राष्ट्रीय

ईसाई बनने वालों को न मिले ST कोटा; दिल्ली में जुटेंगे हजारों आदिवासी, 15 बनाम 85 की है तैयारी

नई दिल्ली/रांची.

हिंदू से ईसाई या अन्य धर्मों में गए जनजातीय लोगों को आरक्षण दिया जाए या नहीं, यह बहस लंबे समय से रही है। इस बीच दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन होने जा रहा है, जिसमें देश भर से आने वाले हजारों आदिवासी जुटेंगे और मांग करेंगे कि धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर किया जाए और उन्हें आरक्षण न मिले। क्रिसमस की पूर्व संध्या पर रांची में करीब 5000 आदिवासी जुटे थे और यही मांग की। यह आयोजन जनजाति सुरक्षा मंच ने आयोजित किया था, जिसे आरएसएस से प्रभावित माना जाता है। कहा जा रहा है कि यह संगठन देश के सभी हिंदू आदिवासियों को एक मंच पर लाने का काम कर रहा है।
जनजाति सुरक्षा मंच का कहना है कि आदिवासी समाज के जिन लोगों ने ईसाई धर्म अपना लिया है, उन्हें चर्च और मिशनरी से मदद मिल रही है। उनके बच्चों को पढ़ने की सुविधा मिल रही है और आर्थिक लाभ भी हासिल हुए हैं। इसके चलते वे उन आदिवासियों से मजबूत स्थिति में हैं, जिन्होंने अपना धर्म नहीं बदला है। धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को सूची से बाहर करने की मांग करने वालों का तर्क है कि इन लोगों को चर्च के माध्यम से विदेशी फंड मिल रहा है। आरक्षण का लाभ मिल रहा है और सरकार की ओर से अल्पसंख्यकों के लिए चल रही योजनाओं का फायदा भी ये उठा रहे हैं।
करिया मुंडा बोले- पूरा आरक्षण तो इन 15 फीसदी को मिल रहा
इस तरह इन लोगों को धार्मिक अल्पसंख्यक का भी लाभ मिल रहा है और जातीय आरक्षण भी हासिल हो रहा है। यह विरोधाभासी है और नियम के खिलाफ है। रांची में हुई रैली की अध्यक्षता करने वाले लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर करिया मुंडा ने कहा, 'धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों की संख्या 15 से 20 फीसदी है, लेकिन जब हम सरकारी नौकरियों और क्लास वन अधिकारियों की बात करते हैं तो उनमें इनकी भागीदारी कुल आदिवासियों के मुकाबले 90 फीसदी तक है।' धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों की सूची से बाहर करने की मांग नई नहीं है, लेकिन रांची में हुए आयोजन ने इसे मजबूती दी है।
मूल आदिवासियों के लिए था कोटा, पर लाभ ले रहे ईसाई
अब जनजाति सुरक्षा मंच दिल्ली में बड़ी रैली की तैयारी में है। फरवरी में होने वाली इस रैली के लिए अभी तारीख तय नही है। संगठन का कहना है कि रांची से पहले मुंबई, नागपुर जैसे शहरों में भी ये मीटिंग हो चुकी हैं। अब इसे राष्ट्रव्यापी स्वरूप देने के लिए दिल्ली में रैली होगी। संगठन के राष्ट्रीय सह-संयोजक राजकिशोर हंसदा ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने एसटी आरक्षण इसलिए लागू किया था ताकि देश की 700 मूल जनजातियों को सुविधा मिल सके, लेकिन उसका पूरा लाभ चर्च समर्थक लोगों को मिल रहा है। 

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