रवि भारद्वाज / नई दिल्ली
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनावी बिगुल बजने के साथ ही दिल्ली के सियासी गलियारों में भी एकाएक चहलकदमी बहुत अधिक बढ़ गई है। असल में दिल्ली भी विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी है। किसी भी वक़्त चुनाव की रणभेरी बज सकती है। इसी को मद्देनजर रखते हुए दिल्ली का राजनीतिक पारा बहुत अधिक बढ़ गया है। एक तरफ जहां, भाजपा इस बार दिल्ली फतह करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती तो वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के लिए लगातार तीसरी बार सत्ता कायम रख पाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। ये तो बात रही दिल्ली के सियासी हालातों की। अब बात करते हैं एक ऐसी सीट की जो दिल्ली की राजनीति में बहुत अधिक महत्व रखती है। अगर आपने दिल्ली की राजनीति को समझना है तो केवल ये एक सीट ही सियासी समीकरण समझाने के लिए काफी है। इस सीट का नाम है आदर्श नगर विधानसभा। ये बात हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस सीट पर क्लस्टर वोट भी हैं, मिडिल क्लास वोट भी है, अपर क्लास वोट भी हैं, गुजराती वोट भी है, पूर्वांचल वोट भी है और अल्पसंख्यक ( मुस्लिम-सिख-जैन) वोट भी हैं। जो इस सीट के राजनीतिकि समीकरणों को समझ गया, मान के चलिए उसने पूरी दिल्ली की राजनीति की सीख-समझ ले ली।
आदर्श नगर – कल, आज और कल
नार्थ दिल्ली की सबसे महत्वपूर्ण सीट है आदर्श नगर। इस सीट ने जिस नेता को भी जितवाया, उसे बहुत कुछ दिया। दिल्ली विधानसभा गठन के बाद पहली बार 1993 में चुनाव हुए। इस चुनाव में भाजपा के जय प्रकाश यादव ने जीत दर्ज की थी। श्री यादव ने कांग्रेस के हैवीवेट कैंडिडेट मंगत राम सिंघल को मात्र 41 वोटों के अंतराल से पठकनी दी थी। कहते हैं कि उस चुनाव में मंगत राम सिंघल का ओवर कॉन्फिडेंस ही उनकी हार का बड़ा कारण बना था। कई वोट कटवों ने हजारों वोट काट लिये थे, जिसका नतीजा ये हुआ कि लाला जी को हार का मुँह देखना पड़ा। इसके बाद तो लाला मंगत राम सिंघल ने ऐसा कमबैक किया कि डेढ़ दशक तक किसी को अपने आस-पास भी फटकने नहीं दिया।
साल 1998, 2003 और फिर 2008 में लगातार चुनाव जीतकर आदर्श नगर को कांग्रेस के गढ़ का तमगा दिलवा दिया। इस दौरान पार्टी ने भी लाला जी को कई बड़े पदों से नवाजा। लाला जी शीला दीक्षित सरकार में कैबिनेट मंत्री तो रहे ही, साथ ही पूरी सरकार में एक छत्र राज भी किया। सियासी गलियारों में मंगत राम सिंघल को शीला जी का खास सिपहसालार कहा जाता था।
आम आदमी पार्टी का उदय और आदर्श नगर में नयी राजनीति की शुरूआत
