लो और धंधा लो की व्यवस्था के रूप में दान दिया गया था। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि ये समझौते केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या आयकर विभाग सहित केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से बचने के लिए या फिर आर्थिक लाभ के लिए किए गए हो सकते हैं। इसलिए इनकी न्यायिक निगरानी में SIT से जांच कराई जाए।

 

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