राष्ट्रीय

पति कोमा में तो अदालत का बड़ा फैसला, पत्नी को बनाया गार्जियन ताकि संपत्ति बेच इलाज करा सके

नई दिल्ली
 पति के कोमा में रहने के कारण पत्नी को उनका गार्जियन (अभिभावक) बनाने का निर्देश दिया गया है। मद्रास हाई कोर्ट की डबल बेंच ने पति के गार्जियन के तौर पर पत्नी को नियुक्त किया है ताकि महिला संपत्ति को बेच सकें या फिर गिरवी रख कर सकें। इससे उस शख्स का मेडिकल खर्च का वहन हो सकेगा और परिवार का पालन पोषण होगा। कोमा में गए शख्स के पास 1 करोड़ से ज्यादा की अचल संपत्ति है। पहले सिंगल बेंच ने महिला की अर्जी को खारिज कर दिया था। फिर मामला डबल बेंच के पास पहुंचा।
कोर्ट ने क्या कहा

हाईकोर्ट के जस्टिस जी. आर. स्वामिनाथन और जस्टिस पी. बी. बालाजी ने कहा कि किसी भी ऐसे शख्स का देखभाल आसान नहीं है जो कोमा की स्थिति में है। इसके लिए पैसे की जरूरत होती है। इस स्थिति में जो लोग भी होते हैं उनके लिए पैरामेडिकल स्टाफ की जरूरत होती है जो उनकी मेडिकल कंडिशन की देखभाल करें। मामले में महिला के कंधे पर सारा बोझ आ गया है। याचिकाकर्ता को इसके लिए सिविल कोर्ट जाने के लिए कहना ठीक नहीं होगा। जो तथ्य हैं उसके तहत महिला को राहत देनी जरूरी है।

कोर्ट ने इस बात की इजाजत दी है कि वह अचल संपत्ति को गिरवी रख सकती हैं या बेच सकती हैं ताकि परिवार की देखभाल हो सके और पति के इलाज का खर्चा वहन हो सके। यह भी कहा कि संपत्ति बेचने के बाद 50 लाख रुपये एफडी के तौर पर पति के नाम पर रखा जाए। उस पैसे का जो ब्याज होगा वह महिला बैंक से निकाल सकेगी। यह एफडी महिला के पति के जीवन काल तक बनी रहेगी।

क्या है यह मामला?

चेन्नै की एक महिला ने अर्जी दाखिल कर कहा था कि उसे अपने पति का गार्जियन नियुक्त किया जाए जो कि कोमा में हैं। महिला का कहना था कि उनके पति पिछले पांच महीने से कोमा में हैं। ऐसे में उन्हें इस बात की भी इजाजत दी जाए कि वह बैंक अकाउंट ऑपरेट कर पाएं और अचल संपत्ति को गिरवी रख पाएं या फिर उसे बेच पाएं। सिंगल बेंच का कहना था कि महिला की अर्जी विचार योग्य नहीं है और यह फैसला सही नहीं है।

हाईकोर्ट का फैसला बेहद अहम

कोमा में चल रहे पति के गार्जियन के तौर पर पत्नी को नियुक्त किए जाने का फैसला बेहद अहम माना जा रहा है। दरअसल, इस तरह के कई मामले देखने को मिलते हैं जब घर के गार्जियन के बीमार होने पर उनके मेडिकल खर्च या फिर परिवार के भरण पोषण का सवाल उठ खड़ा होता है। परिवार के मुखिया के रहते हुए उनके कानूनी वारिस उनकी खुद की कमाई गई संपत्ति में भी दावा नहीं कर सकते हैं। कोमा में होने की स्थिति में वह शख्स ना तो विल कर सकता है और ना ही अपना विचार रख सकता है। ऐसे लोगों के इलाज या परिजनों की देखभाल के मामले में मौजूदा फैसला मील का पत्थर साबित होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button