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SC ने मणिपुर में कानून व्यवस्था पूरी तरह बताई ध्वस्त, डीजीपी को किया तलब

नई दिल्ली। मणिपुर की स्थिति से नाराज उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को टिप्पणी की कि वहां पर कानून-व्यवस्था एवं संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है। शीर्ष अदालत ने राज्य पुलिस द्वारा हिंसा के मामलों की जांच को ‘सुस्त’ और ‘बहुत ही लचर’ करार दिया। मणिपुर में बेलगाम जातीय हिंसा से निपटने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के तौर तरीके की आलोचना करते हुए न्यायालय ने कहा कि पुलिस ने कानून व्यवस्था पर से नियंत्रण खो दिया।

शीर्ष अदालत ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि सोमवार को जब वह राज्य मणिपुर से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करे तब वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने चार मई को दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने वाले वीडियो को ‘बहुत परेशान’ करने वाला करार दिया।

इसके साथ ही पीठ ने सरकार से घटना, मामले में ‘जीरो एफआईआर’ और नियमित प्राथमिकी दर्ज करने की तारीख बताने को कहा। चार मई का यह वीडियो पिछले महीने सामने आया था। शीर्ष अदालत ने जानना चाहा कि अबतक दर्ज करीब 6000 प्राथमिकियों में कितने लोगों को नामजद किया गया है और उनकी गिरफ्तारी के लिए क्या कदम उठाए गए।

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मौखिक टिप्पणी की, ‘‘ जांच बहुत ही सुस्त है, प्राथमिकियां बहुत देरी से दर्ज की गईं और गिरफ्तारियां नहीं की गईं, बयान दर्ज नहीं किये गये …राज्य में कानून व्यवस्था और संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है।’’ जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में उस समय तनाव और बढ़ गया था जब चार मई का वह वीडियो सामने आया जिसमें एक समुदाय के कुछ लोगों की भीड़ दूसरे समुदाय की दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाती नजर आई थी।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने मौखिक टिप्पणी की, ‘‘एक चीज बहुत स्पष्ट है कि वीडियो मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में काफी देरी हुई।’’ सुनवाई शुरू होने पर मणिपुर सरकार ने पीठ को बताया कि उसने मई में जातीय हिंसा भड़कने के बाद 6,523 प्राथमिकियां दर्ज कीं।

केंद्र तथा मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले में राज्य पुलिस ने ‘जीरो’ प्राथमिकी दर्ज की थी। ‘जीरो एफआईआर’ न्यायाधिकार क्षेत्र से परे कहीं पर भी दर्ज कराई जा सकती है और उसे बाद में उस पुलिस थाने में जांच के लिए स्थानांतरित कर दिया जाता है जहां पर अपराध घटित हुआ था। मेहता ने शीर्ष न्यायालय को बताया कि मणिपुर पुलिस ने वीडियो मामले में एक नाबालिग समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया है।

मेहता ने पीठ को बताया कि प्रतीत होता है कि राज्य पुलिस ने वीडियो सामने आने के बाद महिलाओं के बयान दर्ज किये। इससे पहले, आज उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को मणिपुर में पीड़ित महिलाओं के बयान दर्ज न करने का निर्देश देते हुए कहा कि वह इस मामले से जुड़ी कई याचिकाओं पर अपराह्न दो बजे सुनवाई करेगा। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने महिलाओं की ओर से पेश वकील निजाम पाशा की दलीलों पर संज्ञान लिया।

सीबीआई ने इन महिलाओं को आज अपने समक्ष पेश होने तथा बयान दर्ज कराने को कहा था। उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में संबंधित महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने के वीडियो को सोमवार को “भयावह” करार देते हुए प्राथमिकी दर्ज करने में हुई देरी की वजह का पता लगाने का निर्देश दिया था। इसके अलावा न्यायालय ने जांच की निगरानी के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की समिति या फिर विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का सुझाव भी दिया था।

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