समरसता का पर्याय बनी भगवान भोले शंकर की बारात
टीम एक्शन इंडिया/ बिलासपुर/कश्मीर ठाकुर
बिलासपुर शहर के चंगर सेक्टर में शारदीय नवरात्रों के दौरान चली महाशिव पुराण कथा का बीते रोज भव्य तरीके से समापन हो गया। इस अवसर पर हवन यज्ञ के बाद विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें सैंकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। कथा के अंतिम दिन कथा वाचक पंडित सुरेश भारद्वाज ने भगवान शिव पार्वती प्रसंग का व्याख्यान करते हुए बताया कि इस विवाह में असंख्य किस्म के प्राणी शरीक होकर साक्षी बने जो कि समरस्ता का प्रतीक है। कथा वाचक सुरेश भारद्वाज ने कहा कि पार्वती की तरफ से कई उच्च कुलों के राजा-महाराजा और शाही रिश्तेदार इस शादी में शामिल हुएए लेकिन शिव की ओर से कोई रिश्तेदार नहीं था, क्योंकि वे किसी भी परिवार से संबंधित नहीं थे। भगवान शिव के साथ हर प्रकार के प्राणी बारात में आए जिसें देवी, देवताओं के अलावा राक्षस, किन्नर, गंधर्व, सर्प यहां तक की कीड़े मकोड़े भी आए।
समरसता का पर्याय बनी यह बारात कई मायनों में अलौकिक थी। जब पर्वत राज ने अपने कुल की वंशावली के बारे में बताया और शिव से उनकी वंशावली के बारे में पूछा तो शिव मौन होकर शून्य रहे। काफी समय तक इसी बात को लेकर सभा में चर्चा होती रही कि आखिर शिव की ओर से इनके परिवार खानदान के बारे कोई क्यो नहीं बोल रहा। फिर नारद मुनि ने बताया कि भगवान स्वयंभू हैं। इनका आगे पीछे कोई नही है। इनके माता-पिता ही नहीं हैं। इनकी कोई विरासत नहीं है। इनका कोई गोत्र नहीं है। इसके पास कुछ नहीं है। इनके पास अपने खुद के अलावा कुछ नहीं है। कथावाचक ने बताया कि यह सुन पूरी सभा चकरा गई।
पर्वत राज यह सुनकर हैरान रह गए कि वे अपनी पुत्री का हाथ कैसे ऐसे व्यक्ति के हाथों दे सकते हैं। जिसका कोई वंश ही न हो। उपर से बारात में आए संगी साथी देख समस्त जनता भयभीत थी। फि र माता पार्वती के कहने पर शिव में सारा माया को समेटा तथा नारद ने बताया कि यही समस्त ब्रम्हांड है। भगवान विष्णु और ब्रम्हा भी इन्हीं के द्वारा है। फिर कहीं दुल्हन के पिता संतुष्ट हुए। ब्रम्हा ने पुरोहित का कार्यभार संभाला और विष्णु पार्वती के भाई बने तथा यह विवाह संपन्न हुआ। कथा एवं कार्यक्रम समापन पर विधिवत रूप से पंडित और उनकी टीम की भावपूर्ण विदाई दी गई।