शीला दीक्षित सरकार का पतन का समय नजदीक आ गया था। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में एक तरफ शीला का किला ढह गया तो वहीं आदर्श नगर से भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। भाजपा के रामकिशन सिंघल ने बाहरी होने के बावजूद आदर्श नगर को जीत लिया। शालीमार बाग से आये राम किशन सिंघल ने मंगत राम सिंघल का बोरिया-बिस्तर समेट दिया।
उधर, दिल्ली में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल को समर्थन देकर सरकार तो बनवा दी लेकिन ये सरकार चली सिर्फ 49 दिन। वर्ष 2015 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस बार कांग्रस ने अपने एक और कद्दावर नेता मुकेश गोयल को चुनाव मैदान में उतारा। भाजपा ने जीते हुए तत्कालीन विधायक राम किशन सिंघल को चुनाव मैदान में उतारा। और आम आदमी पार्टी ने एकदम नये चेहरे को उतारा जो आदर्श नगर का भविष्य बनने वाला था। इस शख़्स का नाम था पवन शर्मा। अपने जीवन के पहले ही मैच में डेब्यू करते हुए पवन शर्मा ने भाजपा और कांग्रेस के परखच्चे उड़ा दिये। शर्मा जी ने अपना पहला ही मैच एक बड़े अंतराल से जीत लिया। इसके बाद साल 2020 के विधानसभा चुनाव में शर्मा जी ने भाजपा के नये चेहरे राज कुमार भाटिया और कांग्रेस के नामी चेहरे मुकेश गोयल को दोबारा से शिकस्त दे दी।
कांग्रेस का पतन, मुकेश की आम आदमी पार्टी में एंट्री और फिर नेता सदन बनना
लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद मुकेश गोयल और उनके कार्यकतार्ओं का मनोबल भी गिर गया था। ऐसे में उन्होंने नया घर तालाशना शुरू कर दिया। उधर, कांग्रेस लगातार पतन के दौर से गुजर रही थी। बड़े- बड़े कांग्रेसी नेताओं की पतलून ढीली हो चुकी थी। इधर दिल्ली नगर निगम में जीत का इतिहास रच चुके मुकेश गोयल को भी अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी। भाजपा में जाकर उन्हें बहुत ज्यादा की उम्मीद थी नहीं। वहाँ पहले ही बड़े- बड़े घागों की लड़ाई थी। उसमें पिसने के बजाए, नई- नई तैयार हो रही राजनीतिक पार्टी – आप में जाना मुकेश के लिए मुफीद साबित हुआ। आम आदमी पार्टी को निगम का अनुभव नहीं था, वहीं मुकेश गोयल नगर निगम की रग-रग से वाकिफ थे। ऐसे में आम आदमी पार्टी और मुकेश गोयल का तजुर्बा, दोनों के लिए विन- विन सिचुएशन थी। समझौता हुआ, मुकेश गोयल को आदर्श नगर विधानसभा की इकलौती सामान्य सीट आदर्श नगर वार्ड से लड़वाया गया। मुकेश लगातार छठा चुनाव जीतकर फिर निगम में पहुँचे। गोयल के इकबाल में कमी जरूर आयी लेकिन आम आदमी पार्टी ने इन्हें नेता सदन बनाकर वो कमी भी पूरी कर दी। फिलवक्त, दिल्ली नगर निगम में दो चेहरे ही सबसे ज्यादा चर्चा में रहते हैं। एक मेयर शैली ओबरॉय और दूसरे मुकेश गोयल। सदन में कई बार मुकेश गोयल ही पार्टी के संकटमोचक के रूप में सामने आते हैं।
आदर्श नगर के वर्तमान सियासी हालात
