नई दिल्ली। टीम एक्शन इंडिया
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने बैंकों के अधिग्रहण और शेयरधारिता से जुड़े नियमों में संशोधन किया है। इसका मकसद यह तय करना है कि बैंकों का स्वामित्व एवं नियंत्रण विभिन्न हाथों में बना रहे और बड़े शेयरधारक लगातार ‘उपयुक्त’ बने रहें। इसके साथ ही आरबीआई ने बैंकों को अपना कर्ज नुकसान का मॉडल बनाने का प्रस्ताव दिया है।
आरबीआई ने इस संदर्भ में मास्टर दिशा-निर्देश (बैंकिंग कंपनियों में शेयरों का अधिग्रहण और होल्डिंग या वोटिंग अधिकार) निर्देश-2023 जारी किया है। रिजर्व बैंक की ओर से ये निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किए हैं कि बैंकिंग कंपनियों का अंतिम स्वामित्व और नियंत्रण अच्छी तरह विविध रूप में हो और बैंक इकाइयों के प्रमुख शेयरधारक निरंतर आधार पर उपयुक्त बने रहें।
मास्टर दिशा-निर्देश के मुताबिक कोई भी व्यक्ति जो अधिग्रहण करना चाहता है और जिसके परिणामस्वरूप संबद्ध बैंक में प्रमुख शेयरधारिता होने की संभावना है, उसे एक आवेदन जमा करके रिजर्व बैंक की पूर्व-स्वीकृति लेनी होगी। निर्देश के अनुसार इस तरह के अधिग्रहण के बाद यदि किसी भी समय कुल ‘होल्डिंग’ 5 फीसदी से कम हो जाती है, तो उसे आरबीआई से नए सिरे से अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही बड़े शेयरधारक का चुकता शेयर पूंजी का 10 फीसदी या उससे अधिक के अधिग्रहण के बारे में सूचना प्राप्त करने को लेकर बैंक इकाइयों से व्यवस्था बनाने को कहा है।
इसके अलावा रिजर्व बैंक के नए प्रस्ताव के मुताबिक आने वाले समय में बैंकों को कर्ज में नुकसान (क्रेडिट लॉस) का अपना अलग मॉडल बनाने की मंजूरी मिल सकती है। आरबीआई की तरफ से भेजे गए एक प्रस्ताव के मुताबिक बैंक ऋण देने वाले धन को अलग रखने की नई प्रणाली के तहत 5 साल तक उच्च प्रावधानों को विस्तार दे सकेंगे। रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक किए गए एक दस्तावेज में कहा कि वह ऋण जोखिम का मॉडल तैयार करने से संबंधित विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करेगा जिन पर बैंकों को विचार करना होगा।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में बैंक कर्ज के प्रावधानों में नुकसान वाले मॉडल का उपयोग करते हैं जिनमें बैंकों को धन बहुत बाद में अलग रखने की जरूरत होती है। पिछले साल सितंबर में गवर्नर शक्तिकांत दास ने घोषणा की थी कि आरबीआई बदलाव कर ऐसी नई प्रणाली अपनाने पर विचार कर रहा है, जो ‘अधिक विवेकपूर्ण और भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण’ वाली होगी।