राष्ट्रीय

तनावपूर्ण माहौल के बाद भी चीन की कंपनियां भारत का मोह छोड़ नहीं पा रही हैं

बीजिंग/ नई द‍िल्‍ली
 गलवान हिंसा के बाद भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव अपने चरम पर है। भारत और चीन दोनों ने लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश की सीमा तक 50-50 हजार से ज्‍यादा सैनिक तैनात हैं। चीन ने भारतीय सीमा पर तोप से लेकर फाइटर जेट तक तैनात किए हैं। चीन की मिसाइलें भी भारत की ओर मुंह करके तैनात हैं। वहीं भारत ने भी चीन के किसी दुस्‍साहस का करारा जवाब देने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी कर रखी है। इस तनावपूर्ण माहौल के बाद भी चीन की कंपनियां भारत का मोह छोड़ नहीं पा रही हैं। यही नहीं चीन की सरकार को डर लग रहा है कि भारत उसका विकल्‍प बन रहा है, इस आशंका के बाद भी चीनी कंपनियां भारत में न केवल बनी हुई हैं, बल्कि निवेश को बढ़ा रही हैं। विश्‍लेषकों का कहना है कि भारत का इतना बड़ा उभरता हुआ बाजार है जिसका विकल्‍प अब चीन के पास नहीं है।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन को इस बात का डर सता रहा है कि चीनी कंपनियां भारतीय बाजार की खातिर तेजी से मेक इन इंडिया को अपना रही हैं। इससे चीनी कंपनियां भारत के चीन का स्‍थान लेने की मुह‍िम को ही आगे बढ़ा रही हैं। चीन दुनिया की फैक्‍ट्री कहा जाता है और अब पश्चिमी देशों की कंपनियां भारत की ओर रुख कर रही हैं। चीन और भारत के बीच साल 2020 में गलवान हिंसा के बाद से तनाव बना हुआ है। कई दौर की बातचीत के बाद भी सीमा विवाद अभी तक नहीं सुलझा है। इसका असर अब चीनी कंपनियों पर भी देखा जा रहा है। कई चीनी कंपनियों की जांच चल रही है।

भारत को क्‍यों छोड़ नहीं पा रही हैं चीनी कंपनियां?

इन सबके बाद भी चीनी कंपनियां भारत का मोह नहीं छोड़ पा रही हैं। भारत के एफडीआई पर सख्‍ती के बाद चीनी कंपनियां तीसरे देश के रास्‍ते भारत में निवेश कर रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक चीनी कंपनियों की भारत में बाढ़ आने के पीछे 3 प्रमुख कारण हैं। पहला- चीन के पास इस समय व‍िनिर्माण की क्षमता जरूरत से ज्‍यादा हो गई है। वहीं उसका घरेलू बाजार सिकुड़ रहा है। चीन के बाजार में प्रतिस्‍पर्द्धा बढ़ती जा रही है और कई कंपनियों के लिए अपना अस्तित्‍व बचाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में उनके पास केवल अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में कूदने के अलावा और कोई रास्‍ता नहीं बचता है।

दूसरा- भारतीय बाजार का आकार इतना बड़ा हो गया है कि अब चीन की कंपनियों उसे अनदेखा नहीं कर पा रही हैं। चीनी कंपनियों के पास भारत जैसे बाजार का कोई विकल्‍प नहीं है। भारत का ऐसा तंत्र है कि यहां आना और यहां के बाजार से निकलना दोनों बहुत आसान है। तीसरा कारण यह है कि चीनी प्रॉडक्‍ट ऐसे हैं कि वे पश्चिमी देशों की बजाय भारतीय बाजार को सूट करते हैं। यही वजह है कि चीनी कंपनियों को लगता है कि उनके लिए भारतीय बाजार में ज्‍यादा अच्‍छा भविष्‍य है। चीनी विश्‍लेषकों का कहना है कि भारत के 'लक्ष्‍य करके लगाए गए प्रतिबंध' ने चीनी बिजनस को बहुत ज्‍यादा नुकसान पहुंचाया है।

चीनी सरकारी मीडिया के निशाने पर भारत

इससे बौखलाई चीनी सरकारी मीडिया ने भारत के खिलाफ अभियान चलाना शुरू कर दिया और भारत को 'विदेशी निवेश का कब्रिस्‍तान' बताना शुरू कर दिया है। चीनी मीडिया का कहना है कि भारत चीनी कंपनियों पर कब्‍जा कर रहा है या चीनी कंपनियों को राष्‍ट्रीयकरण कर रहा है। हालांकि चीन सरकार ने अभी इस पर कुछ नहीं कहा है। चीन ने भारत के खिलाफ कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है। इसकी वजह यह है कि चीन को पता है कि वह अर्थव्‍यवस्‍था और व्‍यापार में भारत पर बढ़त रखता है। चीन आज भारत का सबसे बड़ा व्‍यापारिक साझीदार देश बन गया है।

चीन को यह पता है कि भारत के तमाम प्रतिबंधों के बाद भी भारतीय बाजार चीनी कंपनियों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। इसके विपरीत चीन चाहता है कि भारत सीमा विवाद को द्विपक्षीय आर्थिक और व्‍यापार संबंधों से अलग रखे। चीन लगातार कह रहा है कि भारत साल 2020 के पहले के आर्थिक आदान प्रदान को फिर से बहाल करे। चीनी विश्‍लेषकों को लगता है कि भारत का मेक इन इंडिया मुहिम रंग ला रहा है और स्‍थानीयकरण बढ़ रहा है। यह ऊर्जा, वाहन, बैट्री, केमिकल और दवाओं में हो रहा है। भारत आज चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश है। चीन में इस बात का विरोध हो रहा है कि चीनी कंपनियां भारत में निवेश क्‍यों कर रही हैं।

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