पिछले 10 वर्षों से सत्ता सुख भोग रहे वर्तमान विधायक पवन शर्मा की राह इस बार सिर्फ़ काँटों भरी ही नहीं बल्कि तीरों, तोपों और आग के दरिया से गुजरने के समान होगी। ये बात हम किसी अंदाजे से नहीं कह रहे, बल्कि इसके पीछे तर्क और तथ्य, दोनों हैं। मुकेश गोयल के आम आदमी पार्टी में शामिल होने से पहले तक आदर्श नगर में पवन शर्मा का एकछत्र एकाधिकार था। आदर्श नगर में आप के सबसे बड़े नेता का तमगा शर्मा जी का पास था लेकिन मुकेश ने जब से झाड़ू उठायी है तब से विधायक जी के इकबाल में कमी आयी है। हालाँकि एमएलए साहब के चेले-चपाटे इस बात को स्वीकार नहीं करते और जनता की राय उनतक पहुँचती नहीं है।
हालिया हुए निगम चुनाव में भी विधायक जी ने मुकेश के इलेक्शन में कुछ खास इन्वॉल्वमेंट नहीं दिखायी थी। मुकेश लॉबी तो यहाँ तक आरोप लगाती है कि पवन जी ने मुकेश गोयल का साथ देने के बजाए उन्हें हरवाने के पुरजोर प्रयास किए। हालाँकि, इस बात में कितनी सच्चाई है। ये तो सिर्फ़ मुकेश गोयल और पवन शर्मा ही जानते हैं। अगर निगम चुनाव से लेकर अबतक के पवन शर्मा और मुकेश गोयल के कार्यकाल पर नजर डाले तो एक बात साफ नजर आती है कि गोयल साहब ने ह्लआपह्व में अपनी जगह पहले से काफी मजबूत की है। स्वयं अरविंद केजरीवाल का मुकेश गोयल पर विश्वास है।
वहीं, क्षेत्रीय स्तर पर भी मुकेश जी की स्वीकार्यता अधिक है। अब जब दिल्ली के विधानसभा चुनाव बिल्कुल सिर पर हैं तो मुकेश गोयल लॉबी पूरी तरह ऐक्टिव नजर आ रही है। पार्टी आलाकमान के सामने उन्होंने अपनी मंशा साफ भी कर दी है। उधर, पवन शर्मा जी अब तक भी हनीमून पीरियड से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान शर्मा जी ने एक लंबा- चौड़ा घोषणा पत्र छपवाया था। उसमें इतने वादे कर दिये कि उन्हें गिनने के लिए कैलकुलेटर की आवश्यकता पड़ सकती है। उस घोषणा पत्र की प्रति एक्शन इंडिया ने आज भी सम्भाल कर रखी है। उस तथाकथित घोषणा पत्र में से अबतक 10 प्रतिशत भी काम नहीं करवाए गए हैं। और तो और, क्षेत्रवार जो नियमित समस्याएँ हैं, वह भी जस की तस बनी हुई हैं। मजलिस पार्क और सराय-भड़ोला की जलजमाव की समस्या तो विधायक के लिये गले की फाँस बन चुकी है। इसके अलावा धीरपुर, गांधी विहार, आजादपुर गाँव, सराय- भड़ोला सहित जहांगीरपुरी की समस्याएँ भी मुँह बाएँ खड़ी हैं। हैरानी तो इस बात की है कि चुनाव में मात्र चन्द महीने शेष रह जाने के बावजूद, विधायक जी अबतक सजग क्यों नहीं हो पा रहे। उनके द्वारा घोषणा पत्र में किए गए बड़े- बड़े वादों की कलई तो बहुत जल्द खुलकर सबके सामने आ ही जाएगी।ऐसे में अगर विधायक जी को पार्टी ने फिर मौका दिया तो नतीजे हैरान करने वाले हो सकते हैं।
मुकेश गोयल या पवन शर्मा । आम आदमी पार्टी का भविष्य कौन ?
