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राजस्थान में ‘सेम’ का संकट गहराया, 2 लाख हेक्टेयर खेती तबाह; लोकसभा में उठा मुद्दा

जयपुर

राजस्थान में सूखे से ज्यादा सेम की समस्या खेती को बर्बाद कर रही है।  मिट्टी की लवणता यानी ‘सेम’ की समस्या राजस्थान में तेजी से गंभीर रूप ले रही है। केंद्र सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि राज्य में करीब 1 लाख 96 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि सेम से प्रभावित हो चुकी है। सबसे ज्यादा असर श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में देखने को मिल रहा है, जहां हजारों हेक्टेयर उपजाऊ जमीन दलदली होकर खेती के लायक नहीं रह गई है। इससे किसानों की आजीविका पर भी गंभीर संकट खड़ा हो गया है।

कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने सांसद कुलदीप इंदोरा के एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI) द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन कराया गया है। इस अध्ययन में सामने आया कि राजस्थान में 1,95,571 हेक्टेयर भूमि मिट्टी के लवणीकरण से प्रभावित है, जिसे आम भाषा में सेम कहा जाता है।

क्यूं बढ़ रही है सेम की समस्या
अध्ययन के अनुसार सेम की मुख्य वजहें प्राकृतिक जल निकास में रुकावट, अत्यधिक सिंचाई और भूजल स्तर का बढ़ना हैं। इन कारणों से मिट्टी में मौजूद लवण ऊपर की सतह पर आ जाते हैं, जिससे धीरे-धीरे खेत बंजर हो जाते हैं और फसल उत्पादन प्रभावित होता है। केंद्र सरकार ने माना कि उत्तर राजस्थान के नहर सिंचित क्षेत्रों में स्थिति लगातार बिगड़ रही है। ICAR की रिपोर्ट के मुताबिक अकेले श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में करीब 5,397 हेक्टेयर भूमि सेम से प्रभावित है, जिससे जलभराव, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट और कृषि उत्पादकता में कमी आ रही है।

ICAR ने सुझाए उपाय
समस्या से निपटने के लिए ICAR ने अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों उपाय सुझाए हैं। अल्पकालिक उपायों में प्रभावित क्षेत्रों की पहचान, सतही जल निकासी में सुधार, सिंचाई का बेहतर प्रबंधन, मिश्रित गुणवत्ता के पानी का उपयोग और नमक सहनशील फसलों को बढ़ावा देना शामिल है। वहीं दीर्घकालिक समाधान के तौर पर भूमिगत जल निकासी प्रणाली, गहरी जड़ों वाले वृक्षों के जरिए बायो-ड्रेनेज और नमक सहनशील पेड़ों के साथ कृषि वानिकी मॉडल अपनाने की सिफारिश की गई है। सरकार ने बताया कि इन तकनीकों को प्रशिक्षण, प्रदर्शन और जागरूकता अभियानों के माध्यम से किसानों तक पहुंचाया जा रहा है। इसके साथ ही मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना के तहत जारी किए जा रहे सॉयल हेल्थ कार्ड भी सेम प्रभावित क्षेत्रों में किसानों को मिट्टी प्रबंधन में मदद कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो राजस्थान में उपजाऊ कृषि भूमि का नुकसान और बढ़ सकता है।

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