मध्य प्रदेश की राजनीतिक जमीन क्यों नहीं छोड़ना चाह रहे हैं शिवराज?
भोपाल
मध्य प्रदेश में मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद चोक चौराहों से लेकर भोपाल के वल्लभ भवन तक में गॉसिप का हॉट टॉपिक यही है कि शिवराज सिंह चौहान का क्या होगा। इस सवाल पर चर्चा होना भी लाजिमी है। सीएम की कुर्सी जाने के बाद शिवराज सिंह जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं, उससे यह बात तो क्लियर दिख रहा है कि वह फिलहाल रिटायरमेंट लेने के मूड में नहीं हैं। शिवराज को देखकर क्रिकेट के उस कप्तान की याद आ रही है जो किन्हीं वजहों से टीम से बाहर होने के बाद वह खुद को प्रुफ करने के लिए इतनी मेहनत करता है कि चयनकर्ता दोबारा उसे टीम में लेने को मजबूर हो जाते हैं। शिवराज का क्या होगा इसको लेकर कई तरह की बातें चल रही है हैं, जिसमें एक बात यह भी है कि क्या उनकी नजरें 2027 पर है। आइए राजनीतिक गलियारों में चल रही उन तमाम एंगल पर एक नजर डालते हैं।
MP की जमीन क्यों नहीं छोड़ना चाह रहे हैं शिवराज?
2023 में मध्य प्रदेश विधानसभा वोटिंग संपन्न होने के साथ ही शिवराज सिंह चौहान ने रिजल्ट आने तक का इंतजार नहीं किया और वह कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में जनसंपर्क के कार्यक्रम में जुटे दिखे। इतना ही नहीं, यहां उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वह पीएम मोदी को मध्य प्रदेश की 29 सीटों की माला पहनाना चाहते हैं। रिजल्ट आने से पहले शिवराज का इस तरह से जनसंपर्क के कार्यक्रम में जुटना इस बात का संकेत है कि वह मान चुके थे कि उन्हें इस बार सीएम की कुर्सी नहीं मिलने जा रही है। कप्तानी की कुर्सी से हटने के बाद शिवराज खुद को जमीन पर दिखाना चाह रहे हैं। वह बीजेपी आलाकमान को संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं कि वह संघर्ष से कभी भी पीछे नहीं हटेंगे। यहां यह भी याद दिला दूं कि 2018 में कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी शिवराज ने मध्य प्रदेश की जमीन नहीं छोड़ी थी। उस वक्त भी वह लगातार जमीन पर जन संपर्क में जुटे दिखे थे। उस वक्त उनके पास केंद्र में कोई मंत्री पद लेकर सेट होने का सुनहरा मौका था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार करने के बजाय जनता के बीच जाने का विकल्प चुना और करीब डेढ़ साल बाद मध्य प्रदेश की सीएम कुर्सी पाने में सफल रहे।
जनता की ताकत दिखा रहे शिवराज!
मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद शिवराज सिंह चौहान लगातार जनता के बीच खुद को रख रहे हैं। मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिस भी हिस्से में शिवराज जा रहे हैं वहां खासकर महिलाएं उन्हें घेर ले रही हैं। पिछले कुछ दिनों में कई ऐसी तस्वीर मीडिया में आ चुकी है जिसमें मध्य प्रदेश की महिलाएं और बहनें शिवराज से लिपटकर रोती देखी जा रही हैं। गौर करने वाली बात यह है कि एमपी की बहनों के रोने की तस्वीरें कोई प्लांटेड नहीं दिखती हैं, वह स्वभाविक उद्गार हैं। क्योंकि शिवराज में लिपटकर कर रोने वाली बहनें कोई कार्यकर्ता या समर्थक नहीं दिखती हैं, वह आम हैं। इन तस्वीरों को देखकर तमिलनाडु की पूर्व सीएम जयललिता के प्रति वहां की महिलाओं के प्रेम की तस्वीर याद आती है। इन तस्वीरों से समझा जा सकता है कि जनता के बीच शिवराज की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं है। इसका रिफ्लेक्शन इस बार के चुनाव रिजल्ट में भी दिखता है। 18 साल तक सरकार चलाने के बाद भी मध्य प्रदेश में बीजेपी का 163 सीटें जीतना इस बात का सबूत है कि शिवराज के खिलाफ कोई एंटी इनकंबेंसी जैसी कोई बात नहीं रही।
शिवराज के बयान में छुपा दिखता है संदेश
इस लाइन से साफ होता है कि शिवराज मांगने के बजाय मेहनत और संघर्ष के बल पर अपने लिए चीजें छीन लेते हैं। उनका यह स्वभाव उनके अंदर बचपन से ही है। बचपन में ही शिवराज ने गांव में मजूदरों की मजदूरी ढाई पाई से बढ़ाकर पांच पाई अनाज करने लिए आंदोलन किया था। मजदूरों की मजदूरी तो बढ़ गई, लेकिन इसके बदले उन्हें अपने चाचा से पिटाई भी खानी पड़ी थी। इसके अलावा शिवराज स्कूल के वक्त से ही नुक्कड़ सभाएं लगाते थे।
शिवराज की नि:स्वार्थ छवि की पेशगी
निर्गुण कबीर की इस लाइन को बोलकर शिवराज ने संदेश देने की कोशिश की है कि वह नि:स्वार्थ हैं। इस वक्त भारतीय राजनीति में यह बड़ा मुद्दा है कि कौन नेता नि:स्वार्थ छवि का है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, बिहार के सीएम नीतीश कुमार सरीखे नेताओं की चर्चा होती है। इसी लिस्ट में शिवराज भी अपना नाम जोड़ने की जुगत में दिख रहे हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जहां वसुंधरा राजे सिंधिया और रमन सिंह सरीखे नेताओं ने सीएम की कुर्सी पाने के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन शिवराज शुरुआत से ही खुद को इस रेस से बाहर रखा। उन्होंने एक बार भी अपने बयानों से संकेत देने की कोशिश नहीं की कि उन्हें सीएम पद की लालसा है। जबकि शिवराज के सरकार रिपीट कराने की गारंटी वाले नेता रहे हैं, वहीं वसुंधरा और रमन इसमें पीछे रहे हैं।
क्या है मिशन 2027?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त 73 साल के हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव पीएम मोदी के नेतृत्व में ही लड़ा जाने वाला है। ऐसे में अगर 2024 में नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह 2027 में 75 साल के हो जाएंगे। नरेंद्र मोदी खुद तय कर चुके हैं कि 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को सरकार से मुक्त किया जाएगा। पीएम मोदी अपनी कही बातों को अक्षरशः पालन कराने के लिए जाने जाते हैं। वह खुद कहते रहे हैं कि उनकी कही बातें गारंटी होती है। इस लिहाज से देखें तो नरेंद्र मोदी खुद 2027 में प्रधानमंत्री का पद छोड़ने की पेशकश कर सकते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि पीएम मोदी के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी कौन संभालेगा? इस रेस में गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लिया जाता है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान को इस रेस से अलग नहीं माना जा सकता है।
शिवराज कैसे बन सकते हैं मोदी के उत्तराधिकारी?
2013 में जब नरेंद्र मोदी को गुजरात से निकालकर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रजेंट करने की बात हो रही थी तब पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह चौहान का नाम आगे किया था। बीजेपी के अंदर उस वक्त शिवराज मोदी को चुनौती देने वाला मजबूत चेहरा माने जा रहे थे। हालांकि आखिरकार नरेंद्र मोदी ही बीजेपी के पीएम प्रत्याशी बने और वह लगातार करीब 10 साल से दिल्ली में सरकार चला रहे हैं। जहां तक लोकप्रियता का सवाल है तो शिवराज इस मामले में कहीं भी पीछे नजर नहीं आते हैं। उनके मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी एमपी के अलग-अलग हिस्सों से जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही हैं वह इसे साबित करती है। शिवराज के बारे में कहा जाता है कि वह अटल-आडवाणी गुट के नेता रहे हैं। यानी वह सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं। उनकी छवि पीएम मोदी की तरह इस पार या उस पार वाली नहीं रही है। वह कहीं ना कहीं विपक्षी दलों के नेताओं के बीच भी स्वीकार्य हैं।
शिवराज के 'मिशन 2027' में सबसे बड़ी चुनौती?