विधायक पवन शर्मा के कुछ पहलू बहुत मजबूत हैं। सबसे पहला ये कि उनका राजनीतिक आका बहुत ताकतवर है। अगर आप नहीं जानते तो हम आपको बता दें कि पवन शर्मा को आम आदमी पार्टी के कद्दावर नेता संजय सिंह का वर्दहस्त प्राप्त है। ये उनकी पहली और सबसे बड़ी ताकत है। संजय सिंह और पवन शर्मा के बीच पारिवारिक रिश्ते हैं। पवन शर्मा की माता जी की तहरवीं में भी संजय सिंह के पिताजी शामिल हुए थे। हाल ही में जब पवन शर्मा की धर्मपत्नी मैक्स हॉस्पिटल में उपचाराधींन थी, तब भी स्वयं संजय सिंह उनका हाल-चाल लेने पहुँचे थे।
पवन शर्मा का दूसरा सबसे मजबूत पक्ष ये है कि वो बहुत मिलनसार हैं। सर्व सुलभ हैं। छोटे- बड़े सभी के सुख- दुख में पहुँचते हैं। 10 साल सत्ता में रहने के बावजूद नेताओं वाली ऐंठन नहीं है। अपने विरोधी से भी मुस्कुराकर मिलना उनके व्यक्तित्व का अहम पहलू है। उनकी सबसे बड़ी कमी ये है कि आज तक भी अधिकारियों पर उनकी पकड़ नहीं है। एक सॉफ्ट नेता की छवि है। किसी के लिये डटकर खड़े होता उन्हें शायद ही कभी देखा गया है। पिछले निगम चुनाव में विधायक जी ने कार्यकतार्ओं को टिकट के इतने लड्डू बाँट दिए कि अब वो उनके लिए ही जहर बन गये हैं। उनका खास चेला विपिन गुप्ता भी अब उनका नहीं रहा। यहाँ तक कि विपिन अपनी पत्नी मनु गुप्ता को मिली टिकट का श्रेय भी किसी और को ही देता है। इसके अलावा मुँह पर विधायक जी के खास बनने वाले ही उनके सबसे बड़े दुश्मन बने हुए हैं। ऐसा लगता है कि शायद वह किसी बड़े मौके के इंतजार में हैं। उपरोक्त सभी पहलुओं के अलावा एक आँकड़ा जो उनके पूरे राजनीतिक मानचित्र पर लाल निशान लगा रहा है, वो ये कि पिछली बार आम आदमी पार्टी की प्रचंड लहर के बावजूद मात्र 1589 वोटों की जीत, विधायक जी को रेड जोन में ला खड़ा करती है।
दूसरी तरफ, मुकेश गोयल भी अपनी राजनीतिक सूझ- समझ से अपनी ताकत बढ़ाते चले जा रहे हैं। सच पूछिए तो विधानसभा को छोड़कर गोयल साहब ने अपने जीवन में सब कुछ पा लिया है। दो बार विधानसभा का चुनाव हारने की कसक आज भी उनके दिल में है। वैसे भी उम्र की जिस दहलीज पर मुकेश इस समय हैं, उस स्थिति में आने वाला चुनाव उनके लिए बहुत अहमियत रखता है। राजनीतिक जानकारों का तो ये भी मानना है कि ये मुकेश के लिए आखिरी मौका है। इस बार विधानसभा में नहीं पहुँचे तो शायद फिर कभी ऐसा ना हो। इस बीच, आम आदमी पार्टी में भी उनकी स्थिति मजबूत हुई है। कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि उन्हें पार्टी की तरफ से इशारा मिल चुका है लिहाजा वो अपना किला और मजबूत करने में जुटे हैं।
उधर, विधायक लॉबी के अपने दावे हैं। पवन शर्मा लॉबी ये बात हर जगह कहती है कि पार्टी आलाकमान आज भी मुकेश गोयल को बाहरी ही मानती है। जहां बात क्रेडिबिलिटी की आएगी तो पवन जी के आगे मुकेश गोयल कहीं नहीं टिकेंगे। शर्मा जी के चेले चमचे ये भी कहते हैं कि अगर मुकेश गोयल इतने ही बड़े नेता हैं तो अपने दम पर चुनाव जीतकर दिखा देते। आम आदमी पार्टी में शामिल होने की क्या जरूरत थी।
बहरहाल, एक मंच पर साथ खड़े रहने वाले, मुस्कुराकर गले मिलने वाले और मंचों पर एक- दूसरे की तारीफों के कसीदे पढ़ने वाले इन दो धुर-विरोधी नेताओं की किस्मत पहले तो इस बात पर निर्भर करेगी कि पार्टी टिकट किसे देती है। टिकट के बाद तय हो पाएगा कि कौन किसको हरवाने में कामयाब होगा।