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PoK पाकिस्तान से आजादी क्यों चाहता है? वो 5 फैक्टर, जिसकी वजह से नाराज हैं स्थानीय लोग

कराची

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में एक बार फिर हिंसा भड़क गई है. पाकिस्तान सरकार के खिलाफ पीओके की जनता सड़कों पर उतर आई है. पीओके में तीन दिन से हिंसक प्रदर्शन जारी हैं. फिलहाल इनके शांत होने के भी कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं. पीओके में आजादी के नारे गूंज रहे हैं.

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, हिंसक प्रदर्शनों में एक पुलिस अफसर की मौत हो गई है. सौ से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं.

पीओके में ये विरोध प्रदर्शन जम्मू-कश्मीर ज्वॉइंट आवामी एक्शन कमेटी (JAAC) के बैनर तले हो रहा है. मीरपुर के एसएसएपी कामरान अली ने 'डॉन' को बताया कि हिंसक प्रदर्शन में एसआई अदनान कुरैशी की मौत हो गई है. कुरैशी को सीने में गोली लगी थी.

आवामी एक्शन कमेटी में ज्यादातर छोटे कारोबारी हैं. इन्होंने सस्ता आटा, सस्ती बिजली और अमीरों को मिलने वाली सुविधाओं को खत्म किया जाए. जानकारी के मुताबिक, पुलिस ने आवामी एक्शन कमेटी के 70 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया है.

वहीं, राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सभी पक्षों से संयम बरतने और बातचीत के जरिए मुद्दों को सुलझाने की अपील की है.

PoK में कैसे हैं हालात?

वैसे तो पीओके में अक्सर पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होते रहते हैं. लेकिन इस बार ये प्रदर्शन हिंसा में बदल गए. स्थानीय मीडिया के मुताबिक, पीओके के अलग-अलग हिस्सों में मोबाइल और इंटरनेट सर्विस बंद कर दी गई है. मीरपुर में सारे मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट सर्विस बंद हो गई है.

अपनी मांगों को लेकर आवामी एक्शन कमेटी ने शुक्रवार को शटर डाउन और चक्काजाम हड़ताल का ऐलान किया. शनिवार को कमेटी कोटली से मुजफ्फराबाद तक मार्च निकालने वाली थी. लेकिन शुक्रवार को ही पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद में कई जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं.

वहीं, JAAC के प्रवक्त हाफिज हमदानी ने कहा कि हिंसा से एक्शन कमेटी का कुछ लेना-देना नहीं है. हमदानी ने आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों में जानबूझकर हिंसा भड़काने वालों को शामिल कराया गया, ताकि उनके आंदोलन को बदनाम किया जा सके.

पीओके में हड़ताल का सोमवार को चौथा दिन है. प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर टालमटोल करने का आरोप लगाया है. पीओके में हालात अब भी तनावपूर्ण बताए जा रहे हैं. फिलहाल, प्रशासन ने पीओेके के सभी जिलों में जमावड़े, रैलियों और जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया है. धारा 144 भी लागू कर दी गई है.

पर प्रदर्शन क्यों?

पीओके के स्थानीय नेताओं ने पाकिस्तान सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाए हैं. उन्होंने पीओके का मिलिटराइजेशन करने का दावा भी किया है. 

पिछले हफ्ते पीओके के एक्टिविस्ट अमजद अयूब मिर्जा ने बताया था कि महंगाई, बेरोजगारी, गेहूं और आटा पर सब्सिडी खत्म करने, टैक्स और बिजली जैसे मुद्दों को लेकर लोगों में गुस्सा है. 

राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने कहा कि पीओके की जनता की मांगों को कानून के हिसाब से हल किया जाएगा. 

वहीं, पाकिस्तान के वित्त मंत्री अब्दुल माजिद खान ने दावा किया है कि एक्शन कमेटी की मांगों को मान लिया गया था और एक समझौता भी किया गया था. समझौते के तहत सरकार आटे पर सब्सिडी और बिजली टैरिफ की दरें 2022 के स्तर पर ले जाने को मान गई थी. लेकिन बाद में एक्शन कमेटी इस समझौते से पीछे हट गई.

पीओके में बिजली का मुद्दा कई सालों से गर्म है. फरवरी में ही पीओके में इसे लेकर एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था. पीओके में रहने वालों का दावा है कि अमीरों और ताकतवर लोगों कों 24 घंटे बिजली मिलती है, जबकि गरीबों के घर पर 18-20 घंटे बिजली कटौती की जाती है. यहां के एक्टिविस्ट दावा करते हैं घंटों की कटौती के बावजूद बिजली का भारी बिल चुकाना पड़ता है.

पाकिस्तान से नाराजगी क्यों?

1. बिजलीः पाकिस्तान की 20% बिजली पीओके के मंगला डैम से पैदा होती है. इसके बावजूद भी पीओके को उसकी जरूरत की 30% बिजली ही मिलती है. इसका बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के पास चला जाता है.

