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भजनलाल सरकार लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करके भी डिजिटल मीडिया में अपनी योजनाओं का प्रचार-प्रसार नहीं कर पा रही

जयपुर
राजस्थान की भजनलाल सरकार लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करके भी डिजिटल मीडिया में अपनी योजनाओं का प्रचार-प्रसार नहीं कर पा रही है। जबकि इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत कई प्रदेश आगे हैं। इसका कारण है कि राजस्थान की डिजिटल मीडिया पॉलिसी ही डिफेक्टिव है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजस्थान की सत्ता संभालने के बाद भजनलाल सरकार डिजिटल मीडिया में एक भी योजना के विज्ञापन जारी नहीं कर पाई है। आमंत्रण के बावजूद राजस्थान के न्यूज पोर्टल सरकारी विज्ञापन लगाने को तैयार नहीं हैं।

दरअसल, राजस्थान के सूचना एवं जन संपर्क विभाग ने डीएवीपी की डिजिटल मीडिया पॉलिसी को हू-ब-हू एडॉप्ट किया है। डीएवीपी की पॉलिसी में विज्ञापन की दरें बहुत ही कम हैं। इसके अलावा उसमें जितने इम्प्रेशन मांगे जाते हैं, उतने इम्प्रेशन देना राजस्थान की किसी भी नॉन डीएवीपी न्यूज पोर्टल के लिए देना संभव नहीं है। इसलिए राजस्थान के एक भी न्यूज पोर्टल को सूचना एवं जन संपर्क विभाग विज्ञापन नहीं दे पा रहा है। वह भी तब जबकि संचार क्रांति के युग में डिजिटल मीडिया प्रचार-प्रसार के लिए सबसे तेज औऱ सस्ता माध्यम है। समाचार पत्रों की सामग्री जहां एक भी पठनीय नहीं रह पाती और क्षेत्र विशेष तक सीमित रहती है। वहीं इंटरनेट के कारण न्यूज पोर्टल के समाचार और अन्य प्रचार सामग्री को दुनियाभर में कहीं भी देखा जा सकता है।

पॉलिसी में राजस्थान के 25% कंटेंट की शर्त भी हटाई
दरअसल, कांग्रेस शासन में बनाई गई डिजिटल मीडिया पॉलिसी में पहले एक शर्त थी कि प्रत्येक न्यूज पोर्टल को राजस्थान के सूचना एवं जन संपर्क विभाग में रजिस्ट्रेशन कराना है। इसके लिए ए, बी, और सी कैटेगरी बनाई गई थी। शर्त थी कि पोर्टल का डोमेन न्यूनतम 3 साल पुराना हो और उसमें जो न्यूज कंटेंट है, इसमें 25 प्रतिशत राजस्थान का होना चाहिए। इसका उद्देश्य राजस्थान के पत्रकारों को संरक्षण देने के साथ ही राजस्थान की योजनाओं का अच्छे से प्रचार-प्रसार करना था। लेकिन, पिछली सरकार में ऐसे न्यूज पोर्टलों को भी बिना किसी औपचरिकता के विज्ञापन दे दिए गए जिनका राजस्थान से कोई संबंध नहीं था। बाद में कहीं ये घोटाला उजागर ना हो जाए, इसलिए अफसरों ने न्यूज पोर्टल पर राजस्थान के 25 प्रतिशत न्यूज कंटेंट की शर्त ही कैबिनेट से हटवा दी। इसका असर यह हुआ कि राजस्थान के न्यूज पोर्टल जो सरकार के कामकाज और योजनाओं का प्रचार-प्रसार करते हैं उन्हें सरकार कोई मदद नहीं करेगी। जबकि बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली और दूसरे प्रदेशों के पोर्टलों को करोड़ों रुपए के विज्ञापन दिए जा सकते हैं।

डि़जिटल मीडिया पॉलिसी में हैं अव्यवहारिक शर्तें
राजस्थान की डिजिटल मीडिया पॉलिसी में कई तरह की अव्यवहारिक शर्तें हैं। जैसे सी- कैटेगरी में एप्रूव्ड न्यूज पोर्टल के पास प्रतिमाह न्यूनतम 2.50 लाख विजिटर्स होने चाहिए। इनके पेज व्यूज 3 से 3.50 लाख प्रति माह हो सकते हैं। मीडिया पॉलिसी का हवाला देकर सूचना एवं जन संपर्क विभाग 50,000 रुपए के विज्ञापन पर 95 लाख से ज्यादा इम्प्रेशन मांगता है जो किसी के लिए भी संभव नहीं है। इसी तरह न्यूज पोर्टल से विज्ञापन के लिए हर बार आवेदन देने को कहा जाता है, जबकि समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से साल में एक ही बार आवेदन लिया जाता है। आवेदन में लगभग एक ही तरह की सूचनाएं होती हैं। संभवतः इसीलिए राजस्थान के न्यूज पोर्टल सरकार से दूरी बनाए हुए हैं।

हरियाणा की है बेस्ट डिजिटल मीडिया पॉलिसी
दरअसल, पहले हरियाणा को भी यही दिक्कतें आ रही थीं क्योंकि हरियाणा के न्यूज पोर्टल जो DAVP एप्रूव्ड नहीं है, उन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही थी। इसलिए हरियाणा सरकार ने अपने प्रदेश के न्यूज पोर्टल को राहत देने के लिए पॉलिसी में संशोधन किया। इसके लिए 4 कैटेगरी ए, बी, सी और डी बनाकर उन्हें इसमें शामिल किया गया। साथ ही न्यूज पोर्टल पर विज्ञापन के लिए प्रतिदिन के हिसाब से फिक्स बैनर पर दरें तय की गई हैं। इससे हरियाणा के न्यूज पोर्टल को प्रतिमाह 1 से 1.50 लाख रुपए तक की सरकार से मदद मिल जाती है।

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