
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चों के परिजनों ने किया प्रदर्शन
अंबाला छावनी/मनीष कुमार
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चे ही नहीं, उनके परिजन भी खून के आंसू रो रहे हैं। पीड़ित बच्चे सरकार से उनका जीवन बचाने के लिए गुहार लगा रहे हैं ताकि वह भी अन्य बच्चों की तरह खेल-कूद सकें। हैरानी की बात यह है कि हरियाणा में इलाज तो दूर, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी की जांच तक नहीं हो रही। हरियाणा में 300 से अधिक बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हैं। अभिभावकों को अपने बच्चे की जांच कराने के लिए ्रपीजीआईचंडीगढ़ भटकना पड़ रहा है। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक मांसपेशी विकृति रोग है, जिसके लक्षण बच्चे की 3 साल की उम्र के बाद दिखाई देते हैं। बच्चा चलते-चलते गिरने लगता है। धीरे-धीरे बच्चे चलने-फिरने, खाने-पीने में असमर्थ हो जाते हैं। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी पीड़ित परिवार संघ हरियाणा के बैनर तले पीड़ित बच्चों के पेरेंट्स प्रदेशभर से अंबाला कैंट में एकजुट हुए।
यहां अभिभावकों ने जहां सरकार से बच्चों का उपचार कराने गुहार लगाई। वहीं, बाजार में पैदल मार्च निकाल लोगों को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी के बारे में अवेयर किया। नितिन गुप्ता ने बताया कि एक बच्चे पर प्रतिमाह 30 से 40 हजार रुपए खर्च आता है। हर कोई पेरेंट्स इतना खर्च नहीं उठा सकते। वे हरियाणा सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक ज्ञापन सौंप इलाज कराने की गुहार लगा चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी पर बात की, लेकिन बच्चों के इलाज के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण चलते-चलते गिरना लेटने या बैठने की स्थिति से उठने में कठिनाई दौड़ने और कूदने में परेशानी डगमगाती चाल, पैर की उंगलियों पर चलना पैरों और पिंडलियों की बड़ी मांसपेशियां मांसपेशियों में दर्द और जकड़न सीखने में समस्याएं।