`राज्यपाल को विधानसभा में पारित विधेयक का पर्यवेक्षण करने का अधिकार नहीं’
नई दिल्ली/टीम एक्शन इंडिया
आरक्षण विवाद लेकर कांग्रेस पार्टी ने जहां 3 जनवरी को महारैली करने का निर्णय लिया है वहीं राज्य की कांग्रेस सरकार ने विधानसभा के विशेष सत्र में पारित संशोधित आरक्षण विधेयक को लेकर राज्यपाल द्वारा सवाल पूछे जाने पर लिखित रूप से कहा है कि राज्यपाल को विधानसभा में पारित विधेयक का पर्यवेक्षण करने का अधिकार नहीं है। राज्य सरकार ने राजभवन को अपना जवाब भेज दिया है।
उल्लेखनीय है कि सोमवार शाम को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कड़े शब्दों में कहा है कि राजभवन के विधिक सलाहकार क्या विधानसभा से भी बड़े हो गए हैं? मैंने राज्यपाल की जिद को ध्यान में रखते हुए और प्रदेश की पौने 3 करोड़ जनता को आरक्षण का लाभ मिले, ये सोचकर जवाब भेजा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्यपाल को सरकार द्वारा भेजे गए जवाब में सरकार ने लिखा है कि एससी-एसटी आरक्षण के लिए 2011 की जनगणना को आधार बनाया गया है। सरकार के पास अन्य पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के संबंध में स्पष्ट एवं प्रामाणिक आंकड़े उपलब्ध नहीं थे, इसलिए क्वांटीफाएबल डाटा आयोग बनाया गया था। आयोग से मिली जानकारी को आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से आधार माना गया है। आयोग ने 3 साल तक परीक्षण किया। 18 जिलों में 22 बैठकें लीं। ग्राम पंचायतों में ग्राम सभा और निकायों में मेयर इन काउंसिल से जानकारी जुटाई। इसलिए रिपोर्ट आरक्षण का मजबूत आधार बनीं। सरकार के अनुसार आरक्षण का प्रावधान करने के लिए विभिन्न न्यायालयों द्वारा पूर्व में दिए गए फैसलों को ध्यान में रखा गया है। इसके साथ ही वर्तमान आरक्षण अधिनियम में सर्वोच्च न्यायालय के विधि मान्य सिद्धांतों का भी ध्यान रखा गया है। लोक सेवाओं में आरक्षण विषय वस्तु एक ही होने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए पृथक संशोधन विधेयक नहीं लाया है।
जवाब में यह भी जानकारी दी गई है कि कई राज्यों में इसी तरह की प्रक्रिया अपनाकर आरक्षण में जनसंख्या को सही प्रतिनिधित्व देने की प्रक्रिया अपनाई गई है। लिखित जवाब में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में राज्य को यह अधिकार दिया गया है कि वह परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आरक्षण की व्यवस्था करे। इसी प्रावधान को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने वर्तमान संशोधन विधेयक तैयार किया है। इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल से आग्रह किया गया है कि वे आरक्षण संशोधन विधेयक को मंजूरी दें।
ज्ञात हो कि हाई कोर्ट ने प्रदेश में 58 प्रतिशत आरक्षण को निरस्त करने का आदेश दिया है। राज्य सरकार ने 2 दिसंबर को विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया है । इसमें अनुसूचित जाति 13 प्रतिशत, अनुसूचित जन जाति 32 प्रतिशत, ओबीसी 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई। इस तरह से राज्य में 76 प्रतिशत आरक्षण करने का विधेयक सर्वसम्मति से पारित हो गया। राज्यपाल ने अभी इस संशोधित विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं,अपितु सरकार से इसे लेकर दस सवाल पूछे हैं।