अन्तर्राष्ट्रीय

महिलाओं के शरीर में अबॉर्शन की दवा पकड़ने वाली तकनीक

पोलैंड

22 साल की एक लड़की पोलैंड के व्रोत्सवॉफ में एक अस्पताल में पहुंची. उसके गर्भ में मृत भ्रूण था. लड़की ने कहा कि शायद उसका गर्भपात हुआ होगा लेकिन उसे यह पता ही नहीं था कि वह गर्भवती थी. पुलिस जब उसके घर पहुंची तो सूरत कुछ और ही थी. अधिकारियों को वहां पर दर्दनाशक दवाएं, ऐंटीबायोटिक, प्रेग्नेंसी किट और अबॉर्शन पिल कहलाने वाली दवाएं बिखरी मिली.

 उस लड़की के खून के नमूने व्रोत्सवॉफ मेडिकल यूनिवर्सिटी के फॉरेंसिक विभाग भेजे गए. एक नए टेस्ट की मदद से रिसर्चरों ने खून में मीफेप्रिस्टोन के अंशों का पता लगा लिया. यह उन दो दवाओं में से एक है जिनका इस्तेमाल गर्भपात के लिए होता है. इस परीक्षण के नतीजो मॉलीक्यूल्स नामक जर्नल में छापे गए हैं.

इसी जर्नल में छपी एक और रिपोर्ट में उसी टीम के एक सदस्य ने इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए दो अलग नमूनों में अबॉर्शन में इस्तेमाल होने वाली एक और दवा मीजोप्रोस्टल का पता लगाया. इस बार यह मां के खून में नहीं बल्कि गिराए गए भ्रूण के परीक्षण से पता चला. इस तकनीक में इस्तेमाल किए गए तरीके का नाम है हाई परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमाटोग्राफी, जिसके जरिए किसी तरल नमूने के विभिन्न हिस्सों को ऊंचे दबाव यानी हाई प्रेशर में अलग किया जाता है. इस तरीके का इस्तेमाल काफी आसान है और जल्दी हो सकता है. इस नए टेस्ट के इस्तेमाल की खबरों ने पोलैंड में महिलाओं को सतर्क रहने पर मजबूर कर दिया है, जहां अबॉर्शन गैर-कानूनी है. इसका नतीजा यह हो सकता है कि महिलाएं गर्भपात के लिए असुरक्षित और गुपचुप तरीके अपनाने लगें.

पोलैंड में गर्भपात

यह समझना जरूरी है कि पोलैंड के कानून के तहत खुद ही अबॉर्शन के तरीके अपनाना अवैध नही हैं लेकिन इसमें मदद करने वाले को सजा दी जा सकती है. दवा के जरिए गर्भपात केवल उन्हीं स्थितियों में स्वीकार्य है जब मां की जिंदगी खतरे में हो या बलात्कार की वजह से गर्भधारण हुआ हो. मीडिया में ऐसी खबरें आती रहती हैं जिनसे पता चलता है कि पोलैंड में अधिकारियों ने उन महिलाओं के घर पर छापा मारा जिनपर गर्भपात की सुविधा मुहैया करवाने का शक था.

इसके बाद देश में व्यापक विरोध-प्रदर्शन भी हुआ. ह्यूमन राइट्स वॉच को दिए इंटरव्यू में डॉक्टरों, वकीलों और दवा के जरिए अबॉर्शन करवाने वाली एक महिला ने कहा कि पोलैंड में बड़े पैमाने पर जांच और औचक पड़ताल हो रही है.

यूरोपीय संसद की एक रिसर्च के मुताबिक, साल 2020 से अब तक, कम से कम छह महिलाओं की मौत हो गई क्योंकि डॉक्टरों ने अबॉर्शन की जरूरत होने के बावजूद बहुत देर कर दी या फिर आत्मा की आवाज और नतीजों का डर बताते हुए गर्भपात किया ही नहीं.

यूरोपीय संसद की सदस्य एवलिन रेगनर कहती हैं, "पोलैंड में महिलाओं के खिलाफ द्वेष बहुत ज्यादा है. पोलिश संसद ने जिस अबॉर्शन बैन को लागू करवाया है,  वह सीधे महिलाओं की शारीरिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है. यह बुनियादी व मानवीय अधिकारों पर हमला है और किसी भी उदार लोकतंत्र के लिए अपरिकल्पनीय है."

क्या हैं अबॉर्शन दवाएं

साधारण शब्दों में, अबॉर्शन दवाएं ऐसी गोलियां हैं जिन्हें लेने से कृत्रिम तौर पर गर्भपात संभव है. इससे भ्रूण योनि के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है. इस प्रक्रिया में पहले मीफेप्रिस्टोन ली जाती है और उसके 48 घंटे बाद मीजोप्रोस्टल.

पहली दवा, प्रग्नेंसी हार्मोन कहलाने वाले प्रोजेस्टेरॉन को ब्लॉक करती है. इस हार्मोन के बिना शरीर, शुरुआती भ्रूण के लिए जरूरी शारीरिक स्थितियां पैदा करने में सक्षम नहीं रहता. लेकिन इतना ही काफी नहीं है. विकसित हो रही कोशिकाओं को शरीर से निकालना जरूरी है ताकि संक्रमण पैदा ना हो.

यह काम करती है मीजोप्रोस्टोल. यही वह दवा है जो पेट में कॉन्ट्रैक्शन पैदा करती है ताकि एक या दो दिन के भीतर कोशिकाएं शरीर से बाहर निकल जाएं. इन दोनों दवाओं का मेल 90 फीसदी महिलाओं में गर्भपात करने में सफल साबित होता है लेकिन ऐसा शुरुआत के 10 हफ्तों में संभव है. जैसे जैसे गर्भावस्था में दिन गुजरते हैं, इनके विफल रहने की संभावना भी बढ़ती जाती है.

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