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गहलोत के विकास और भाजपा के बदलाव में कड़ी टक्कर

जयपुर.

राजस्थान में चुनाव प्रचार का शोर थम चुका है। शनिवार को यहां वोट डाले जा रहे हैं। चुनाव के अंतिम क्षणों में भी अभी तक कोई यह कहने की स्थिति में नहीं है कि इस बार राजस्थान में किसकी सरकार बनेगी। यह राजस्थान के उस मिजाज से बिल्कुल उलट है, जिसमें चुनाव के साल-छह महीने पहले ही यहां सरकार बदलने की भविष्यवाणी कर दी जाती थी। लेकिन अशोक गहलोत सरकार के विकास के कामों और जनता से किये गए वादों ने राजस्थान की यह परंपरा उलटने का काम किया है।

राजस्थान चुनाव में अशोक गहलोत सरकार के विकास और भारतीय जनता पार्टी के बदलाव के बीच कड़ी टक्कर है। मामला बिल्कुल भी एक तरफ नहीं है और थोड़े-बहुत अंतर से यह किसी की भी ओर झुक सकता है। चुनाव के अंतिम क्षणों में नेता लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर बाजी अपनी ओर पलटने की कोशिश कर रहे हैं। राजधानी जयपुर से लेकर राजस्थान के बिल्कुल दूर इलाके के किसी भी गांव में जाने पर राज्य सरकार के विकास के काम दिखाई पड़ते हैं। बॉर्डर एरिया रामगढ़ में हार्डवेयर की दुकान चला रहे टीकाराम बताते हैं कि उनके यहां 12वीं तक के ही स्कूल थे। डिग्री कॉलेज दूर होने के कारण लड़कियां इससे आगे की पढ़ाई नहीं कर पाती थीं। लेकिन अब उनके यहां डिग्री कॉलेज और आईटीआई खुल गया है। अब लड़कियां ऊंची पढ़ाई कर रही हैं और आईटीआई पूरा करने के कारण लड़कों को नौकरी भी मिल रही है। यह सब केवल पिछले पांच सालों के अंदर हुआ है। उन्हें लगता है कि कोई भी राज्य हो इसी तरह की सरकार सत्ता में आनी चाहिए, जो लोगों के लिए काम करे और उन्हें लाभ पहुंचाये। रामगढ़ जैसी विकास की कहानी राजस्थान के हर क्षेत्र में सुनी जा सकती है।

कल्याणकारी योजनाओं का असर
अशोक गहलोत सरकार ने 25 लाख रुपये तक के इलाज की निशुल्क सुविधा देने की घोषणा कर राज्य में बड़ा दांव खेला था। मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना की घोषणा के बाद से ही इसकी सफलता पर सवाल उठाए जा रहे थे। कहा जा रहा था कि यदि जनता तक इस योजना का लाभ नहीं पहुंचा और यह केवल घोषणा ही बनकर रह गई, तो यही योजनाएं अशोक गहलोत सरकार की अलोकप्रियता और विफलता का सबसे बड़ा कारण बनेंगी। लेकिन संभवतः राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत ने उसी समय यह तय कर लिया था कि उन्हें अगला चुनाव विकास और कामकाज पर लड़ना है। शायद इसीलिए योजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए पूरा दमखम लगा दिया गया और उसी का परिणाम आज कांग्रेस और अशोक गहलोत को मिलता दिख रहा है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि चिरंजीवी योजना के कारण उन्हें सरकारी और महंगे प्राइवेट अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज मिल रहा है। जिन बीमारियों के इलाज में उनका परिवार आर्थिक तौर पर बर्बाद हो जाता था, अब बहुत आसानी से उनका इलाज करवा पा रहे हैं।

गहलोत सरकार की यह योजना 'गेम चेंजर' साबित हुई है। आने वाले समय में यह योजना देश की राजनीति का पैमाना भी बदल दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। इसी तरह गहलोत सरकार की महंगाई राहत योजना, आर्थिक सहायता की घोषणाओं, विभिन्न वर्गों के छात्रों के लिए जिले-जिले में  हॉस्टल और महिलाओं के लिए स्मार्टफोन योजना बेहद कारगर साबित हुई है। जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का लाभ मिलने से अशोक गहलोत सरकार गरीब और कमजोर वर्गों के बीच काफी लोकप्रिय हुई है। इन योजनाओं ने कांग्रेस की चुनावी राजनीति तय करने में अहम भूमिका निभाई है। यदि राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार की वापसी होती है, तो उसका श्रेय इन्हीं योजनाओं को दिया जायेगा।

बदलाव, सुरक्षा पर भाजपा का दांव
सरकार के कामकाज से संतुष्ट स्थानीय लोग कई जगहों पर विधायकों से नाराज भी दिखाई पड़ रहे हैं। विधायकों की कथित मनमानी और भ्रष्टाचार से छुटकारा पाने के लिए लोग बदलाव की बात भी कर रहे हैं। राजस्थान में महिलाओं के साथ हुईं कई बड़ी आपराधिक घटनाओं ने अशोक गहलोत सरकार की छवि खराब करने का काम किया है। भाजपा ने इसे यहां बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की है। उनके कार्यकर्ता जगह-जगह पर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि यदि सरकार की वापसी होती है, तो इससे राज्य में अपराध बढ़ जाएगा। भाजपा कार्यकर्ता राजस्थान में भी जोर-जोर से योगी आदित्यनाथ के 'बुलडोजर मॉडल' का गुणगान कर रहे हैं। दागी नेताओं को पार्टी की केंद्रीय नेतृत्व ने कथित तौर पर टिकट देने से साफ इनकार कर दिया था, लेकिन कहा जाता है कि कांग्रेस की राज्य इकाई ने अपनी जरूरत बताते हुए ऐसे चेहरों को भी टिकट दिलवा दिया है जिनकी छवि खराब है। इससे भी अशोक गहलोत  सरकार की छवि पर असर पड़ा है। लोग कह रहे हैं कि उन्हें ऐसी विधायकों से उन्हें छुटकारा चाहिए। यह नाराजगी विधायकों से है, सरकार के कामकाज और विकास से उन्हें कोई परेशानी नहीं है। लेकिन कड़े मुकाबले में अंतिम परिणाम पर यह मुद्दा सरकार के कामकाज पर भारी पड़ सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के सभी बड़े नेता अपनी चुनावी सभाओं में अशोक गहलोत सरकार पर मुसलमानों का तुष्टिकरण करने के आरोप लगा रहे हैं। कन्हैया लाल मर्डर के मीम्स, फोटो, वीडियो व्हाट्सएप के माध्यम से लोगों तक पहुंचाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि यदि सरकार की वापसी होती है, तो राजस्थान में जगह-जगह पर इसी तरह की घटनाओं की बाढ़ आ जायेगी। कांग्रेस इसे भाजपा का चुनावी हथकंडा बताकर खारिज कर रही है, लेकिन लोगों पर इसका असर भी दिखाई पड़ रहा है। यदि भाजपा राजस्थान के चुनावी रण में बाजी मारती है, तो उसके पीछे मोदी फैक्टर के साथ-साथ इसका असर भी होगा।

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