2014 के बाद बीजेपी की राजनीति को देखें तो केंद्र से लेकर राज्यों तक में तमाम अहम पद उन्हीं लोगों को दिए जा रहे हैं जो खांटी संघी रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण मध्य प्रदेश में मोहन यादव, छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साई और राजस्थान में भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपा जाना है। शिवराज सिंह चौहान सौम्य प्रवृति के नेता माने जाते हैं। उनकी छवि कट्टर संघी की नहीं रही है। यही वह सबसे बड़ी बात है जो उन्हें प्रधानमंत्री जैसे पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने में सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। हालांकि जानकार मानते हैं कि राजनीति में कुछ भी फिक्स नहीं होता है। समय और परिस्थिति से चीजें बदलती हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ भली भांति समझता था कि लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी संघ के लिए ज्यादा मुफीद रहे, लेकिन हालात देखकर अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे को आगे किया गया और उसमें पार्टी को सफलता भी मिली। ऐसे में अगर देश और बीजेपी की राजनीति में अगर स्वीकार्यता को लेकर कुछ ऊंच-नीच होता है तो शिवराज के नाम पर चर्चा कोई अनोखी बात नहीं होगी।
शिवराज के मिशन 2027 पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
लंबे समय से मध्य प्रदेश राजनीति को जानने समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं- 'देखिए राजनीति में शिवराज सिंह चौहान सबकुछ जीतकर हारे हैं। कायदे से देखा जाए तो मध्य प्रदेश की जीत शिवराज की वजह से ही मिली है। पीएम मोदी ने टेकओवर करने की कोशिश की, लेकिन शिवराज के पास समय है। वह फिलहाल 64 साल के हैं, उन्होंने राजनीत में एक नई धारा बहाई। शिवराज के साथ जनता का मामा- भाई वाला रिश्ता है। उनके साथ समाज के गरीब, पीड़ित खड़े दिखते हैं। वह देश में एक नए तरह की राजनीति लेकर आए हैं। ये अलग बात है कि भ्रष्टाचार जैसी कमजोरियों बराबर उनके साथ रही, लेकिन फिर भी उन्होंने एक नई तरह की राजनीति शुरू की है। आज की तारीख वह गांव में ट्रैक्टर चला रहे हैं, बहनों के आंसू पोछ रहे हैं। लेकिन इस बात स इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनकी नजर मोदी के बाद के युग पर है। मोदी के बाद कौन? उस लिहाज से देखें तो शिवराज पहली लाइन में खड़े दिखते हैं। वह संघ के भी प्रिय हैं और आम लोगों के बीच भी उनकी स्वीकार्यता है। शिवराज बीजेपी के अन्य नेताओं की तुलना में विनम्र और संवेदनशील हैं। यही उन्हें आगे ले जाएगा।'
मैं शिवराज सिंह चौहान को वह 30 साल से जानते हैं। उनका स्वभाव रहा है कि पहले वह कदम पीछे खींचते हैं फिर आगे बढ़ते रहे हैं। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह देश में राजनीति को जिस लेवल पर ले गए हैं, वह जब अपने चरम पर पहुंचेगा तब लोग फिर से उसी तरह की राजनीति पर लौटेंगे, जैसे पहले होती थी। ऐसे में जब नया चेहरा तलाश किया जाएगा तब शिवराज सिंह चौहान सबसे आगे खड़े दिखाई देंगे।