हिमाचल प्रदेश

सौर सिंचाई योजना ने बदली गरीब किसानों की तकदीर, हरित ऊर्जा राज्य बनाने में होगी मददगार

फतेहपुर/विजय समयाल
भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की नींव है। लेकिन कई चुनौतियों से भरा व्यवसाय भी है। जिनमें पानी की समस्याएं गर्मियों में बिजली की कटौती, बेसहारा पशुओं तथा जंगली जानवरों जैसी समस्याओं के साथ-साथ लोगों विशेषकर युवा पीढ़ी का इस व्यवसाय से विमुख होना सबसे बड़ी समस्या है। हमारे देश में जिस तरह की फसलें बोई जाती हैं उनमें मौसम विशेषकर पानी पर निर्भरता सबसे महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश में भी कृषि क्षेत्र अधिकतर वर्षा पर निर्भर रहता है। किसानों की इस निर्भरता को समाप्त करने के लिए कृषि विभाग की योजनाएं तथा प्रयास कई मायनों में आर्थिकी को सुदृढ़ बनाने में काफ ी कारगर साबित हुए हैं। जिला कांगड़ा के फ तेहपुर उपमण्डल के तहत रियाली पंचायत में जहां लोग पानी की कमी के कारण सारा साल बारिश पर निर्भर रहते थे। विशेषकर भयंकर गर्मी के दिनों में उन्हें अपने मवेशियों के साथ-साथ खेतीबाड़ी के लिए पानी की समस्या के कारण होने वाली चिंता की लकीरें उनके माथे पर साफ झलकती थी। कृषि विभाग द्वारा यहां के किसानों की मौसम और बारिश पर निर्भरता को समाप्त करने के लिए सौर सिंचाई योजना से जोड़ कर जहां उन्हें चिंतामुक्त किया है वहीं उन्हें आर्थिक तौर पर मजबूत बनाकर उनकी तकदीर बदल दी है। फ सलों और सब्जियों से लहलहाते खेत क्षेत्र की खूबसूरती को अपने आप बयां कर रहे हैं। भू-संरक्षण विभाग द्वारा फतेहपुर उपमंडल में अब तक सौर सिंचाई योजना के अर्न्तगत खेतों में 106 सोलर ऊर्जा पैनल लगवाकर लोगों को लाभान्वित किया जा चुका है। जिससे जहां किसानों के खेतों तक पानी पंहुच रहा है वहीं बारिश के पानी पर निर्भरता समाप्त होने से उनकी चिंता भी खत्म हुई है। वे जरूरत के अनुसार अपनी खेतीबाड़ी व मवेशियों के लिए पानी को उपयोग में ला रहे हैं। इस योजना के तहत लाभान्वित अनुसूचित जाति से सम्बन्ध रखने वाले किसान केवल सिंह, हेम राज, रमेश चंद तथा रमेश सिंह बताते हैं कि पानी के लिए यहां पर कोई प्राकृतिक स्रोत एवं कूहलों आदि की सुविधा न होने के कारण उन्हें खेतीबाड़ी तथा मवेशियों के लिए सारा साल बारिश के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता था, जिस कारण किसान जहां खेतीबाड़ी से पीछे हट रहे थे वहीं पशुओं के लिए चारे की समस्या भी सताती रहती थी। कमाई का कोई अन्य साधन न होने के कारण उन्हें मेहनत-मजदूरी और खेतीबाड़ी पर ही निर्भर रहकर परिवार का पालन-पोषण करना पड़ता था तथा बड़ी मुश्किल से परिवार का गुजारा हो पाता था। लेकिन, इस सुविधा के मिलने से जहां खेतीबाड़ी के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो रहा है वहीं यहां पर गेहॅूं, धान, सरसों, तिलहन, दालें, रोंगी की भरपूर फ सल हो रही है। इसके अतिरिक्त बन्दगोभी और फू लगोभी, भींडी, खीरा, पालक, मटर तथा चुकन्दर की खेती भी की जा रही है जिनके बाजार में अच्छे दाम मिलने से आर्थिक तौर पर काफी सहारा मिल रहा है। उनका मानना है कि लोगों को खेतीबाड़ी, बागवानी और पशुपालन जैसे पैतृक व्यवसाय को अपनाना चाहिए।

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