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आंखों में दिखने वाले थायराइड के लक्षण: जिन्हें नजरअंदाज न करें

थायरॉइड के मरीज की आंख में कभी-कभी एक ऐसी कंडीशन डेवलप हो जाती है जिसकी वजह से इम्यून सिस्टम आंखों के आसपास की मांसपेशियों और अन्य टिशूज पर अटैक करने लगता है। थायरॉइड नेत्र रोग की वजह से आने वाली यह सूजन आईबॉल में देखने में ऐसी लगती है कि मानो आंखें अपने सॉकेट से बाहर आ जाएंगी।

थायरॉइड आई डिजीज की स्थिति में आपका इम्यून सिस्टम संक्रमण से लड़ने की जगह गलती से थायरॉइड ग्लैंड पर ही हमला कर देता है, जिसकी वजह से थायरॉइड हार्मोन जरूरत से ज्यादा या कम मात्रा में बनने लगते हैं और आंखों पर प्रभाव डालते हैं।

आंखें निकल आती हैं बाहर

शार्प साइट आई हॉस्पिटल्स दिल्ली में वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक डॉ. पुनीत जैन कहते हैं कि थायरॉइड एक ऐसा ग्लैंड है जो हमारे गले में मौजूद होता है। इस ग्लैंड में से एक हार्मोन निकलता है, जिसे थायरॉइड हार्मोन कहते हैं। यह थायरॉइड हार्मोन हमारे शरीर में काफी सारे काम करता है।

अगर थायरॉइड ग्लैंड के काम में कोई कमी आती है, तो इसका असर आंख या उसके आसपास के हिस्से पर पड़ता है। थायरॉइड आई डिजीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो कभी भी आंख को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं करती है बल्कि आंख के आस-पास के टिश्यू को नुकसान पहुंचाती है।

बड़ी-बड़ी आंखें हो सकती है थायरॉइड आई डिजीज

इसमें आंख की मांसपेशियां और आंख के पीछे के फैटी टिश्यू में सूजन आ जाती है। यह बीमारी ज्यादा हाइपरथायरायडिज्म मरीजों में देखने को मिलती है। जिन लोगों को थायरॉइड की समस्या नहीं है, यह बीमारी कुछ मामलों में उन्हें भी हो सकती है। आंखों का बाहर की तरफ निकलना थायरॉइड आई डिजीज का सबसे आम लक्षण है।

दूसरा बड़ा लक्षण है पलकों का ऊपर की तरफ उठना जिससे आंखें बड़ी लगती हैं। पलकों में सूजन आना, डबल दिखाई देना आदि लक्षण भी इसी बीमारी के हैं। कुछ गंभीर मामलों में मरीज की नजर भी कमजोर हो सकती है जो कि ऑप्टिक नर्व पर खिंचाव आने के कारण होता है। आमतौर पर थायरॉइड आई डिजीज आंख की नज़र को सीधे प्रभावित नहीं करती है।

हॉर्मोन का अधिक उत्पादन

मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद से इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. संतोष कुमार अग्रवाल बताते हैं कि थायरॉइड नेत्र रोग मुख्य रूप से हाइपर थायराइड रोग में होता है (थायराइड ग्रंथि बहुत अधिक मात्रा में हार्मोन का उत्पादन करती है)। हाइपरथायरायडिज्म आंखों को प्रभावित कर सकता है, जिसे थायरॉइड ऑप्थाल्मोपैथी के रूप में जाना जाता है।

यह हार्ट को भी प्रभावित कर सकती है जिससे हृदय गति अनियमित और ज्यादा बढ़ सकती है, जिसे एरिथमिया कहा जाता है। हाइपरथायरायडिज्म दिमाग के टिश्यू और पेरीफेरल नर्वस और ब्रेन पर भी असर डाल सकती है, जो न्यूरोपैथी (हाथ-पैर में झनझनाहट, सुन्नपन, कमजोरी, दर्द, जलन जैसा महसूस होना) और एन्सेफैलोपैथी (ब्रेन की कार्य क्षमता में कमी आना) का कारण बन सकते हैं।

आ सकता है अंधापन

हाइपरथायरायडिज्म के कारण आंखों के विशेष रूप से प्रभावित होने को ग्रेव्स ऑप्थाल्मोपैथी (थायरॉइड आई डिजीज) कहा जाता है, जो कॉर्निया को नुकसान पहुंचाने, अल्सर और यहां तक कि अंधापन जैसी गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकती है।

आंखों की इन जटिलताओं को उचित निगरानी के साथ एंटी थायरॉइड दवाओं को जल्द शुरू करके, सिस्टेमिक और टोपिकल स्टेरॉयड की हाई डोज का इस्तेमाल, आंखों के लुब्रिकेंट्स का बार-बार उपयोग, आंखों को ढकने और आंखों से संबंधित चिकित्सकीय परामर्श के द्वारा मैनेज किया जा सकता है।

लक्षण के आधार पर होता है इस बीमारी का इलाज

डॉ. पुनीत जैन कहते हैं कि इस बीमारी का इलाज लक्षण के आधार पर किया जाता है। लक्षण दो तरह के हो सकते हैं-इंफ्लेमेटरी या फाइब्रोटिक। अगर किसी मरीज को आंखों में बल्जिंग (आंखों का बाहर की तरह होना), पलकों का ऊपर की तरफ उठना जैसे लक्षण हैं, तो ये इंफ्लेमेटरी है। फिर इसके लिए मरीज को दवाइयां दी जाती हैं।

लेकिन मरीज की बीमारी इंफ्लेमेटरी न होकर फाइब्रोटिक है, तो फिर मरीज को सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है। मतलब दवा के द्वारा आंख अंदर नहीं जाएगी, इसलिए सर्जरी करने की जरूरत पड़ती है।

दरअसल, थायरॉइड आई डिजीज कोई गंभीर बीमारी नहीं है। लेकिन अगर इसके ट्रीटमेंट में ज्यादा देरी होती है, तो फिर ये मरीज की आंख की नजर को नुकसान पहुंचा सकती है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए जरूरी है सबसे पहले स्मोकिंग बंद करना। उसके बाद फिजिशियन से मिलकर थायरॉइड की ठीक से जांच कराएं और साथ ही दूसरी बीमारियों की भी जांच कराएं।

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज्यादा होती है यह प्रॉब्लम

थायरॉइड आई डिजीज ऑर्बिट (हड्डी का सॉकेट जिसमें आंख, आंख की मांसपेशियां, आंख की सारी नसें मौजूद होती हैं) का एक इंफ्लेमेटरी डिसऑर्डर है। यह बीमारी ग्रेव्स/हाइपरथायरायडिज्म रोग से काफी जुड़ी होती है लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि सभी मरीजों में ग्रेव्स बीमारी हो।

लगभग 75-80 प्रतिशत मरीजों में थायरॉइड आई डिजीज ग्रेव्स बीमारी से जुड़ी होती है लेकिन थायरॉइड आई डिजीज सामान्य रूप से कार्य करने वाली थायरॉइड ग्लैंड्स में भी हो सकती है। इसलिए इसे जटिल इंफ्लेमेटरी डिसऑर्डर भी कहा जाता है।

थायरॉइड आई डिजीज का कारण

थायरॉइड आई डिजीज होने का मूल कारण अभी तक पता नहीं चला है। आमतौर पर स्मोकिंग इसका सबसे आम रिस्क फैक्टर है। यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमैटोसस (एसएलई) के कारण भी हो सकती है। थायरॉइड आई डिजीज 40-60 साल की उम्र में देखी जाती है।

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