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प्रकृति और प्रगति में समन्वय आवश्यक : मुख्यमंत्री डॉ. यादव

भोपाल
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि पर्यावरण आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। वसुधा को बचाने का कर्तव्य हम सभी को निभाना है। भारत की पहचान दुनिया में प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के संदर्भ में भी बनी है। प्रकृति और प्रगति में समन्वय आवश्यक है। प्रधानमंत्री श्री मोदी सारे विश्व में अपने सक्षम नेतृत्व से भारत की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं। पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता इस बात से सिद्ध होती है कि वे वर्ष 2030 तक भारत द्वारा 500 गीगावाट नवकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को लेकर चल रहे हैं। निश्चित ही हम कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी लाने में सफल होंगे। पर्यावरण की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण संकल्प है। इसकी पूर्ति के लिए राष्ट्रवासी भी सहयोग कर रहे हैं। मध्यप्रदेश नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निरंतर कार्य कर रहा है। प्रधानमंत्री श्री मोदी के संकल्प के अनुसार सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रदेश अधिक से अधिक योगदान देगा।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव सोमवार को कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में "जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रयास: भारत की प्रतिबद्धता में राज्यों का योगदान" विषय पर आयोजित विमर्श सत्र एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रह थे। इसका आयोजन अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन और नीति विश्लेषण संस्थान (एग्पा) और मध्यप्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद ने नर्मदा समग्र संस्था पैरवी और सिकोइडिकोन संगठन के सहयोग से किया है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि वर्तमान समय में दुनिया जिस दौर से गुजर रही है, उसमें हमारी भारतीय जीवन पद्धति, हमारी मान्यताओं और परमात्मा एवं प्रकृति से जुड़ने के हमारे मूल दृष्टिकोण का अपना महत्व सामने आता है। एक श्रेष्ठ जीवनशैली के लिए भारतीय जाने जाते हैं। खान-पान और जल की शुद्धता के लिए हम गंभीर हैं। मध्यप्रदेश पर परमात्मा की विशेष कृपा है। जहाँ हमारा देश मानवता प्रेमी है, वहीं पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता के लिए भी भारत सक्रिय है। विश्व के कल्याण के लिए भारत के उदात्त भाव से सभी परिचित हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी विश्व के देशों के लिए आशा की किरण हैं। जहाँ रूस और यूक्रेन के युद्ध की परिस्थितियां सभी के सामने हैं, वहीं इजराइल जैसे राष्ट्र जो तकनीक के उपयोग और अस्मिता के संघर्ष के लिए जाने जाते हैं, भारत के लिए इन सभी राष्ट्रों का सम्मानजनक रूख है। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि 21वीं सदी भारत की होगी। आज प्रधानमंत्री श्री मोदी और भारत की सामर्थ्य एवं पर्यावरण प्रेमी होने के दृष्टिगत हमारी प्रतिष्ठा विश्व में बढ़ रही है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी और उसके तटों की पर्यावरणीय संरक्षण के लिए आवश्यक निर्णय लिए हैं। मध्यप्रदेश नदियों का मायका है। सभी नदियों की स्वच्छता और हमारे ईको सिस्टम का संतुलन बनाए रखना हमारी प्राथमिकता है। हमारी सोन नदी, पुण्य सलिला गंगा को बलिष्ठ बनाती है। गंगा बेसिन के लिए यमुना के माध्यम से चंबल और क्षिप्रा भी यही भूमिका निभाती हैं। बेतवा भी यमुना जी में जाकर मिलती है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि हमारा विश्वास "जियो और जीने दो" में है। भोपाल के पास रातापानी टाइगर अभ्यारण्य है। भोपाल के पास सड़कों पर दिन में मनुष्य और रात्रि में टाइगर दिखाई देते हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने आशा व्यक्त की कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी और विमर्श-सत्र से पर्यावरण से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आएंगे। उन्होंने इस वैचारिक कार्यक्रम की सफलता की कामना की। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने दीप जलाकर विमर्श-सत्र का शुभारंभ किया।

सत्र को नार्वे के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय विकास और पर्यावरण मंत्री और यूएनडीपी के पूर्व कार्यकारी निदेशक श्री एरिक सोलहेम ने वर्चुअल रूप से संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश बहुत सुंदर राज्य है। इसकी हेरिटेज देखने लायक है। मध्यप्रदेश में होने वाले जलवायु संरक्षण के कार्यों का वैश्विक महत्व होगा। एग्पा के सीईओ श्री लोकश शर्मा ने कहा कि मध्यप्रदेश ने गत दो दशक से प्रगति के अनेक आयाम छुए हैं। पर्यावरण के प्रति मध्यप्रदेश सरकार गंभीर है। आगामी माह अजरबैजान में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में राज्य स्तरीय प्री-सीओपी विमर्श-सत्र का आयोजन महत्वपूर्ण है। भारत की पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता के संबंध में राज्यों की भागीदारी के संबंध में यह अपनी तरह का प्रथम विमर्श कार्यक्रम है। सरकार के साथ समाज की भागीदारी बढ़ाने और पर्यावरण के लिए प्रहरी के रूप में कार्य करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के साथ विचार-विमर्श के लिए इस विमर्श कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई गई।

कार्यक्रम को पैरवी संस्था के संचालक श्री अजय झा ने कहा कि सदी के अन्त तक तापमान 2.5 डिग्री तक बढ़ने की संभावना है। विज्ञान भारती, केरल के डॉ. विवेकानंद पई ने कहा कि भारत में कार्बन उत्सर्जन 1.8 टन पर केपिटा है, जो कि विश्व की एवरेज केपिटा पर 4.5 टन से कम है। सिकोईडीकोन की सचिव श्रीमती मंजूबाला जोशी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की विभीषका को रोकने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री आर.एस. प्रसाद ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी कार्यक्रम सेल्फ ड्रिबेन हो। क्लाइमेट जस्टिस जरूरी है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिक परिषद के महानिदेशक डॉ. अनिल कोठारी ने आभार व्यक्त किया।

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