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राहत :अब 2.5 लाख में मिलेगी 2.2 करोड़ रुपये की दवा, जानिए क्यों सस्ती हो रही हैं दवाएं?

नईदिल्ली

 दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए राहत की खबर है। सरकार ने भारतीय कंपनियों द्वारा बनाई गई चार दवाओं की मार्केटिंग को मंजूरी दे दी है। ये दवाएं आयातित दवाओं की तुलना में काफी सस्ती हैं। उदाहरण के लिए टायरोसिनेमिया टाइप वन बीमारी के इलाज में काम आने वाली दवा Nitisinone कैप्सूल की सालाना कीमत 2.2 करोड़ रुपये है। इसे विदेशों से आयात किया जाता है। लेकिन देश में बनी दवा की कीमत 2.5 लाख रुपये होगी। यह एक दुर्लभ बीमारी है। एक लाख की आबादी में इसका एक मरीज पाया जाता है।

इसी तरह आयात की जाने वाली Eliglustat कैप्सूल की सालाना खुराक की कीमत 1.8 से 3.6 करोड़ रुपये बैठती है। लेकिन देश में बनी इस दवा की कीमत तीन से छह लाख रुपये होगी। यह दवा Gaucher's बीमारी के इलाज में काम आती है। अधिकारियों के मुताबिक Wilson's नाम की बीमारी के इलाज में काम आने वाली Trientine कैप्सूल के आयात पर सालाना 2.2 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। लेकिन देश में बनी इसकी दवा पर सालाना मात्र 2.2 लाख रुपये खर्च होंगे।

सिकल सेल एनीमिया की दवा

Gravel-Lennox Gastaut Syndrome के इलाज में काम आने वाली दवा Cannabidiol के आयात पर सालाना सात से 34 लाख रुपये तक खर्च आता है। लेकिन देश में बनी इसकी दवा एक लाख से पांच लाख रुपये तक में उपलब्ध होगी। अधिकारियों का कहना है कि सिकल सेल एनीमिया के इलाज में काम आने वाली दवा Hydroxyurea Syrup की कमर्शियल सप्लाई मार्च 2024 में शुरू होने की संभावना है और इसकी कीमत 405 रुपये प्रति शीशी हो सकती है। अभी इसकी 100 मिली की शीशी की कीमत 840 डॉलर यानी 70,000 रुपये है। ये सभी दवाएं अब तक भारत में नहीं बनती थीं।

एक अधिकारी ने कहा कि इसका मकसद घरेलू कंपनियों को दुर्लभ बीमारियों के इलाज में काम आने वाली जेनरिक दवाएं बनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। इसकी शुरुआत जुलाई 2022 में हुई थी और फार्मा इंडस्ट्री, सीडीएससीओ, दवा विभाग और दूसरे कई स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा हुई है। सिकल सेल के साथ-साथ 13 दुर्लभ बीमारियों को प्रायोराइज किया गया है। इसके बाद दवा बनाने वाली कंपनियों और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के बीच बातचीत हुई। अब इन दवाओं को मंजूरी दे दी गई है।

करोड़ों की दवा लाखों में

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, 13 में से 4 दवाओं को बनाने में भारत ने कामयाबी हासिल कर ली है. इन चार दवाओं का उत्पादन भी भारत में शुरू हो गया है. स्वास्थय मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि 2.5 करोड़ की दवा जो विदेश से आती थी उसका भारत में महज 2 लाख रुपये में उत्पादन हो रहा है. ऐसे चार और बीमारियों की दवाओं पर सफलता मिल गयी है, जिसका शीघ्र ही उत्पादन होने वाला है. पांच बची रेयर बीमारियां की दवाओं पर काम चल रहा है.

 

कौन कौन सी है बीमारी

टायरोसेनिमिया टाइप 1 ( सालाना खर्च पहले करीब साढ़े तीन करोड़ रु, अब करीब ढाई लाख रु ) Gaucher : ( ढाई करोड़ से साढ़े 6 करोड़ पहले, अब कीमत ढाई लाख रुपए) Wilson : 1.8 से 3.6 करोड़ सलाना खर्च आता था अब कीमत साढ़े 3 लाख रुपए) Dravet : करीब 6 से 20 लाख की कीमत सालाना, अब 1 से 5 लाख रुपए

इन चार बीमारियों को लेकर जो दवाई बनाई गई है वो हैं:

Nitisinone,

Eliglustat ( 3 करोड़ से डेढ़ लाख)

Trientine ( 2.2 करोड़ से अब 2.2 लाख)

Cannabidiol ( 7 से 34 लाख अब 1 से 5 लाख)

इन बीमारियों पर दवाई बनाने का काम जारी:

Phenylketonuria

Hyperammonemia

Cystic Fibrosis

सिकिल सेल बीमारी पर काम

भारत की एक बड़ी आबादी सिकिल सेन एनियमिया से पीड़ित है. इन बच्चों की हालत ऐसी होती है कि यह दवा खाने लायक भी नहीं रहते हैं. ऐसे बच्चों के लिए सिरप बनाया जा रहा है. इसके साथ ही कोशिश इस बात की की जा रही है कि सिकिल सेल का जिन को ही परिवर्तित किया जाए जिसे कि पूरी तरह से इस बीमारी पर काबू पाया जा सके.

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस दिशा में काफी आशातीत सफलता मिली है। यह एक आनुवंशिक बीमारी है इसमें बचपन में बच्चों को टैबलेट खाने में 5 साल तक दिक्कत होती है इसलिए इसके सिरप पर काम किया गया है। 70 हजार की जगह 400 रु में सिरप अब मेड इन इंडिया से मुमकिन.

क्या है रेयर बीमारी

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार सालभर पहले 13 तरह की Rare Disease की दवाओं पर भारत ने काम करना शुरू किया।

इसमें से 4 बीमारी की दवाई बनाने में कामयाबी भी हासिल हुई है। भारत जो दवाई बन रही है वह करोड़ों रुपये की दवाई अब महज़ लाख रुपये में बन रहा है। आंकड़ो के मुताबिक भारत में करीब 8.4 करोड़ से 10 करोड़ rare disease के मरीज़ हैं. Rare disease की 80% बीमारी जेनेटिक हैं. जो बचपन से बच्चों को जकड़ती हैं।

 

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