2. बुनियादी ढांचाः पीओके में बुनियादी ढांचा भी कमजोर है. 70 सालों में यहां न तो सड़कें हैं, न पुल हैं और न ही ढंग के स्कूल-अस्पताल हैं. बताया जाता है कि पीओके में जो कुछ भी इन्फ्रास्ट्रक्चर बना है, उसका इस्तेमाल पाकिस्तानी सेना करती है.

3. महंगाईः वैसे तो महंगाई पूरे पाकिस्तान में ही है, लेकिन पीओके में इसका ज्यादा असर दिखता है. दावा है कि यहां के लोगों को सरकार की तरफ से कोई राहत नहीं मिलती है. आटा जैसी जरूरी चीज पर भी सब्सिडी नहीं दी जाती. यहां के लोगों की सबसे बड़ी मांगों में से एक आटा पर सब्सिडी भी है.

4. स्थानीयों को नजरअंदाजः पाकिस्तान के लिए पीओके सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा है, जहां से वो भारत के खिलाफ लड़ता है. पाकृतिक संसाधनों का भंडार होने के बावजूद पीओके को सही हिस्सेदारी नहीं मिलती है. इतना ही नहीं, पीओके आतंकवादियों के लिए भी बड़ा ठिकाना बन गया है. आतंकी गतिविधियों में घायल होने या मारे जाने पर यहां के लोगों को कोई मुआवजा भी नहीं मिलता है.

5. स्थानीय सरकारः पाकिस्तान पीओके को आजाद कश्मीर कहता है. यहां का अपना प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी है. चौधरी अनवरुल हक यहां के प्रधानमंत्री हैं. पीओके की 53 सीटों वाली विधानसभा भी है. लेकिन यहां के विधानसभा से लेकर प्रधानमंत्री चुनाव तक धांधली के आरोप लगते हैं. मौजूदा पीएम अनवरुल हक को पीओके के लोग पाकिस्तानी सरकार की कठपुतली बताते हैं.

 

कैसा है PoK?

पीओके असल में दो हिस्सों में बंटा है. पहला- जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है. और दूसरा- गिलगित बल्टिस्तान. आजाद कश्मीर वाला हिस्सा भारत के कश्मीर से सटा हुआ है. जबकि, गिलगित-बाल्टिस्तान कश्मीर के सबसे उत्तरी भाग में लद्दाख की सीमा से लगा है.

ये पूरा इलाका 90,972 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. आजाद जम्मू-कश्मीर 13,297 और गिलगित बल्टिस्तान 72,495 वर्ग किलोमीटर में है.

रणनीतिक लिहाज से पीओके काफी अहम है. इसकी सीमा कई देशों से लगती है. पश्चिम में इसकी सीमा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और खैबर-पख्तूनख्वाह से लगती है. उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वखां कॉरिडोर, उत्तर में चीन और पूर्व में भारत के जम्मू-कश्मीर से सीमा जुड़ी हुई है. 

साल 1949 में आजाद जम्मू-कश्मीर के नेताओं और पाकिस्तानी सरकार के बीच एक समझौता हुआ. इसे कराची समझौता कहा जाता है. समझौते के तहत आजाद जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान को सौंप दिया था.

आज हालत ये है कि पाकिस्तान ने कश्मीर के जितने हिस्से पर कब्जा कर रखा है, वो बहुत पिछड़ा हुआ है. यही वजह है कि कथित आजाद कश्मीर और गिलगित-बल्टिस्तान के लोग आजादी की मांग करते हैं. 

पाकिस्तान ने कैसे किया अवैध कब्जा

आजादी के कुछ महीने बाद ही 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान से हजारों कबायलियों से भरे सैकड़ों ट्रक कश्मीर में घुस गए. इनका मकसद था कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना. ये वो कबायली थे जिन्हें पाकिस्तान की सरकार और सेना का समर्थन मिला था. 

27 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय के दस्तावेज पर दस्तखत किए. अगले ही दिन भारतीय सेना कश्मीर में उतर गई. धीरे-धीरे भारतीय सेना पाकिस्तानी कबायलियों को पीछे धकेलने लगी.

कहा जाता है कि भारत में तब के गवर्नर जनरल माउंटबेटन की सलाह पर जवाहर लाल नेहरू इस मसले को एक जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र में ले गए. उस साल कश्मीर को लेकर संयुक्त राष्ट्र में चार प्रस्ताव आए. 

संयुक्त राष्ट्र में जब तक ये सब हो रहा था, तब तक पाकिस्तानियों ने कश्मीर के बड़े इलाके पर अवैध कब्जा कर लिया था. संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच सीजफायर तो हो गया. लेकिन साथ ही ये भी तय हुआ कि भारत के पास जितना कश्मीर था, उतना भारत के पास ही रहेगा. और जितने हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था, वो उसके पास चला जाएगा. इसे ही पीओके कहा जाता है.

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