राष्ट्रीय

(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) …जब राजकुमार पर भारी पड़े रामानंद सागर

रामानंद सागर को आज की पीढ़ी जन-जन में लोकप्रिय धारावाहिक रामायण के निर्माता निर्देशक एवं लेखक के रूप में जानती है। कम ही लोगों को ही ज्ञात होगा कि उन्होंने अपना करियर लाहौर में एक पत्रकार के रूप में शुरू किया और फिल्म लेखक, संवाद लेखन के बाद निर्माता-निर्देशक बने और अपने बैनर सागर फिल्म्स द्वारा निर्देशित घूंघट, जिंदगी,आरजू, आंखें, गीत और ललकार जैसी सुपरहिट फिल्में हिंदी सिनेमा को दी।

अपने शुरुआती दिनों में वे विभाजन के दौरान लाहौर से श्रीनगर और वहां से दिल्ली पहुंचे थे। दिल्ली में 13 सदस्यों का यह पूरा परिवार बिरला मंदिर के शरणार्थी कैंप में ठहरा था।

यहां वे सबसे पहले कनॉट प्लेस स्थित डेली मिलाप के ऑफिस गए, क्योंकि लाहौर में वे इसी अखबार के लिए काम किया करते थे। वहां के संपादक ने उन्हें मौलाना अबुल कलाम से मिलाया और उनके सहयोग से जहां उन्हें दरियागंज में दो मकान आवंटित हुए ।

वहीं ऑल इंडिया रेडियो में लेखक के रूप में नौकरी भी मिल गई। लेकिन रेडियो में तमाम बंदिशों के कारण यह नौकरी उन्हें रास नहीं आ रही थी और एक दिन वह नौकरी छोड़ कर अपनी किस्मत आजमाने बंबई (अब मुंबई) के लिए निकल पड़े। वहां वे माहिम में संघर्ष कर रहे दो अन्य युवा कलाकारों देवानंद और संगीतकार मदन मोहन के साथ ठहरे।

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