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राजस्थान विधानसभा में हंगामा, धारीवाल बोले- ‘यह कोई भजन मंडली तो है नहीं’, दूसरी तरफ राजस्थानी भाषा में शपथ लेने से रोका

जयपुर.

राजस्थान में नई सरकार के गठन के बाद बुलाए गए पहले विधानसभा सत्र की शुरुआत विवादों से शुरू हुई। सदन की कार्रवाई शुरू होते ही विपक्ष के विधायक शांति धारीवाल ने अचानक विधानसभा सत्र बुलाए जाने पर आपत्ति जताई। धारीवाल ने कहा कि नियम 302 के तहत आम चुनाव के बाद जब भी पहला सत्र बुलाया जाता है तो संविधान के सेक्शन 167 के मुताबिक विधानसभा के पहले सत्र की शुरुआत राज्यपाल के अभिभाषण से होती है। आपने 24 घंटे में नोटिस देकर विधानसभा का सत्र बुला लिया।

धारीवाल ने कहा कि यह कोई भजन मंडली तो है नहीं जो अचानक कह दिया कि आज शाम को भजन है आ जाइये। इसके बाद स्पीकर कालीचरण सराफ ने कहा कि पहले माननीय सदस्यों की शपथ होती है और उसके बाद सदन आहूत होगा और राज्यपाल का अभिभाषण होगा। विधानसभा में नए सदस्यों की शपथ लेने की शुरुआत मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने की। सबसे पहले भजनलाल शर्मा ने सदन के सदस्य के रूप में शपथ ली। इसके बाद दोनों उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने शपथ ली। इसके बाद दयाराम परमार, प्रताप सिंह सिंघवी सहित अन्य सदस्यों ने शपथ लेना प्रारम्भ किया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और दोनों उपमुख्यमंत्रियों ने हिन्दी भाषा में शपथ ली।

स्पीकर ने हिंदी में लेने को कहा
कोलायत से पहली बार विधायक चुने गए अंशुमान सिंह भाटी ने राजस्थान भाषा में शपथ ली। इस पर प्रोटेम स्पीकर कालीचरण सराफ ने कहा कि शपथ उसी भाषा में ली जा सकती है जो भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो। इस पर अंशुमान सिंह भाटी ने कहा कि वे कल ही ईमेल करके सूचित कर चुके थे कि वे राजस्थानी भाषा में ही शपथ लेंगे। भाटी ने कहा कि वे सभी सदस्यों से उम्मीद करते हैं कि वे भी सहयोग करेंगे। राजस्थानी भाषा हमारा गर्व है। इसके बाद स्पीकर ने स्पष्ट किया कि चूंकि राजस्थानी भाषा अभी तक आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है। ऐसे में शपथ हिंदी या अंग्रेजी भाषा में ली जाए। इस पर भाटी ने सदन की मर्यादाओं का सम्मान करते हुए हिंदी भाषा में शपथ ली।

लोकसभा में भी अन्य भाषाओं में शपथ लेने का तर्क
राजस्थान भाषा में शपथ मान्य नहीं किए जाने पर कांग्रेस के एक सदस्य ने अवगत कराया कि जो भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है। अनुमति लेने के बाद उस भाषा में भी शपथ लोकसभा और विधानसभा में होती आई है। लोकसभा में कोंकणी और मैथिली भाषा में शपथ होने का हवाला दिया गया। यह भी बताया गया कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी मुख्यमंत्री पद की शपथ उस भाषा में ले चुके हैं जो आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं थी।

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